शुक्रवार, 1 मार्च 2024

एक व्यंग्य व्यथा 109/06 : वलेन्टाइन डे 2024: चौथी क़सम

 


[ नोट " वैलेन्टाइन डे [2024] के पहले--  जल्दी जल्दी अपनी -आँखे- बनवाई कि उस दिन नई नज़र से एक नज़र भरपूर ’उसे’ देख सकूँ।

वैलेन्टाइन डे [2024] के बाद------------लगता है कि अब - ’दो दाँत"-भी बनवाने पड़ेंगे।


    एक व्यंग्य व्यथा  : वलेन्टाइन डे 2024: चौथी क़सम


ग्रह नक्षत्र इधर से उधर हो जाएं, मगर वलेन्टाइन डे-उर्फ़ प्रेम प्रदर्शन दिवस- कभी इधर उधर नही होता । आएगा तो 14-फ़रवरी को ही। वह प्रेम क्या जो हिल जाए बदल जाए । 

हमारे यहाँ तो ऐसा कोई प्रेमी पैदा ही हुआ  नही तो प्रेम- दिवस क्या  मनाते । हमारे यहाँ जो प्रेम प्रसंग रहा वो आध्यात्मिक रहा संस्कारी रहा सात सात -जनम के साथ का रहा। सात दिन, सात महीने का होता तो मनाते भी  । ले देकर लैला मजनू, शीरी फ़रहाद, सोहनी महिवाल  का प्रेम रहा तो उनका कोई प्रेम दिवस न कोई मनाता है न बताता है ।चूँकि ’वेलेन्टाइन डे " अंगरेजो का बताया हुआ दिन है सो हम बड़ी श्रद्दा पूर्वक प्रेम पूर्वक मनाते हैं । जो सुख " वाशरूम"  कहने में है वह गुसलखाना कहने में कहाँ !

अच्छा,  वैलेन्ताइन डे यानी प्रेम प्रदर्शन दिवस भी अजीब डे है । कभी तो वह सरस्वती पूजा [ ज्ञान की देवी]  से पहले आ जाता है तो कभी सरस्वती पूजा के बाद। कभी "ज्ञान मार्ग" पहले तो कभी प्रेम मार्ग पहले। ज्ञानीजन लक्ष्य प्राप्ति के लिए दोनो मार्ग को एक ही बताते हैं,मनाते हैं  मगर "संस्कृति सेना"  " संस्कार वाहिनी"वाले, पुलिस वाले  कहाँ  समझ पाते है और हर बार प्रेम में रोड़े अटकाने चले आते है।मगर इस बार [2024] का वैलेन्टाइन डे --ऐन सरस्वती पूजा , ज्ञान मार्ग वाले  दिन पड़ गया और मेरे लिए एक  धर्म संकट उत्पन्न हो गया । मैं  जाऊँ तो जाऊं किधर जाऊँ,  ज्ञानमार्ग कि प्रेम मार्ग। एक बार ,उद्धव जी यही ज्ञान मार्ग गोपियों को समझाने गए थे । क्या हुआ ? ख़ुद ही प्रेम मार्ग पर चलने लगे। 

मैं एक सप्ताह पहले से ही तैयारी में लग गया। सरस्वती मैया ने जितना ज्ञान मुझे देना था दे दिया था विद्यार्थी जीवन में ।अब तो प्रेम मार्ग ही खोजना बाक़ी रह गया है ।आजकल हर प्रेम मार्ग किसी न किसी पार्क में जाकर खत्म हो जाता है। हर साल अपनी वेलेन्टाइन खोजना पड़ता है । हर साल इसी खोजने में लग जाता हूँ-~एक सप्ताह पहले से --फ़ेसबुक छानने खगाँलने लग गया ।सौभाग्य से या दुर्भाग्य से -एक मिल भी गई। बड़ी शिद्दत से चैट करने लग गया। सुबह -शाम-रात-दिन। वक़्त बहुत कम था।

चैट तो बहुत हुई ।लेकिन निजता पालिसी को ध्यान रखते हुए कुछ अंश ही लगा रहा हूँ कि पाठकगण भी यह समझ लें कि मेरा प्यार एक सप्ताह में ही  प्रथम  हिमालय से कितना उँचा ,समन्दर से  कितना गहरा हो गया।

पहला दिन प्रथम स्तर  की चैट--

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- " हेलो  पिंकी जी -आप कैसी है ? 

- मै ठीक। आप?

-मैं भी ठीक । पर मन नही लगता।

-क्यों ? 

-आप बिना ज़िंदगी सूनी। शून्य आकाश में तारे गिन रहा हूँ } आप क्या कर रही हैं?

