रविवार, 21 जून 2009

व्यंग्य 08 : एक ग़ज़ल की मौत ......

      एक ग़ज़ल की मौत

विवाहित कवियों को जो एक सुविधा सर्वदा उपलब्ध रहती है और अविवाहित कवियों को नहीं - वह है एक अदद श्रोता और वह श्रोता होती है उनकी श्रीमती जी -अभागिन अभागिन इसलिए कि वह हमारे जैसे चिरकुट कवि की धर्मपत्नी होती है अगर वह किसी हवलदार की पत्नी होती तो वह हमसे ज्यादा ही कमा कर लाता इसीलिए वह आजीवन अपने भाग्य को कोसती रहती हैं एक वह दिन कि आज का दिन वह तो विधि का विधान था कि इस कलम घिसुए कवि से शादी हुई कौन मिटा सकता है इसे.!हर कवि की आदि श्रोता वही होती है और अंतिम श्रोता भी वही -बेचारी उधर किसी गीत का मुखडा बना नहीं कि कवि महोदय के पेट में प्रसव-पीडा शुरू हो जाती है- कब सुनाए ,किसे सुनाए उस समय तो कोई मिलता है नहीं अत: पत्नी को ही आवाज़ लगाते हैं -'अरे ! भाग्यवान ! इधर तो आना एक गीत सुनाता हूँ -

'रोटी कपडा और मकान
कवियों का इस से क्या काम
रोटी कपडा और मकान "

'बोलो कैसी लगी ?'- कवि महोदय ने समर्थन माँगा
पत्नी इस कविता का अर्थ नहीं ,मर्म समझती है -अपना निठ्ठ्ल्लापन ढांप रहा है यह आदमी.जल्दी रसोई घर में भागती है .तवे पर रोटी छोड़ कर आई थी. रोटी पलटनी थी . देखा रोटी जल गई . सोचती है -क्या जला? रोटी ,दिल या अपना भाग्य? इनकी कविता सुनते-सुनते काश ! कि हम बहरे होते
ऐसी ही एक प्रसव-पीडा एक कवि जी को रात २ बजे हुई कि सोती हुई पत्नी को जगा कर एक अंतरा सुनाने की चेष्टा की थी.पत्नी ने उनके मुख पर तकिया रख कर दबा दिया फिर सारे अंतरा-मुखडा सुप्त हो गए कहते हैं कि वह एक विदुषी महिला थीं
परन्तु अविवाहित कवियों को एक जो सुविधा सर्वदा उपलब्ध होती है वह विवाहित कवियों को आजीवन उपलब्ध नहीं होती . चाहें तो वाजपेई जी से पूछ सकते हैं और वह सुविधा है रात्रि शयन में खाट से उतरना अविवाहित कवि स्वेच्छा से जिस तरफ से चाहें उतर सकता है बाएं से उतर सकता है ,दाएं से उतर सकता है .वह स्वतंत्र है स्वतंत्र लेखन करता है यह स्वतंत्रता विवाहित कवियों को नहीं है यही कारण है की विवाहित कवि या तो 'वाम-पंथी' विचारधारा के होते हैं या फिर 'दक्षिण-पंथी' विचारधारा के होते है जो खाट से उतरते ही नहीं वह 'निठ्ठल्ले" कवि होते हैं -नाम बताऊँ?
मगर शायरों की बात अलग है. एक बार ऐसा ही जच्चा वाला दर्द मुझे भी हुआ था . शे'र बाहर आने के लिए कुलांचे मार रहा था' 'मतला' हो गया (मिचली नहीं) .सोचा नई ग़ज़ल है .बेगम को सुनाते है -

