रविवार, 18 सितंबर 2016

व्यंग्य 43 : बे-हाल पच्चीसी कथा 1

एक व्यंग्य : बे-हाल पच्चीसी -कथा 1

[आप ने ’बेताल-पच्चीसी’ की कहानियाँ ज़रूर पढ़ी होंगी जिसमें राजा विक्रमादित्य जंगल से एक बेताल को डाल से उतार कर,अपने कंधे पर लाद कर ले चलते हैं और बेताल रास्ते भर एक कहानी सुनाते रहता है ।बेताल शर्त रखता है कि अगर राजा विक्र्मादित्य ने रास्ते कुछ बोला तो वह उड़ कर फिर डाल पर जा कर उल्टा लटक जाएगा .....

,वैसे यह सभी कहानियाँ ’यू-ट्यूब’ पर उपलब्ध है.........

अब आगे पढिए उसी ’बेताल-पच्चीसी’ की ’बे-हाल पच्चीसी"-कहानियाँ -------......]
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’विक्रू ! तू आ गया ?? मुझे मालूम था कि तू ज़रूर आएगा "-- जंगल में डाल पे उलटा लटके हुए बेताल ने कहा-" अरे विक्रू ! जिस साधु की बात में आ कर तू मुझे यहाँ लेने आया है वह साधु ’ढोंगी’ है --तू नहीं समझेगा।’
राजा विक्रमादित्य ने आश्चर्य से उस बेताल को देखा और सोचा कि कल तक तो यह बेताल राजा विक्र्मादित्य महाराज विक्रमादित्य राजन ..राजन..कहता रहता था आज इसे क्या हो गया है आज ’विक्रू...विक्रू कर रहा है? सच है किसी को 2-4-10 बार कंधे का सहारा दे तो सर चढ़ जाता है ..हो सकता है प्यार से ’विक्रू ...विक्रू ’कर रहा हो जैसे आजकल की लड़कियां दो दिन में ही अपने ’ब्वाय फ़्रेन्ड’ विभूति नारायण सिन्हा को संक्षेप मे .विभू’...विभू ...सुखदेव परसाद चौरसिया को सुख्खू...सुख्खू..करती फिरती रहती है..मैं तो फिर भी इसे सदियों से ढो रहा हूं~