-मैं उन्हीं तारों को अपने दुपट्टे में टाँक रही हूँ

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एक अन्य  दिन की चैट-

 

--पिंकी ! तुम कैसी हो?

--मैं ठीक। तुम क्या कर रहे हो अभी ?

--कुछ नहीं बस तुम्हारी याद बहुत आ रही है--बस तुम्हें ही दिन रात याद करता हूँ।

--चल झूठ्ठे !

-चल झूठ्ठी ! बड़ी नखरे मार री आज तो

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 उच्चतम स्तर  का चैट----

-पिंकी ! तू क्या कर रही है ?

--कुछ नहीं ।

-अच्छा सुन ! एक काम करते है। कल वैलेन्टाइन डे है । मिलते है पार्क में।

-कौन से पार्क में ?

 -भूतहिया पार्क 

--हट ! जब तुम हो तो भूतहिया पार्क क्यों ?

-- अरे पगली ! कल वैलेनटाइन डे है न -तो उधर संस्कार वाहिनी वाले  जाते है  --न पुलिसवाले।

पिंकी--ना बाबा ना -मैं उधर नहीं जाऊँगी। सेन्ट्रल पार्क में मिल न।क्या गिफ़्ट देगा । पहले बता दे । बाद में लफ़ड़ा ठीक नहीं

मैं -- सोच रहा हूँ आसमाँ से चाँद तोड़ कर तेरे आंचल में डाल दूँ 

पिंकी-- हट ! मैं साड़ी थोड़े ही पहनती हूँ कि आँचल में--

मैं --कोई बात नहीं  । तो तेरे दुपट्टे में टाँक दूँगा----- ओके अच्छा सुन ! कल न तू वो पीली वाली सूट पहन कर आना । जो डी0पी0

में लगाई है।  पूरी एन्जिल लगती है एन्जिल ! प्रोमिस?

--तू भी न, नीला वाला सूट पहन कर आना --शाहरुख खान लगता है शाहरुख । प्रोमिस?

--हट ! तू बड़ी वो है

--तू बड़ा वो है ।

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अगर कोई सज्जन इस ’तू बड़ी वो है;-की अंगरेजी बता दे तो अगले साल इंगलिश में बोल कर ही इम्प्रेस करूँगा।

जब वार्ता "आप" से शुरू होते हुए --"तुम"  से गुज़र कर --"तू"  पर आ जाए  तो समझिए प्यार परवान चढ़ रहा है । गूगल बाबा बता गए है।

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मैं सेन्ट्रल पार्क में नियत समय से एक घंटा पहले ही पहुँच गया और वह एक घंटा बाद आई। यह ब्र्ह्मा जी का श्राप है कि कोई लड़की

 तय समय पर मिलने नहीं पहुँचती । देर से आती है और गाते हुए आती है -खफ़ा न होना--देर से आई -दूर से आई  मजबूरी थी-वादा तो निभाया----।

फिर भी लड़के को कोई शिकायत नहीं होती । लड़के धैर्यवान होते हैं।

  दूर से देखा । वह आ रही है ।  यू-ट्यूब वालो ने मुझे समझाया था कि जब लड़की मिलने आए तो -’मुँह घुमा कर, मुँह फ़ुला कर "- बैठ जाना । उसे यह न पता चले कि तुम बहुत उत्सुक और आतुर हो ।अत: मैं बेन्च पर मुंह घुमा कर बैठ गया ।

वो पास आ गई और उसने  जैसे ही मेरे कंधे पर हाथ रखा और जैसे ही मैने मुँह उसकी तरफ़ घुमाया कि-- मुझसे पहले वह चौंक गई ।

गुस्से में पैर पटकते हुए बोली--अरे! तू ! स्साले कंजड़ ! खूसट ! इस साल फ़िर तू ! यू चीटर ----

-- तू चिटरनी!  फिर आ गई । टकली ---बड़ी भाव खा री है

उसने कहा ---लास्ट इयर कहा था यह हार तुम्हारे लिए है ,सोने का है } यू फ़्राडिये !  पीतल का निकला । नॊट दिया था कि शापिंग कर लेना--साला जाली नोट थमा कर निकल लिया।

   वो तो अच्छा हुआ कि मेरे दूसरे लल्लू  ब्वाय फ़्रेन्ड ने पेमेन्ट कर दिया -- मैं पकड़ाते पकड़ाते बची--स्साले !कजूस इतना कि   100/- रुपए का कैंडी  खिला कर मेरी 430./-

  की लिपस्टिक खराब कर दी --

-- अरे तो  तू कौन सी --चार चार ब्वाय फ़्रेंड लेकर घूमती है --

-यू शट- अप !

