सोमवार, 21 जनवरी 2019

व्यंग्य 54 : धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे---

एक व्यंग्य : धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे---

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे   समवेता युयुत्सव:
मामका: पाण्डवाश्चैव  किमकुर्वत संजय

धृतराष्ट्र उवाच -- हे संजय ! सुना है मेरे ’ भारत’ भूमि पर  2019 में ’महाभारत’ होने वाला है?
संजय उवाच --- किमाश्चार्यम आचार्य ! किमाश्चार्यम !तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है राजन ! इस भारत भूमि पर तो वर्ष पर्यन्त ही ’महाभारत’ होता रहता है 
धृतराष्ट्र  --- मामका:--???
संजय    --- -’मामा’ जी मध्यप्रदेश में चुनाव हार गए
धृतराष्ट्र  --- आह - हतभाग्य-- -दुर्भाग्य  -। हे संजय ! 2019 में होने वाले महाभारत की क्या क्या तैयारियाँ चल रहीं है -
संजय ---- -हे ब्राह्मण श्रेष्ठ ! जैसा कि मैं देख रहा हूँ राजन ! सब लोग अपना अपना रथ निकाल कर धो-पोंछ रहे है । सजा रहे है ।रथ यात्रा निकालनी है --बंगाल से --बिहार से-- पूरब  से-- पश्चिम से-दक्षिण से -परिवर्तन रथ यात्रा---विकास रथ यात्रा-- सदभावना  रथ यात्रा-किसान रथ यात्रा----नवभारत यात्रा। कुछ लोग मन्दिर मन्दिर दौड़ रहे है---कुछ लोग जनेऊ धारण कर रहे हैं ---कुछ लोग जालीदार टोपी की नाप दे रहे हैं 
कुछ लोग नारे गढ़ रहे हैं---गली गली में शोर है---फ़लाना नेता चोर है ----चौकीदार चोर है---पूँजीपतियों का यार है--चोरों का सरदार है--कुछ लोग नारे लगा रहे हैं --भारत तेरे टुकड़े होंगे--इन्शा अल्लाह इन्शा अल्लाह-- कुछ लोग ज़ुबान की धार तेज कर रहे हैं--चुनाव काल में तीर चलाना है --कुछ लोग ’आरक्षण के कसीदे पढ़ रहे है --कुछ लोग मन्दिर राग में आलाप ले रहे हैं---कुछ लोग मस्जिद पर थाप दे रहे हैं-कुछ लोग ’गईया मईया’ की सेवा कर रहे हैं-कि शायद टिकट मिल जाए----सभी लोग ग़रीबों की बात कर रहें है --मगर ग़रीबी है कि 70-साल से हट नहीं रही है --
जगह जगह अपने अपने प्रदेश के  क्षत्रप एक मंच पर उपस्थित हो कर ’गठबन्धन’ कर रहे हैं --हाथ मिला मिला रहे है  ...मुस्करा रहे हैं--’फोटू’ खिंचवा रहे हैं--संदेश दे रहे हैं कि ’हम सब’ एक हैं
धृतराष्ट्र ---- अच्छा ,हाँ, हाँ याद आया  ,एक बार ऐसा ही सन -1977--में हुआ था जब ’ एक साथ -एक मंच पर कई दल  आये थे ।गठबन्धन की सरकार थी ।फिर क्या हुआ --जनता को तो याद  होगा ही ?
 संजय ----   नहीं  राजन ! जनता यह सब याद नहीं रखती ---जनता अपनी जाति याद रखती है  अपनी बिरादरी याद रखती है - मन्दिर याद रखती है --मस्जिद याद रखती है--- देश की अस्मिता याद नहीं रखती -प्याज का दाम याद रखती है-- पेट्रोल का दाम याद  रखती है ---दाल का दाम याद रखती  है-।- फ़्री में चावल कौन देगा --लैपटाप कौन देगा--टी0वी0 कौन देगा --याद करती  है --चाहे देश की ऐसी तैसी हो जाए---भले ही बाहरी शक्तियाँ आँख दिखाए--
धृतराष्ट्र ---- मगर हे संजय --वे सब एक ही मंच पर क्यों चढ रहे हैं--ऐसे तो मंच टूट जायेगा
संजय  ---- ’प्रधान-मन्त्री’ की कुरसी लेनी है राजन --कुरसी बाद में टूटेगी।  ये सभी दल कंधे से कंधा मिला कर नहीं ’सीने से सीना मिलाकर" लड़ रहे हैं  कि 56" वाले सीने को हराना है ।अकेले तो हरा नहीं सकते--