तुमको न हो यकीं मगर मुझको यकीन है
रहता है दिल में कोई तुझ-सा मकीन है

'यह मकीन कौन है?कोई कमीन तो नहीं ? -बेगम ने शक की निगाह से पूछा
दिलखुश हो गया. चलो एक लफ्ज़ तो ऐसा लिखा जिसका मायने इन्हें नहीं मालूम. वज़नदार शे'र वही जिसका न तासीर समझ में आये न अल्फाज़ .लगता है शे"र अच्छा बना है मैंने बड़े प्यार से समझाया- 'मकीन माने जो घर में रहता है मकान वाला -उर्दू में मकीन बोलते हैं . उन्हें मेरे उर्दू की जानकारी पर फक्र हुआ हो या न हुआ हो मगर शुबहा ज़रूर हो गया की हो न हो मेरे दिल में उनके अलावा और भी कोई रहता है .मेरा कहीं लफडा ज़रूर है
यकायक चिल्ला उठी - मुझे तो पहले से ही यकीन था की ज़रूर तुम्हारा कहीं लफडा है आपा ठीक ही कहती थी कि ये शायर बड़े रोमानी आशिकाना मिजाज़ के होते हैं .इश्किया शायरी की आड़ में क्या क्या गुल खिलाते है ज़रा इन पर कड़ी नज़र रखना लगता है आपा ने ठीक ही कहा था
' बेगम तुम औरतों के दिमाग में बस एक ही बात घूमती रहती है अरे! इस शे'र का मतलब समझो ,शे'र का वज़न देखो -शायर कहना चाहता है की या अल्लाह ,परवरदिगार मेरे ,आप को यकीन हो न हो परन्तु हमें पूरा यकीन है की मेरे दिल में आप की मानिंद एक साया इधर भी रहता है
अभी मैं समझा ही रहा था की बेगम साहिबा बीच में ही चीख उठी -" चुप रहिए! हमें चराने की कोशिश न कीजिए .हम वो बकरियां नहीं कि आप चराएं और हम चर जाएँ. आप क्या समझते हैं की हमे आप की नियत नहीं मालूम !,नज़र किधर है नहीं मालूम !हमे सब मालूम्हें .अरे! यह शायर लिखते तो है अपने उस 'छमक-छल्लो' के लिए और नाम लेते है 'खुदा' का . अल्लाह का > अरे कमज़र्फ़ आदमी !शर्म नहीं आती परवरदिगार को बीच में लाने पर.
" कौन है वह?'-उन्होंने गुस्से में आँख तरेरते हुए पूछा
'कौन? -मैंने सकपकाते हुए पूछा
' अरे! वही कलमुंही ,मकीन,कमीन यकीन जो भी नाम हो उसका जो तुम्हारे दिलमें दिल-ओ-जान से रहती है ?'
'लाहौल विला कूवत. लानत है तुम्हारी समझदारी पर '
'हाँ हाँ !अब तो लानत भेजोगे ही मुझ पर जब शादी कर के लाए थे तब लानत नहीं भेजी थी '
'बेगम साहिबा ! तुम तो समझती ही नहीं '
'हाँ हाँ अब मैं क्यों समझने लगूं. तुम क्या समझते हो कि हमें शे'र समझने की तमीज नहीं !अरे! हमने भी कमेस्ट्री से एम० ए० किया है हम ने भी हाई स्कूल तक हिंदी पढ़ी है .खूब समझती हूँ तुम्हारी ग़ज़ल और ग़ज़ल की असल ....
फिर क्या होना था .वही हुआ जो ऐसे मौके पर हर पत्नी करती है -रोना-धोना सर पीटना (अपना) अचूक अस्त्र अचूक निशाना
अब ग़ज़ल का अगला शे'र क्या सुनाना
०० ०० ००००००
शायरों की यही तो कमज़ोरी है .इस तरह की दाद पर मायूस हो जाएं तो हो चुकी शायरी अरे! शायरी तो दीवानापन है ,बेखुदी है.सड़े अंडे-टमाटर की परवाह कौन करे मजनू ने की थी क्या? महीने गुज़र गए अब तक तो बेगम का गुस्सा भी ठंडा हो गया होगा चलते हैं दूसरा शे'र सुनाते हैं -

ताउम्र इसी बात की जद्द-ओ-ज़हद रही
अपनी ज़मीन है या उनकी ज़मीन है

अभी शे'र का काफिया ख़त्म भी न हुआ था की बेगम साहिबा एक बार फिर भड़क उठी -"हाय अलाह !अब ज़मीन जायदाद भी उसके नाम कर दिया क्या! "
"अरे! चुप ,किस की बात कर रही हो तुम?"
"अरे! तुम्हारे कमीन - मकीन की "
"या अल्लाह इस नाशुक्री बीवी को थोडा-सा अक्ल अता कर वरना तुम्हारा यह शायर इस कमज़र्फ़ बीवी के हाथों ख्वामख्वाह मारा जाएगा मैंने तो यह शे"र तुम्हारी शान में पढा था यह जिस्म यह जान किस की है ..अपनी या तुम्हारी ...."
"पहले ज़मीन-जायदाद का कागज़ दिखाओ ..ज़रूर उस सौतन को लिखने का इरादा होगा ...." बेगम साहिबा ने मेरा हाथ ही पकड़ लिया
अब इस शे'र के मानी क्या समझाते अगला शे'र क्या सुनाते चुप ही रहना बेहतर समझा
०० ०००००००००
अब मैंने यह तय कर लिया की अब इस औरत को न कोई शे'र सुनाना, न कोई ग़ज़ल इस से अच्छा तो किसी चाय की दुकान पे सुनाते तो कम से कम चाय तो मिलती.घर की मुर्गी साग बराबर .इस औरत के लिए तो घर का जोगी जोगडा ...इसे मेरी औकात का क्या पता आज शाम नखास पर मुशायरा है बड़े अदब से बुलाया है उन लोगो ने अपनी शेरवानी निकाली.चूडीदार पायजामा पहना,फर की टोपी पहनी ,आँखों में सुरमा लगाया ,कानो के पास इतर लगाया ,करीने से रुमाल रखा.फिल्मवालों ने यही ड्रेस कोड तय कर रखा है हम जैसे शायरों के लिए .शायरी में दम हो न हो मगर ड्रेस में तो दम हो .
कवि की बात अलग है ,शायरी की बात अलग वीर रस के कवि हैं तो मंच पर आये ,हाथ-पैर पटक गए,श्रृंगार रस के कवि हैं तो आए और लिपट गए, करुण रस के कवि हैं तो रो-धो कर निपट गए मगर शायरी ! शायर को एक एक शे'र तीन-तीन बार पढ़ना पड़ता है फिर देखना पड़ता है किधर से गालियाँ आ रही है ,किधर से तालियाँ .हम गुमनाम शायरों के लिए सड़े अंडे-टमाटर तो छोड़ दीजिए यहाँ भी 'ब्रांड-वैल्यू' बिकता है नामचीन शायर है तो मंच पर आने से पहले 'तालियाँ बजती हैं ,हम जैसों के लिए जाने के बाद 'तालियाँ' बजती है -गया मुआ ! पता नहीं कहाँ -कहाँ से पकड़ लाते हैं यह प्रोग्राम वाले.
अब तो ड्रेस पर ही भरोसा था .शीशे के सामने खड़े हो कर शे'र अदायगी का रिहर्सल कर रहा था -