--क्यूँ शट-अप ? यू शट अप--

  फिर उसने अपनी "सैंडिल -प्रहार" से मुझे शट अप करा दिया । बाक़ी बचा-खुचा शट-अप पुलिस ने करा दिया । और मैं सीधे घर वापस आ गया ।

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श्रीमती जी ने दरवाज़ा खोला --अरे! मुँह पर रुमाल ! मुँह पर रुमाल क्यों?

-अरे कुछ नहीं } वो सामने वाले दो दाँत उखड़वाने थे न  डेन्टिस्ट से ..

श्रीमती जी ने सेंक वग़ैरह लगाई  पेन किलर दिया तो कुछ आराम आया । फिर मुस्करा कर बोली --मना आए वैलेन्टाइन डे !

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भगवान कसम दर्द की एक ऐसी टीस उठी कि  हृदय में ज्ञान ज्योति जग गई । आत्मा ने कहा--हे मूढ़ प्राणी  ! कस्तूरी कुंडल बसे --मॄग ढूँढे बन माहि।

 घर में ही वैलेन्टाईन डे मना लेता जी भर-व्यर्थ ही इधर उधर मुंह मारता फ़िरता है-क्या हुआ अगर यह वेलेन्टाइन  मँहगी है--हीरे का ही तो  हार मांगती है--दाँत तो नही तोड़ती ।

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राजकपूर साहब ने "तीसरी कसम"  में तीसरी कसम खाई थी --अब अपनी बैलगाड़ी में किसी बाई जी को लेकर --कभी -

और आज मैने चौथे वेलेन्टाइन डे पर  चौथी कसम खाई ---अब किसी ’फ़ेसबुकिया लड़की ’ का डी0पी) देख कर  --कभी --अपना वैलेन्टाइन नहीं बनाऊँगा ।


[ कथा सार --जब प्यार की बात ’आप "आप" से शुरु होकर---"तू तड़ाक" पर खत्म हो जाए तो समझ लीजिए कि ’प्यार की सर्किट’ फ़ुँक गई]


-अस्तु 

-आनन्द.पाठक-




 





 


सोमवार, 17 जुलाई 2023

हिंदी साहित्य लेखन --शरद जोशी जी की नज़र में---

  हिंदी साहित्य लेखन --शरद जोशी जी की नज़र में---


  मेरे हास्य-व्यंग्य लेखन यात्रा में हिंदी और उर्दू के अनेक व्यंग्यकारों का प्रभाव ज़ रहा जिसमें हिंदी में आ0 [स्व0]  हरिशंकर परसाई जीऔर आ0[स्व0] शरद जोशी का विशेष और उर्दू में शौक़त थानवी और फ़िक्र तौंसवीं का ज़्यादा प्रभाव रहा है। [यहाँ उन सभी माननीय व्यंगकारों के नाम लिखने से सूची लम्बी हो जायेगी और इस लेख का यह विषय भी नहीं है।]  परिणाम स्वरूप मेरी पहली पुस्तक -शरणम श्रीमती जी -[ व्यंग्य संग्रह] ही छपी। बाद में अन्य व्यंग्य संग्रह भी छपे जैसे --सुदामा की खाट--अल्लम गलाम बैठ निठ्ठलम --रोज़ तमाशा मेरे आगे।

शरद जोशी जी ,के0पी सक्सेना जी और अन्य व्यंग्यकारों ने मिल कर , कवि सम्मेलन और मुशायरों की तर्ज़ पर -मंच से व्यंग्य पढ़ने की एक वाचिक परम्परा शुरु की थी। परन्तु यह कार्यक्रम बहुत दिन तक न चल  सका । आजकल इस परम्परा के ध्वजा वाहक आ0 सम्पत सरल जी[ जयपुर]हैं जो बस नाम से ही ’सरल’ हैं वरना अपने नुकीले पैने और तीक्ष्ण व्यंग्य से लोगों की टांग ही नही, कान भी खीचते है। यहाँ पर उन तमाम व्यंग्यकारों के लेखन शैली का तुलनात्मक अध्ययन की बात नहीं करूँगा.। बस शरदजोशी जी के - पचास साल बाद -शायद -आलेख की चर्चा करूंगा जिसे उन्होने अपनी  एक पुस्तक की भूमिका के रूप में लिखा था जिसमे उन्होने उस समय पचास साल की कैसी कल्पना की थी। जोशी जी कोई भविष्य वक्ता नही थे और न ही कोई ज्योतिषी ही थे। मगर एक समर्थलेखक के रूप में भविष्य द्र्ष्टा अवश्य थे जो आज सिद्ध होती नज़र आ रही है।जोशी जी यह आलेख शायद 1975 में लिखा गया था और उस समय मैं रूडकी विश्वविद्यालय [ अब आई0आई0टी0] से इंजीनियरींग कर रहा था। आज 2023 चल रहा है50 साल पूर होने वाले है । उन्होने पचास पहले क्या लिखा था आप भी इसे 50-साल पहले के संदर्भ में देखे--