धृतराष्ट्र ---- सुना है कि लखनऊ वालों ने अपनी साइकिल पर हाथी बैठा लिया है ।उस ’युवा’ लड़के का क्या हुआ जो पिछली बार साइकिल पर बैठा था
संजय ---- उसको "अँगूठा दिखा दिया ।अब ’युवा’ की जगह ’बुआ" बैठ गई राजन ! कर्नाटका में  क्षत्रपों ने ’पंजा’ ही पकड़ा था  --अँगूठा नहीं  पकड़ा था ---अँगूठा फ़्री था --सो तमाशा खत्म होने के बाद दिखा दिया ---और ’सर्कस’ वाले भी तो ’हाथी का साइकिल चलाने वाला’ एक खेल दिखाते हैं ।
धृतराष्ट्र ---- अच्छा अब समझा ।तो वह एक खेल है? ज़रा रुको। यह शोर किधर से उठ रहा है --इतना कोलाहल क्यों? हंगामा है क्यों बरपा ?
संजय  ----   हा हा हा -राजन -यह कोलाहल नहीं ! यह महाभारत की जोरदार तैयारी चल रही है ---यह कोलाहल ’बंग प्रदेश’  से आ रही है ---एक और गठबन्धन की तैयारी चल रही है...
धृतराष्ट्र  ---- संजू sss  !उन्हे गठबन्धन पे भरोसा नईं क्या
गठबन्धन की बातें लगे गोल गोल---गोल गोल
जनता ने कर दे कहीं झोल झोल ---झोल झोल
नेता जी  करने लगे तोल-मोल  -----तोल-मोल
संजू ssss ्गठबन्धन पे भरोसा नईं क्या ?
संजय ---- राजन ! सच तो यह है कि राजनीति में किसी को किसी पर भरोसा नहीं  --अर्जुन की चिड़िया की तरह--- बस एक ही चीज़  निशाने पर रहती है  -प्रधान मन्त्री की कुर्सी । बस उस को ही पाना है --वही सत्य  --वही सार है --बाक़ी सब बेकार है
धृतराष्ट्र ----- मगर ’कुरसी’ तो एक है ---गठ्बन्धन अनेक । एक में अनेक कैसे समाएगा?
संजय    ----  एक बार बस कुरसी आ जाय ----बाद में सब समा जायेगा --- नेता लोग आपस में निपट लेगें --एक दूसरे को निपटा देंगे--
धृतराष्ट्र ---- समाज में--- गाँव के अन्तिम छोर पर बैठा --बुधना--नित्य-प्रति  स्वयं से लड़ता ’बुधना’---वह किधर है?
संजय  ---- यही विडम्बना है राजन ! उसी के नाम पर सारा चुनाव लड़ा जाता है  ,मगर केन्द्र में वह  नहीं होता  ।केन्द्र में होते हैं उसके नाम पे रोटी सेकने वाले--उसके नाम पे दलाली खाने वाले--उसके नाम पर घड़ियाली आँसू बहाने वाले।और  बुधना ?--गाँव में बैठा  मुस्कराता है , मस्त हो कर  गाता है --"अरेss   हथवा कss  वोटवा लेई भागा --ईss   बुधना अभागा नहीं जागा "
जिस दिन बुधना जग जायेगा ---लोकतन्त्र जग जायेगा
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धृतराष्ट्र उवाच ----संजय ज़रा इधर आना --ज़राअपना कान इधर देना--उस समय लोग कहते थे कि मेरे ’अन्ध पुत्र मोह’ के कारण महाभारत हुआ था । अब ?
संजय उवाच ---  अरे राजन ! उस समय तो मात्र  आप ही एक  धृतराष्ट्र थे --अब तो कई कई धृतराष्ट्रहो गये ---पुत्र-मोह में अन्धे हो गए  हैं---नाम बताऊँ क्या ?
धृतराष्ट्र उवाच- ---नहीं नहीं रहने दे पगले ! --- बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी---छी छी छी --ई कैसा महाभारत हो रहा है----महाभारत में क्या दुर्योधन-- शकुनी -दु:शासन ...जयद्रथ .. मरे नहीं थे? तो फिर कौन मरा था ?
संजय उवाच  ---   व्यक्ति मरे थे राजन व्यक्ति !"प्रवृति" -नहीं मरी थी । प्रवॄत्तियाँ आज भी जिन्दा हैं । जब तक यह प्रवृत्तियाँ ज़िन्दा रहेंगी तब तक महाभारत होता रहेगा --
धृतराष्ट्र उवाच ----धन्य हो संजय ! धन्य हो। तुमने तो मेरी ’आँखें खोल दी"
संजय उवाच ------ आँखे खुल गई न ---अब आगे का हाल टी0वी0 से देख लीजिएगा } मैं चला।