दीदार तो नहीं है चर्चे मगर सुने -
वह भी किसी हसीं से ज्यादा हसीन हैं

पीछे से किसी ने ताली बजाई ,सामने से मैंने शुक्रिया अदा किया .मुड़ कर देखा बेगम साहिबा हैं.-'वाह ! वाह ! सुभान अल्लाह !सुभान अल्लाह !क्या शे'र मारा है .अब जाओ दीदार भी कर लो ,बेकरार होगी .कब्र में पाँव लटकाए बैठे है ज़नाब की न जाने कब फाख्ता उड़ जाय ...वह भी हसरत पूरी कर लो ....'-बेगम साहिबा ने भडास निकाली .
'बेगम ! किसकी बात कर रही हो?'
'अरे! उसी कलमुंही कमीन मकीन की.हसीन हैं न ! हम से भी ज्यादा हसीन है न '
'लाहौल विला कूवत ! कमज़र्फ़ औरत! शे'र समझने की तमीज नहीं तमीज होगी भी कैसे -सास बहू सीरियल देखने से.टेसूए बहाने से .किट्टी पार्टी करने से फुरसत होगी तब न ,शायरी समझने की तमीज आयेगी '
'हाँ हाँ ,हमें क्यों तमीज आयेगी ! सारी तमीज या तो उस छमकछल्लो के पास है या आप के पास है '
'बेगम ! इस शे'र का मतलब तुम नहीं समझती हो ,इस का मतलब है या मेरे मौला ,परवरदिगार जिन्दगी गुजर गयी मगर आज तक दीदार नहीं हो सका ,मगर खुदा के बन्दे बताते है की आप इस ज़हान के सब से खूबसूरत हसीन .....'
देखिए जी .कहे देती हूँ !हमें इतनी भोली मत समझिए ,हमारे अब्बा ने मुझे भी तालीम दी है ,हमें भी अदीब की जानकारी है हम उड़ती चिडिया के पर गिन सकते हैं ,खुली आँखों से सुरमा चुरा सकते हैं आप हम से नज़रें नहीं चुरा सकते हैं .....वो तो मेरे करम ही फूटे थे की......'-कहते -कहते रो पडी

फिर उसके बाद क्या हुआ ,विवाहित पाठकों की कल्पना पर छोड़ देता हूँ वहां से जो भागा तो मुशायरे में जा कर ही दम लिया .पूरी ग़ज़ल वहीँ पढ़ी -गालियाँ मिली या तालियाँ आप स्वयं ही समझ लें
अस्तु

-आनन्द पाठक---

शुक्रवार, 12 जून 2009

व्यंग्य 07 :विश्वासमत और छींक .....