राजा विक्रमादित्य ,बेताल को डाल से उतार कर चलने लगे ,,..
’विक्रू;-बेताल ने कहा--- रास्ता लम्बा है तू थक जायेगा .चल मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ..
राजन चुप रहे
’तो सुन ’
राजन चुप रहे
....प्राचीन काल में इन्द्रपस्थ नगरी में ’केसरी खाल’ नाम का एक नेता हुआ करता था जो हमेशा ’ केसरी’ [सिंह] की’ ’खाल’ ओढ़े हुए रहता था। । वह अपने आप को ईमानदार की प्रतिमूर्ति समझता था और अपने को छोड़ , वह सारी दुनिया को चोर ..बेईमान.. भ्रष्टाचारी ...घूसखोर..कामचोर ....ठुल्ला समझता था ।उसे लगता था कि वह राजा ’हरिश्चन्द्र ’ का कलियुगी अवतार है और अब वह सभी भ्रष्टाचारियों ...घूसखोरों और ’ठुल्लों’ को जेल भेज कर ही दम लेगा । यह बात और है कि वह किसी को जेल न भेज सका मगर किसी केसरी की तरह दहाड़ता खूब था। ईमान प्रशासन की स्थापना हेतु हर बात पर धरना देने लगा एक बार तो वह अपने ही शासन के विरुद्ध ही धरना देने बैठ गया था।अब वह हर मंच से भ्रष्टाचार के विरुद्ध दहाड़ने लगा और जनता सचमुच उसे -’केसरी’ समझने लगी ।
’विक्रू ! तू जानता है वह नेता भी एक बूढ़े बाबा को अपने कंधे पर लाद कर शहर शहर घूमता था । बाबा ने भी मेरे जैसा ही एक शर्त रखा था कि हे केसरी! अगर तूने कोई पार्टी बनाई तो मैं उड़ कर अपने आश्रम चला जाऊँगा
बाबा उड़ कर अपने आश्रम चले गए....
राजन विक्रमादित्य चुप रहे..
’...हाँ तो मैं क्या कह रहा था ....हाँ वह नेता अपनी जनता का बहुत ख़याल रखता था और जनता को मुफ़्त में पानी -बिजली देने की बात करता रहता था ।कभी कभी जनता के ऊपर बोझ पड़ा कर्ज भी माफ़ करने की भी बात करता था ।वोट लेने के लिए ,गरीबों के सामने पूँजीपतियों को गालियाँ देता था और अमीरों से चन्दा लेने के लिए अमीरों के साथ पंच सितारा होटलों में ’डिनर’ करने हेतु ’टिकट बेचता था । वह रामराज्य लाने के बातें करने लगा ...सपने दिखाने लगा..जनता उसकी इन हितकारी बातों से बड़ी प्रभावित हुई कि सदियों बाद कोई नेता ,जनता का इतना हितैषी मिला है । हाय ऐसा नेता पहले क्यों नहीं पैदा हुआ .कितने अभागे थे हम । जनता ने बड़े उत्साह से प्रचंड बहुमत से उसे ’इन्द्रप्रस्थ का सिंहासन’ सौप दिया ।
अब वह नेता से राजा हो गया
उसके शासनकाल में भ्रष्टाचार खत्म हो गया...सभी घूसखोर..कामचोर झुण्ड के झुण्ड जेल जाने लगे .साथ निभाने के लिए साथ में कुछ मंत्री भी जेल जाने लगे । जनता को अब मुफ़्त में पानी मिलने लगा...मुफ़्त में बिजली मिलने लगी ...मुफ़्त में दवाईयाँ मिलने लगी...स्कूलों में फ़ीस माफ़ हो गए...जो काम पिछली सरकारों ने 20 साल में नहीं किया उसने 2 साल में कर दिया --बड़े बड़े ’होर्डिंग लगाए जाने लगे ..आंकड़े दिखाए जाने लगे ...टी0वी-विज्ञापन आने लगे पर हरे भरे खेत,,,..मुस्कराता हुआ किसान . हर हाथ को काम ..कुछ लोग सी0डी0 बनाने के काम में लग गए...-राज्य प्रगति-पथ पर निकल पड़ा अत: उसके सारे मंत्री राज्य से बाहर यात्रा पर निकल पड़े.....जनता मगन ...मच्छर मगन ...डेंगू मगन ... चिकनगुनिया मगन ..
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"तो हे विक्रू ! अब तू मेरे सवाल का जवाब दे कि इस के बाद भी जनता त्राहिमाम त्राहिमाम क्यों कर रही थी ....बता बता ..तू तो बड़ा ज्ञानी है..तू तो न्याय करता है.... बड़ा न्यायी बने फिरता है ,,,
राजा विक्रमादित्य चुप रहे
;बता कि जनता त्राहिमाम क्यों कर रही थी ,...जवाब दे नहीं तो तेरे सर के टुकड़े टुकड़े कर दूँगा....
राजन सहम गए ..इस बेताल का क्या भरोसा ...कही सचमुच सर के टुकड़े ही न कर दे । अत: बोल उठे
"हे बेताल ! तो सुन ! जनता भोली थी ..नेता की बातों में आ गई और भरोसा कर प्रचण्ड बहुमत दे दिया शायद जनता को पता न था

इतना जल्दी किसी पे भरोसा न कर
जरा देर की जान-पहचान में

-तो फिर? -बेताल ने पूछा
-अब जनता को 5-साल का इन्तज़ार करना पड़ेगा
-हे विक्रू ! तूने एक ग़लती कर दी....तूने शर्त तोड़ दिया ,,,तू बोल उठा....यह ले... मैं चला उड़ कर.. अपने डाल पर
और हाँ जाते जाते एक बात और सुन ले----”ज़िन्दा क़ौमें 5-साल इन्तज़ार नहीं करती’

अस्तु

-----अथ श्री ’-बेहाल पच्चीसी’-कथायाम प्रथमोsध्याय



-आनन्द.पाठक-