अस्तु 

-आनन्द.पाठक-

बुधवार, 16 जनवरी 2019

व्यंग्य 53 : आँख दिखाना---

एक व्यंग्य : आँख दिखाना

--आज उन्होने फिर आँख दिखाई

और आँख के डा0 ने अपनी व्यथा सुनाई--" पाठक जी !यहाँ जो मरीज़ आता है ’आँख दिखाता है " - फीस माँगने पर ’आँख दिखाता है ’। क्या मुसीबत है ---।

--" यह समस्या मात्र आप की नहीं ,राजनीति में भी है डा0 साहब " मैने ढाँढस बँधाते हुए कहा-"जब कोई अपना गठबन्धन छोड़ कर सत्तारूढ़ ’गठ बन्धन ’में आता है तो ’आँखें झुकाते’--नज़रे मिलाते हुए आता है और जाता है तो ’आँख दिखाते" हुए जाता है।
-आज उसने फिर आंख दिखाई
उन दिनों, जब मैं जवान हुआ करता था और आँखें मिलाने की स्थिति में था ।और जब मैने " उस से"आँख मिलाई तो उसने ’आँखे झुकाई’ । इसी मिलाई- झुकाई में पता नहीं कहाँ से उसका मुआ बाप आ गया और लगा आँखें दिखाने । वो तो भला हुआ कि पिटते-पिटते बचा।
मगर राजनीति में ’आँख दिखाना ’ का मतलब घटक दल का सत्तारूढ़ पार्टी को ’संदेश’ देना । ।वहाँ ’संदेशों’ का आदान-प्रदान ऐसे ही होता है।
विरोधी पार्टी आपस में कभी आँख नहीं दिखाते --बस आँखे मिलाते है और ’गठबन्धन’ बनाते है ।जब ज़रा और ’आंख दिखाना हुआ तो ’महागठबन्धन ’ बताते है -भले ही 2-आदमियों का गठबन्धन क्यों न हो। इससे जनता पर प्रभाव पड़ता है।
आँख दिखाने का काम सत्ता-पक्ष वाली पार्टियाँ करती रहती है -समय समय पर । अपने को ज़िन्दा समझवाने का एहसास कराने के लिए ।
--आज नेता जी ने फिर आँख दिखाई
अध्यक्ष जी ने पूछ ही लिया-
-"इशारों इशारों में धमक देने वाले ,बता ये हुनर तूने सीखा कहाँ से ?
तो नेता जी ने भी तुर्की ब तुर्की जवाब दिया -
’ जुमलों ही जुमलों सब को चराना ,मेरे सर जी! सीखा है तुम ने जहाँ से