राजनैतिक गहमागहमी व उठापटक के मध्य सदन-पटल पर एक पंक्ति का प्रस्ताव रखा गया - यह सदन सरकार के प्रति अपना विश्वास प्रगट करता है
अध्यक्ष जी ने ,सदन की कार्यवाई शुरू करते हुए चर्चा में भाग लेने हेतु 'क' जी का नाम पुकारा 'क' महोदय जैसे ही अपना पक्ष रखना शुरू किया -'माननीय अध्यक्ष जी ! इस सदन के माध्यम से मैं यह कहना चाहूँगा कि वर्तमान सरकार ..... तभी अचानक किसी ने बिना नाक पर रुमाल रखे एक जोरदार छींक मारी कि सारा सदन गूंज गया .सभी लोग उनकी ओर देखने लगे ज्ञात हुआ कि वह किसी विपक्षी दल के सदस्य थे
विश्वासमत पर बहस के प्रारम्भ में ही यह छींक ! किसी अनागत अनिष्ट कि आशंका से सत्तापक्ष चिंतित हो गया प्रथम ग्रासे मच्छिका पात: नहीं छींक पात: यह छींक शुभ नहीं है प्रस्ताव गिर सकता है .सरकार गिर सकती है सतापक्ष मैं बेचैनी बढ़ने लगी तभी अचानक सत्तापक्ष के एक त्रिशूलधारी सदस्य खड़े हो गए
'अध्यक्ष जी ! अभी-अभी विपक्ष के किसी मित्र ने इस भरे सदन में एक छींक मारी है जो उचित नहीं है .यह छींक किसी आने वाले अनिष्ट का संकेत मात्र है ...शास्त्रों में लिखा है ...
" सम्मुख छींक लड़ाई भाखे
छींक दाहिने द्रव्य विनाशे
"पहले आप बैठिये ! प्लीज़! "-अध्यक्ष महोदय ने आग्रह किया
" महोदय ! खेद है मैं यहाँ बैठने हेतु नहीं आया हूँ मैं अपने चुनाव क्षेत्र से खडा हो कर आया हूँ .क्षेत्र की समस्याओं को खडा करने आया हूँ .देश की ....'
"प्लीज़ आप चुप रहिये 'क' जी को अपनी बात कहने दीजिये .आप का जब क्रम आएगा तो अपनी बात कहियेगा '
" अध्यक्ष जी ! छींक तो उस ने अभी मारी है .जब अनिष्ट हो ही जाएगा ,विशवास मत गिर ही जाएगा तो कहने को क्या रह जाएगा !?
"नहीं ,नहीं, प्लीज़ उस से पहले आप को मौका दिया जाएगा."
" अभी आप बैठे ,प्लीज़ आप चुप रहे सदस्य 'क' को बोलने दें...'क' जी आप चालू रहे .'- अध्यक्ष जी ने अपनी व्यवस्था दी.
'क' जी ने गतांश से आगे कहना शुरू किया -."हाँ तो मैं कह रहा था कि....."
अचानक तीन-चार भगवाधारी सदस्य एक साथ खड़े हो समवेत स्वर में कहना शुरू किया ---"सर!यह छींक भारतीय संस्कृति से जुडा प्रश्न है..विशेषत: हिन्दू संस्कृति से. महोदय यह एक गंभीर प्रश्न है...
ऊँची छींक कहे जयकारी
नीची छींक होय भयकारी
" प्लीज़ !आप तीनो ,नहीं चारो बैठ जाए "क' जी को बात कहने दें.
" महोदय अगर हम बैठ गए तो हिन्दू-संस्कृति बैठ जायेगी ,करोडों हिन्दुओं का विश्वास बैठ जाएगा धर्म बैठ जाएगा . विश्वासमत पर छींक शुभ नहीं है."
" अध्यक्ष जी ,यह धरम-करम की बातें कर रहे हैं' -कई तिरंगाधारी के साथ खड़े हो गए.
"छींक विपक्ष के सदस्य ने मारी है "
"छींक 'क' जी के पृष्ठ भाग से मारी है इसका फलाफल प्रभाव कम होता है"-एक सदस्य ने चुटकी ली
'तो क्या ! मारी तो अध्यक्ष जी के सम्मुख ही न ! इसका प्रभाव अनिष्ट होता है '- किसी दूसरे सदस्य ने चुटकी ली.
'यह भारतीय संस्कृति की अस्मिता का प्रश्न है -कमंडलधारियों ने कहा
"यह सरासर 'कम्युनलिज्म' है '--लाल झंडा वालों ने कहा
'यह दलित सदस्य का अपमान है '- नीला झंडा धारियों ने कहा -" यह साजिश है षडयंत्र है '
'यह व्यवस्था का प्रश्न है '-एक खैनी-सुरती ठोकने वाले ने कहा
'प्लीज़ प्लीज़ आप लोग शांत हो जाए '-अंत में अध्यक्ष जी ने कहा -प्लीज़ आप बैठ जाए.'क' जी को अपनी बात कहने दें .हाँ 'क' जी आप चालू रहें '
विश्वास मत पर गंभीर बहस चल रही थी क्यों की स्थिति उत्तरोत्तर गंभीर होती जा रही थी.लोकतंत्र समृद्ध हो रहा था क्यों कि लोग चीखने -चिलाने कि कला में समृद्ध हो रहे थे.सदन में सरकार के भाग्य का फैसला होना है लोग देश कि अस्मिता पर बहस कर रहे थे,छींक पर बहस कर रहे थे .सच भी है .आदमी रहेगा तो छींक रहेगी ,छींक रहेगी तो संस्कृति का प्रश्न उठेगा.भारत कि अस्मिता का प्रश्न उठेगा.फिर देश रहेगा तो सरकार रहेगी.सरकार का क्या है ! आनी-जानी है.परन्तु नासिका-रंध्र से निकली छींक वापस नहीं जानी है.अत: विचार और बहस इस मुई छींक पर ही होनी चाहिए.