"---किताबों की उम्र केवल पचास साल बाक़ी है। उसके बाद किताबों का चलन बन्द हो जाएगा, क्योंकि लोगो के पास ज्ञानवर्धन के वैकल्पिक साधन होंगे।आजकल जो लेखक लिख रहे हैं वो ये सुन कर सन्तुष्ट होंगे कि चलो उनके जीते जी ऐसा नहीं हो रहा। सारा दोष अगली पीढ़ी पर लगेगा, जिनके लिखते लोगों ने पढ़ना बन्द किया ----"

यह बात उन्होने तब कही जब उस समय वैकल्पिक साधन ---इन्टरनेट--फ़ेसबुक--ह्वाट्स अप--त्वीटर --अदबी मंच -फ़ेसबुक-- इन्स्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया जैसे प्लेटफ़ार्म नहीं थे --फिर भी उन्होने यह देख लिया। कहते हैं लेखक के जिह्वा पर कभी कभी सरस्वती आ विराजती हैं। हम आप पाठकों के लिए लिखते हैं। वह आगे लिखते है--

"---साहित्यकारों ने पिछले वर्षों में बड़े बड़े ’एन्टी’ आन्दोलन चलाए --अकहानी--अकविता -अनाटक। मगर आगे पाठक ’अपुस्तक’ का अन्दोलन चलाएगा।किताबों के इनकार का आन्दोलन और वह साहित्यकारों को बड़ा भारी पड़ेगा।-----पाठक की उपेक्षा कर लिखना अलग बात है, मगर पाठक की अनुपस्थितिमें लिखना, खाली हाल में नाटक खेलने के समान भयावह्है। यदि ऐसा हुआ तो हिंदी के लेखक कवियॊ का क्या होगा।-----

क्या आप को नहीं लगता कि इस बात में कितनी सच्चाई है।आज कितने मंच खुल गए सोशल मीडिया पर। हर कोई लिख रहा हर कोई छप रहा है हर कोई विभिन्न मंचों से सम्मानित हो रहा है पुरस्कार स्वरूप सर्टीफ़ाई भी हो रहा है मगर  उसे हर बार यह स्वयं बताना पड़ता है कि मैं यहाँ --मैं वहां--ये फोटो मेरी देखो--ये सर्टिफ़िकेट मेरा देखॊ--। जोशी जी आगे अपनी व्यथा का विस्तार देते हुए लिखते हैं--

"--किताबें छपती नहीं, छपती हैं तो बिकती नहीं., बिकती हैं तो पढ़ी नहीं जातीं पढ़ी जाती हैं तो वे पसन्द नहीं की जाती, पसन्द की जाती हैं तो सस्ती और सतही होती है जिन्हें न छापा जाए उसकी बड़ी संख्या है जो उसे पुस्तक ही नहीं मानते हैं।यहाँ लेखक और प्रकाशक पुस्तक नहीं, पुस्तक का भ्रम जीते हैं।पाँच सौ का संस्करण छपने पर पाँच-छह वर्ष में बिकता है, तब लगता है व्यर्थ ही छपा। कोरा कागज होता तो कहीं जल्दी बिक जाता। लेखक लिखने को अभिशप्त है,प्रकाशक छापने को,। केवल पाठक की स्वतन्त्र सत्ता है। वह खरीदने को अभिशप्त नही----।

क्या आप को नहीं लगता कि आज से पचास साल पहले कही गई ये सब बातें आज कितनी प्रासंगिक है? क्या आप को नहीं लगता कि अब आत्मावलोकन,विचार विमर्श का समय  आ गया है। कुछ भी लिख देना साहित्य नहीं होता। साहित्य के नाम पर मंच पर तमाशा दिखाना ,साहित्य साधना नहीं होती।क्या जाने अनजाने हम इस भीड़ का हिस्सा नहीं बन रहे हैं। जोशी जी ने और भी बहुत से बातें कहीं--सभी का यहाँ उल्लेख करना उचित नहीं ज़रूरत भी नहीं।क्या हिंदी में साहित्य लेखन हाशिया गतिविधि है, फ़ुरसत का धन्धा है?यदि आप साहित्य साधक है , साहित्य प्रेमी साहित्यानुरागी हैं तो इन सब विषयों पर आप भी सोचिए अन्यथा जैसे चल रहा है चलने दीजिए।

अस्तु


-आनन्द पाठक-