कारण ? कारण कुछ भी नहीं । कारण बहुत कुछ । इतने साल ’सत्ता से चिपके रहे .मलाई खाते रहे । जब चुनाव नज़दीक आया तो अचानक ख़याल आया अरे मेरा तो ’सम्मान’ ही नहीं है इस पार्टी में ।आँख उठा कर देख भी नहीं रहे हैं ये लोग हमे तो । अरे भाई ,हम दलित हैं तो क्या--हम शोषित है तो क्या---हम वंचित है तो क्या ---मेरा असम्मान देश के समस्त दलित--शोषित पीड़ित --वंचित लोगों का अपमान है --हम अपने भाईयों का अपमान सहन नहीं-- देश हित का अपमान सहन नहीं कर सकते --
"-- भाई साहब ! दलितों शोषितों वंचितों के लिए तो बहन जी है न देख भाल के लिए"
"-अरे ऊ कब से दलितों की नेता बन गईं--दलितों - वंचितों का सबसे बड़ा नेता ’मैं ’।कल तक हम आप की "आँखों के तारे थे ,--आँखों की पुतली थे --अब --आँखों की किरकिरी बन गए ? अगर मुझे सम्मान जनक ढंग से सीटें न मिली तो गठबन्धन से अलग भी हो सकता हूँ।विकल्प खुले हुए हैं -- मैं ’पद’ का भूखा नहीं ,मैं कुर्सी का भूखा नहीं [शायद मलाई ख़तम हो रही है ] -मैं देश की ग़रीब भाईयों के बारे में सोचता हूँ --बेरोज़गार नौजवानों भाईयों के बारे में सोचता हूँ --किसान भाईयों के बारे में सोचता हूँ । देश हित के बारे में सोचता हूँ ---मेरी पार्टी को 2-सीट दे रहें है-। इतना चिल्लर तो भीखमंगा भी नहीं लेता आजकल ----मात्र 2-सीट ? अगर आप ने 10-15 सीट नहीं दे तो हम आप की आँखों से काजल भी चुरा सकते है ।10-20 एम0एल0ए0 हैं सम्पर्क में मेरे ।हम लोकसभा में ’आँखे नहीं मारते ।--हम आँख मूँद कर सपोर्ट भी नहीं करते -----फिर मेरे मजदूर किसान भाइयॊं का क्या होगा ? मेरी माताओं बहनों का क्या होगा? देश की सेवा का क्या होगा ? ---’ -नेता जी ’आखें दिखा रहे थे और सत्ता पक्ष रहस्य समझ रहा थ।
’--अरे भाई साहब ! देश हित सोचने के लिए और नेता है न -शहर की चिन्ता में काज़ी क्यॊं दुबला
" नेता ? कोन नेता ? मेरे सिवा और कौन नेता ? ---सब झूठ के नेता है --कहते है कि हमें राज्यसभा की सीट दिलवा दो।हमें राजपाल बना दो --हमें उस समिति का अध्यक्ष बना दो ---अरे वो क्या भला करेंगे देश का--??
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ख़ैर सत्ता-पक्ष के गठबन्धन ने उन्हें 3- सीट दे दिया
1-सीट और मिलने से , नेता जी का सम्मान लौट आया -पगड़ी -ऊँची हो गई --उनकी जाति भाईयों का सम्मान लौट आया । समझदार थे-पता था दूसरे दल के गठ बन्धन में जायें --चुनाव के बाद ’मलाई’ मिले न मिले }यहाँ जितना मिल रहा है -उतना तो चाट लें-डकार लें --चमचों में उत्साह दौड़ आया- कार्यकर्ताओं ने नारा लगाया ---" भईया जी अमर रहें-अमर रहें -जब तक सूरज चांद रहेगा--भईया जी का नाम रहेगा---भईया जी आगे बढ़ो--हम तुम्हारे साथ हैं"--देश का नेता कैसा हो? भईया जी जैसा हो ।-वातावरण ’महक’ उठा।
और नेता जी ने सुबह बयान दे दिया----देश का विकास --देश तोड़क शक्तियों का विनाश कोई कर सकता है -तो हमारा गठबन्धन ही कर सकता है_ सत्तारूढ़ पार्टी ही कर सकती है ---"हम सीटों की संख्या पर नहीं रिश्ते पर विश्वास रखते हैं --- निभाते हैं --हम अपने ग़रीब भाइयों के लिए ऐसी सीटों को दस बार लात मार सकता हूँ -----भारत माता की जय--वन्दे मातरम ---

इधर ’बुधना’ मन ही मन मुस्कराता है

बेख़ुदी बेसबब नहीं ग़ालिब’
कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है

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-सुना -कल साधु-सन्तों नें ’आँखें दिखाईं- । अगर ’राम मन्दिर’ नहीं बना तो आगामी चुनाव में क्या मुँह लेकर जायेंगे आप ?
---सत्ता पक्ष का गठ बन्धन व्यस्त हैं -"आँखे दिखाने " में
विरोधी पक्ष की पार्टियाँ मस्त हैं - ’आंखे मिलाने में। भले ही उनकी आँखों का पानी मर रहा हो ।
गाँव का ’बुधना’ त्रस्त है --अपनी आँख के मोतिया बिन्द से-।सोच रहा है कर्जा उतरे तो आपरेशन कराएँ।
"जनता तो पिछले कई दशक से एक ही चेहरा देखते आ रही है--झूट का चेहरा- ।

जब तवक़्को ही उठ गई ’ ग़ालिब’
क्यों किसी का गिला करे कोई


क्या मन्दिर-क्या मस्जिद ? मन्दिर बने न बने --बनते हुए प्रतीत होना चाहिए -- आग जलती रहनी चाहिए।
भारत का लोकतन्त्र आगे बढ़ रहा है इन्हीं ’आँख मिलाने से , आँख -दिखाने से-आँख मारने से --आँख चुराने से ।
अस्तु



-आनन्द.पाठक-