अध्यक्ष जी के आदेशानुसार 'क' महोदय ने अपना वक्तव्य गतांश से आगे पढ़ना शुरू किया -' धन्यवाद अध्यक्ष जी ! हाँ तो मैं कह रहा था कि जब से यह वर्तमान सरकार ...."
'महोदय यह व्यवस्था का प्रश्न है '- त्रिशूलधारी जे ने ,जो अबतक खड़े थे,गोला दागा -विश्वास मत पर बहस से पहले छींके गए अशुभ छींक जैसे गंभीर विषय पर बहस होनी चाहिए '
'अरे! आप अभी तक बैठे नहीं?प्लीज़ पहले आप बैठ जायें. '-अध्यक्ष जी ने कहा -'क' जी को अपनी बात कह लेने दीजिये /हाँ तो 'क' जी आप चालू रहें...
लोकतंत्र की आधी उर्जा सदस्यों को मनाने में लग जाती है और आधी उर्जा रूठे सदस्यों को चुप कराने में लग जाती है.सरकारी कार्य निष्पादन हेतु उर्जा बचती ही नहीं अत; सारे विकास कार्य बिना उर्जा के ही चलता है .यही भारतीय लोकतंत्र का 'आठवां' आर्श्चय है .
'क' जी ने कहना शुरू किया -'हाँ तो मैं कह रहा था कि यह सरकार .......
सदन के एक कोने से एक निर्दलीय जी अचानक उठ खड़े हुए और कहने लगे '....महोदय! विपक्षी पार्टियों की यह छींक कोई साधारण छींक नहीं है यह राजनैतिक छींक है एक सोची-समझी रणनीति के तहत छींक है यह एक साजिस है एक षडयंत्र है ...'
'प्लीज़ ! आप चुप हो जाए ,आप को भी मौका मिलेगा. पहले 'क' जी को अपनी बात कह लेने दीजिये प्लीज़ प्लीज़ ! नो नो इट इश नॉट फेयर .- अध्यक्ष जी ने कहा
" महोदय ! अगर मैं चुप हो आया तो मेरे क्षेत्र की जनता चुप हो जायेगी,देश गूंगा हो जाएगा .हो सकता है विश्वास मत गिर जाने के पश्चात पुन: चुनाव क्षेत्र में जाना पड़ जाए तो क्या मुंह दिखाऊंगा "
" मुंह नहीं ,मुखौटा दिखाना ...'-एक सदस्य ने चुटकी ली
निर्दलीय जी को न बैठाना था ,न बैठे .अपनी बात पर अडे रहे
"....तो क्या मुंह दिखाऊंगा .इस छींक में विरोधियों के साजिस की घिनौनी बू आ रही है ..." और झट से नाक पर एक रुमाल रखते हुए पुन: कहा --'...हमारे मित्र ने स्वयं नहीं छींका है उन से छींकवाया गया है कि विश्वास मत को अशुभ कर दें. इसमें किसी विदेशी शक्ति का भी हाथ हो सकता है .मैं नाम नहीं लेना चाहता परन्तु हम क्या ,आप क्या सारा सदन जानता है कि साथ वाली पार्टी में विदेशी शक्ति कौन है ..."
'प्लीज़ ! प्लीज़ ! आप चुप हो जाइए ...नो..नो.. पहले आप...देखिये आप के इस अंश को सदन की कार्यवाही से निकाल दूंगा..."-अध्यक्ष जी अपनी व्यवस्था सुनाई
कमलधारी जी को इस से क्या अंतर पड़ता है की उनके बहस के इस अंश को सदन की कार्यवाही में रखा जा रहा है या निकाला जा रहा है .उन्हें कौन सा अपने क्षेत्र की जनता को पढवाना है .जनता ही कौन सी पढी लिखी है. जो पढ़े लिखे हैं वो चुनाव में वोट देने जाते नहीं . अत: उन्होंने व्यवस्था की परवाह किए बिना अपना वक्तव्य जारी रखा -"... हो सकता है इस में किसी स्वदेशी शक्ति का हाथ हो .इस छींक के पीछे धोती-कुर्ताधारी भाई जी का हाथ हो जो सदन में अभी-अभी खैनी-सुरती बना कर ठोंक रहे थे ..."
" छीकने पर पार्टी ने व्हिप जारी नहीं किया है "- सुरती-खैनी भाई साहब ने आपत्ति जतायी
कमलधारी जी चालू रहे "...यही वह साजिस है जो लोकतंत्र को खोखला बनाती है और यह छींके सदन की गरिमा गिराती हैं "
'प्लीज़ ! प्लीज़ !! आप चुप जाइए . अगर आप चुप नहीं होंगे तो मैं सदन स्थगित कर दूंगा '- अध्यक्ष जी ने कहा --' प्लीज़ देखिये मैं पैर पर खडा हूँ . स्पीकर इज ऑन लेग ."
" वह भी पैरों पर खडा है ...सिर्फ बेंच पर खडा होना बाकी है '- किसी ने चुटकी ली. लोग उचक-उचक कर यह देखने लगे कौन किस के पैर पर खडा है.
'क' जी आप चालू रहे '-अध्यक्ष जी ने कहा
'महोदय ! पहले आप उस कमलधारी के बच्चे को तो चुप कराइए"
