शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

व्यंग्य 56 : : आम चुनाव और नाक

एक व्यंग्य :आम चुनाव और नाक

2019। चुनाव का मौसम और मौसम का अपना मिजाज।

आजकल चर्चा मुद्दों पर नहीं, नाक पर चल रही है । मुद्दे तो अनन्त है --हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता -जैसा ।
कुछ मुद्दे तो शाश्वत हैं,-जैसे ग़रीबी,बेरोज़गारी,महंगाई,भ्रष्टाचार,महिला सुरक्षा,कानून-व्यवस्था। ये तो हर चुनाव में नाक घुसेड़ देते हैं। पर इस चुनाव में किसी और की नाक घुस गई।
उनकी नाक उनकी दादी जैसी है ।अच्छी बात है। होनी भी चाहिए। खानदानी नाक है -खानदान पे ही होनी चाहिए। भई ,गर दादी जैसी नहीं होगी तो क्या माओत्सेतुंग जैसी होगी ?
जनता आत्म विभोर है। दादी की छवि दिख रही है। उनको भी दिख रही  है जो दादी को कभी देखा नहीं होगा ।सुना ही सुना होगा । सुन रहे हैं तो सुना रहे हैं ।आख़िर पार्टी के कार्यकर्ता हैं । अरे भई ,नाक की बारीकियाँ वो न देखेंगे तो क्या बीजेपी वाले देखेंगे?
अब नाक का नख-शिख वर्णन हो रहा है। नाक ऐसी है ,नाक वैसी है। किसी ने अति उत्साह में यह भी पता लगा लिया कि राजनीति में आने से पहले ये नाक वैसी नहीं थी ,सर्जरी कराई है छवि दिखाने के लिए । भगवान जाने क्या सच है।
जो लोग अपनी नाक पर मख्खी नहीं बैठने देते थे  , अब वही नाक पर वोट माँगने निकले हैं
 यूपी के दो युवा थे । कल तक नाक के बाल थे आज वही नाको चने चबवा रहे है ।  चुनाव का मौसम जो न करा दे ।
 सुपुत्र ने तो अपने ही पिता जी की नाक कटवा दी और पार्टी से धकिया दिया। व्यक्ति से बड़ी पार्टी -और पार्टी से बड़ी नाक। लोग गठबन्धन किए घूम रहे है- अब तो कई पार्टियों के नाक का सवाल है - एक पार्टी का नाक काटने के लिए।
नाक कटे बला से, सामने वाले का शगुन तो बिगड़ा।
और जनता ?
जनता का क्या है ? उसी के हित के लिए तो सब पार्टिया लड़ ही रही है । उसे क्या करना है ।राम झरोखे बैठ , सब का मुज़रा देख । उसे तो तमाशा देखना है उसे तो वोट देना है ।  ग़रीबी,बेरोज़गारी,महंगाई,भ्रष्टाचार,महिला सुरक्षा,कानून-व्यवस्था से क्या लेना देना ?। वोट दिया तो था । किसने हल कर दिया? न 70-साल वालों ने ,न 5-साल वालों ने।चुनाव में यह सब चलता ही रहेगा।ये सब  "चुनावी रेसिपी" है ,बनाते हैं, पकाते हैं, परोसते हैं --मज़दूर का, किसान का ,,,बेरोज़गार का,अली का ,बजरंग बली का, नाम लेकर । पार्टियों की मज़बूरी है ।उनकी मज़बूरी अलग ,हमारी मज़बूरी अलग । हमें तो  देखना है ---जाति की नाक न कट जाए -बिरादरी  की नाक ऊँची रहे ।  जाति है तो हम हैं -अपनी ही जाति  का बन्दा खड़ा  है । हिन्दू की नाक नीचे नहीं होनी चाहिए---अली  की नाक ऊपर नहीं होनी चाहिए---शोषित की नाक अलग--दलित की नाक अलग --सब पार्टियां अपने अपने ’वोट बैंक’ की नाक लेकर खड़ी हैं चुनाव मैदान में।

गाँव का ’बुधना’ सोचता है । । हाथ वाले भईया का हाथ हमारे ऊपर है । कर्ज़ा माफ़ हो ही गया । अब काहे का काम करना ,काहे की ग़रीबी ।72000/- रुपया खाते में आ ही जायेगा --बोल गए हैं । खानदानी आदमी हैं -ज़बान के पक्के ही होंगे
हमें तो जिसने "प्यार से पिला दिया ,हम उसी के हो गए" और मस्त हो कर गा रहा है
"अरे हथवा कS वोटवा लेई भागा
ई बुधना अभागा  नहीं  जागा "
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यह चुनाव देश की नाक का सवाल है--कोई नहीं सोचता।

-आनन्द.पाठक-

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