"प्लीज़!आप जल्दी-जल्दी चालू रहिये जब आप बोलेंगे तो वह चुप हो जाएगा '
भारतीय लोकतंत्र इस तरह जल्दी जल्दी आगे बढ़ रहा था
'अ' जी ने अयाचित सुझाव दिया -' अरे! काहे का तंत मजाल किए हैं 'क' जी ! छोडिये न ' पुराणो में लिखा है -
एक नाक दो छींक
काम बने सब ठीक
तो मार दीजिये एक छींक आप भी"
अब 'क' जी का मुखारविंद अध्यक्ष महोदय जी की तरफ से हट कर 'अ' जी की तरफ हो गया .गोला उगलते तोप का मुंह घूम गया
'का बात करते है 'अ' जी ? इ तंत मजाल है?यह छींक का प्रश्न नहीं है. हम लोग तो रोजे खैनी-सुरती ठोंकते रहते हैं ...छींक मारते रहते हैं...आज सदन की गरिमा का प्रश्न है ...देश की सौ करोड़ जनता का प्रश्न है /"
अचानक सदन के एक छोर से १०-१५ सदस्य एक साथ उठ खड़े हुए और आपत्तियां उठाने लगे -'क' जी ने अमर्यादित व असंसदीय भाषा का प्रयोग किया है .यह सदन की अवमानना है .देश का अपमान किया है यह हमारे विशेषाधिकार का हनन हुआ है . कुत्ते के बच्चे हो सकते है , ,आदमी के बच्चे हो सकते है मगर कमलधारी के बच्चे नहीं हो सकते ...यह भारतमाता की अस्मिता का प्रश्न है .../भारत माता की जय ..वन्दे मातरम का नारा लगाते हुए सदन की 'वेळ' में आ गए
दूसरे छोर से कुछ तिरंगाधारी ---हाय हाय ! भगवाधारी हाय हाय ! के नारे लगाते हुए सदन के 'वेळ' में आ गए अध्यक्ष जी प्लीज़ प्लीज़ करते करते खड़े हो गए सदन के बाईं तरफ से लाल-झंडे वाले 'साम्प्रदायिक शक्तियां ! धर्म ढोंगियों हाय हाय ! ' के नारे लगाते सदन के 'वेळ' में आ गए.तीसरे कोने से " तिलक त्रिपुंडी हाय हाय ! तिलक तराजू हाय हाय !मनुवादी सब हाय हाय ! के नारे लगाते हुए हाथी छाप वाले भी 'वेल' में आ गए
इसी बीच ,कुछ हाथी छाप वालों ने एक जोरदार नारा उछाला -'तिलक तराजू और तलवार ,इनको मारो जूते चार'....'और सचमुच एक सदस्य ने अति-उत्साही नेता के आह्वान पर जूता चला दिया फिर क्या था ! दूसरे सज्जन ने अपना जूता खोला तो पूरे सदन में दुर्गन्ध फ़ैल गई लोगो ने तुंरत अपने-अपने रुमाल निकाल कर अपने-अपने नाक पर रख लिए .किसी एक सज्जन ने टेबुल से माइक उखाड़ कर प्रक्षेपास्त्र की तरह प्रहार किया .कोई लेज़र गाईडेड मिसाइल तो थी नहीं कि किसी विपक्षी दल के सदस्य कि ही लगती .अत: चूक वश अपने ही दल के सदस्य को जा लगी .वाकयुध्द शुरू हो गया .तुंरत हाईकमान से शिकायत की गई -'यह तो सरासर अनुशासनहीनता है ,निकालिए इसे पार्टी से बाहर .इसी ने मेरे चुनाव क्षेत्र में भीतरघात किया था अब सदन में प्रक्षेपास्त्र प्रहार कर रहा है .इसे निलंबित किया जाए ..." हाईकमान धृतराष्ट्र बने बैठे है .पीड़ित सदस्य को आश्वासन दे रहे हैं -'अभी निलंबन से विश्वासमत गिरने का खतरा है ' दो-चार सदस्य इन दोनों सदस्यों को मनाने-छुडाने में लग गए .
उधेर 'वेल' में धक्कम-धुक्का जारी है .कोई हस्त-प्रहार कर रहा है तो कोई पद प्रहार सब गडम गड .कौन क्या बोल है ? कुएँ में बहुत मेढक हो गए है टर-टर के अलावा कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा है संभवत: विश्वासमत पर जोरदार बहस चल रही है .एक सदस्य ने दूसरे सदस्य को पटकनी दे मारी और उनके सीने पर आसीन हो कर जिज्ञासा शांत कर रहे थे -"...कहता है हम बाहु-बली हैं ..बोल हम बाहुबली हैं?.
संभवत: पहले सदस्य पहलवान थे जो निर्वाचित हो कर सदन में आ गए थे "मैं नहीं मेरी पार्टी कहती है "- नीचे दबे व्यक्ति ने अपना हाथ छुडाते हुए कहा पास खड़े दो-चार सदस्य उत्साह वर्धन कर रहे थे "...उठिए नेता जी ! दीजिये दो -चार धोबिया पाट से ,सारी पहलवानी निकल जायेगी "
इस महायुद्ध से अलग ,दो गांधी टोपीधारी सदन के कोने में भयवश एक बेंच के नीचे छुपे पड़े आपस में कह रहे थे "...गांधी बाबा ने ठीक ही कहा था की इस पार्टी को आजादी के बाद भंग कर देना चाहिए > भईया मेरी पत्नी का टिकट काट दिया था हाईकमान ने . कह रहे थे की आप की पत्नी बूढी हो गई हैं. युवाओं को टिकट देना है . अब दो और युवाओं को टिकट .भुगतो अब नतीजे ....दूसरे गांधीवादी ने अपनी पीडा उड़ेली
उधर धक्कम-धुक्का जारी है .अध्यक्ष महोदय बीच-बीच में प्लीज़ प्लीज़ बोलते जा रहे है .एक सदस्य ने दूसरे सदस्य का कुर्ता फाड़ डाला तो छुपे हुए कई घोटाले प्रगट हो गए .एक ने तो दूसरे की धोती खोलने का प्रयास किया तो वह धोती छोड़ भाग कर अपनी सीट पर जा बैठे .एक महिला सदस्य ने तो पास खड़े एक सदस्य को दांतों से काट लिया .कहते है महिला अपने क्षेत्र की 'विष-कन्या " थी .संयोग अच्छा था कि ज़हर चढा नहीं क्यों की दाँत नकली थे
वैसे इस 'वेल-युद्घ' को तृतीय महायुद्ध तो नहीं कहा जा सकता परन्तु मित्र व अमित्र दल अपने-अपने सदस्यों के साथ नारे लगाते सदन के 'वेल' में आते जा रहे थे . कोई नारा लगा रहा था ' हिंदी वाले हाय ! हाय !' तो तड़ से प्रत्युत्तर में ' उर्दू वाले हाय ! हाय ! ' नारा लगाने लगे
" अरे यार !हिंदी के विरोध में 'तमिल-कन्नड़ ' चलता है उर्दू नहीं. उर्दू तो तब चलेगा जब धर्म का मसला उठेगा.सहयोगियों ने संशोधन प्रस्तावित किया
विश्वासमत पर बहस जारी है .स्पीकर महोदय प्लीज़ प्लीज़ कर रहे है लोकतंत्र आगे बढ़ रहा है जो शरीर से समृद्ध है वो बहस को समृद्ध कर रहे हैं विचारों व तर्क से जो पटकनी नहीं दे पा रहे हैं वो शरीर से पटकनी दे रहे हैं .सदस्यों के कुर्ते फाड़े जा रहे हैं परन्तु लोकतंत्र तार-तार नहीं हो रहा है.टोपिया उछाली जा रही है परन्तु भारत का लोकतंत्र आज भी विश्व में शीर्ष पर है .यही भारत की अनेकता में एकता है.धमा-चौकडी ,शोर-शराबा ,मार-पीट में सभी एक हो जाते है चाहे वह किसी दल,धर्म क्षेत्र,जाति,रंग,के हों.सभी लोग संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति के अधिकारों का मुक्त कंठ ,मुक्त हस्त ,मुक्त पद,से गाली-वाचन,हस्त-प्रहार व पद-प्रहार कर अपनी पौरुषता व कुरता फाड़ दक्षता का प्रदर्शन कर रहे हैं.समान अवसर प्राप्त है सबको.जनता टी० वी० पर दृश्य देख मगन है .सदन के 'वेल' में जाते हुए नेताओं को यह एहसास नहीं कि सदन के बाहर कि जनता 'वेल(कुँआ) ' में जा रही है
सदन कि दशा व दिशा देख ,अध्यक्ष महोदय ने घबरा कर सभा मध्याह्न काल तक स्थगित कर दी.
०० ००० ००००
भोजनोपरांत सदन कि कार्यवाही पुन: प्रारंभ हुई .सदस्यगण अपने-अपनी सीट ग्रहण कर चुके हैं
" ख' जी आप अपना पक्ष प्रस्तुत करे"-
'ख' जी एक महिला सदस्य थी .सुन्दर थी.जब से राजनीती में अभिनेत्रियों का आना शुरू हो गया है सदन में सौन्दर्य वृद्धि हो गई है जब ये सदस्याएं उठती है तो पूरा सदन बड़े ध्यान से सुनने के बजाय देखने में मगन हो जाता है.जैसे ही उक्त महिला ने अपना वक्तव्य पढ़ना शुरू किया -"...मैं आप का ध्यान अपने पक्ष के दो बिन्दुओं पर आकर्षित करना चाहूंगी..." कि अचानक सदन में हंसी कि लहर दौड़ गई .अब पूरे सदन का ध्यान उनके दो बिदुओं कि तरफ आकर्षित हो गया .स्थिति स्पष्ट होते ही उन्होंने अपना पल्लू खीच लिया और कहा ...'मेरा मंतव्य था...कि ..."
तभी अचानक 'क' जी उठ खड़े हुए और कहने लगे -'अध्यक्ष महोदय ! अभी मेरा भाषण पूरा नहीं हुआ है."
"नहीं,नहीं, आप बैठिये आप का समय पूरा हो गया .आप को पूरा मौका दिया गया "
"यह तो मौलिक अधिकार का हनन है ,लोकतंत्र कि ह्त्या है"
"प्लीज़ आप चुप रहे हाँ 'ख' जी आप चालू रहे "
तभी अचानक सदन में कई सदस्य एक साथ उठ खड़े हुए और समवेत स्वर में बोलना शुरू किए "...महोदय ! अभी छींक पर सदन का फलित विचार शेष है ..."
"प्लीज़ ! प्लीज़ ! आप सब बैठे "
वाही हंगामा पुन: शुरू हो गया
०० ००० ०००
लगता है हमारा लोकतंत्र अभी 'क' 'ख' 'ग' से आगे नहीं बढ़ सका ।

-आनंद

मंगलवार, 2 जून 2009

व्यंग्य 06 : बड़े साहब का बाथरूम ... ....

ट्रिन ! ट्रिन !-टेलीफोन की घंटी बजी 'हेलो !हेलो! ,बड़े साहब हैं?""आप कौन बोल रहे हैं?": आफिस से बड़ा बाबू बोल रहा हूँ "" तो थोडी देर बाद फोन कीजिएगा ,साहब बाथरूम में है " बड़ा बाबू का माथा ठनका रामदीन तो कह रहा था की साहब आज घर पर ही है तो वह बाथरूम में कब घुस गए हूँ ! साहब लोगों के बाथरूम भी क्या चीज़ होती होगी होती होगी कोई चीज़ मस्त-मस्त हमें क्या! 'बाथरूम' का यदि शब्दश: हिंदी रूपान्तर किया जाय तो अर्थ होता है -'स्नान-घर' परन्तु जो बात अंग्रेजी के 'बाथरूम' में होता है वह हिंदी के 'स्नान-घर में नहीं "बाथरूम" शब्द से एक अभिजात्य वर्ग का बोध होता है -टाइल्स लगी हुई दीवार ,मैचिंग करते हुए बेसिन ,शीशे- सी चमकती हुई फर्श ,हलकी-हलकी फैली हुई गुलाब की खुशबू की जो कल्पना 'बाथरूम ' से उभरती है वह चिथड़े गंदे टंगे परदे हिंदी के स्नान-घर से नहीं।ज्ञातव्य है की साहब लोगों के बाथरूम में मात्र स्नान कर्म ही नहीं होता अपितु 'नित्य-कर्म' का निपटान भी होता है. जन साधारण के लिए 'साहब बाथरूम में है " का सामान्य अर्थ होता है कि साहब 'दैनिक-निपटान-क्रिया ' में व्यस्त हैं. उस दिन श्रीमती जी एक सहेली आई थीं .गोद में ६ महीने का एक बच्चा भी था.थीं तो 'भृगु-क्षेत्र' (बलिया) की परन्तु जब से रांची आई है इधर दो-चार अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करना सीख रही हैं.वह अंग्रेजी भी भोजपुरी शैली में बोलती हैं उदाहरणत: -'जानती हैं भाभी जी इस्कूल-उस्कूल में पढाई-लिखाई नहीं होती हैं न ,गौरमिंट के इम्प्लाई है सब टीउशनवे में मन लगता है उस दिन सोफे पर बच्चे ने सू-सू कर दिया ,बेचारी सकुचा गई '....लो लो लो राजा बाबा ने सोफे पर "बाथरूम' कर दिया ना॥ना..ना.. तब मुझे बाथरूम शब्द का एक और व्यापक अर्थ मिला सत्य भी है- शब्द वही जो श्रोता को अपना अभीष्ट अर्थ सम्यक प्रेषित करे एक घंटे पश्चात ,बड़े बाबू ने पुन: फोन किया /घंटी बजी ,किसी ने टेलेफोन उठाया बोला-'अरे! कह दिया न साहब बाथरूम में है ' थोडी देर बाद टेलीफोन कीजिएगा ...'बड़े बाबू सोचने लगे कि यह साहब लोग भी क्या चीज़ होते है ,हमेशा बाथरूम में ही बैठे रहते हैं 'बाथरूम न हुआ ड्राइंग रूम हो गया सत्य भी है बड़े बाबू को साहब लोगो के बाथरूम कि कल्पना भी नहीं होगी .होती भी कैसे? गाँव-गिरांव में ऐसे बाथरूम तो होते नहीं.उस कार्य के लिए वहां खेत है ,मैदान है .नीचे खुली ज़मीन है ऊपर आसमान है और शहर में? एक अदद सरकारी क्वार्टर है जिसमे मात्र एक बाथरूम है बाथरूम भी इतना छोटा कि मात्र 5 मिनट में दम घुटने लगता है .अत: जल्दी बाहर आ जाते है दियासलाई का डिब्बा भी उनके बाथरूम से बड़ा होता है. बकौल बशीर साहेब :-'पाँव फैलाऊं तो दीवार से सर लगता है' यही कारण है कि छोटे कर्मचारी बाथरूम में कम ही पाए जाते है. यह बात अन्य है कि उचित रख-रखाव व अनुरक्षण के अभाव में पूरा का पूरा कमरा ही बाथरूम नज़र आता है मगर साहब लोगो का बाथरूम ? जितना बड़ा साहब उतना बड़ा बाथरूम .अगर श्रेणी चार का आवास है तो २ बाथरूम ,श्रेणी 5 का आवास है तो ३ बाथरूम .अगर निजी आवास है तो कई बाथरूम .हो सकता है कई कमरें में संलग्न बाथरूम हो.जितने बाथरूम होते है उतनी ही दुर्गन्ध फैलती है .ऐसे ही लोग समाज में ज्यादा गंध फैलाते है.कभी यह घोटाला ,कभी वह घोटाला.पास बैठेंगे तो विचारों से भी दुर्गन्ध आती है.फिर बड़ी शान से बताते हैं कि कैसे वह 'रिंद के रिंद रहे सुबह को तौबा कर ली 'क्या बिगाड़ पाई सी०बी०आइ० ,कोर्ट-कचहरी या व्यवस्था ?सूना है हिरोइनों के बाथरूम काफी बड़े व महंगे होते है.लाखो रुपये कि तो इतालियन मार्बल ही लगी रहती है चाहे तो आप अपना चेहरा भी देख सकते हैं बशर्ते कि काले धन से आप का चेहरा काला न हो गया हो एक बार पढ़ा था कि अमुक हिरोइन के बाथरूम के जीर्णोध्दार मात्र में उस ज़माने में १० लाख का खर्च आया था .अब यह बात डिब्बी वाले बाथरूम के बड़ा बाबू क्या समझेंगे !वर्मा जी ने अपना बाथरूम बहुत बड़ा बनवाया था .आयकर विभाग में अधिकारी थे .उन्होंने संगमरमरी फर्श के अतिरिक्त काफी साज-ओ-सामान लगवा रखा था .गर्म पानी केलिए गीजर, ठंडे पानी के लिए फ्रिज ,केबुल टी०वी० ,एक बुक-स्टैंड ,कुछ पत्रिकाएँ ,कुछ किताबें ,एक कोने में एक सोफा भी डाल रखा था सुबह ही सुबह अपना मोबाईल फोन व समाचार पत्र लेकर बाथरूम में जो घुसते तो दो घंटे बाद ही निकलते .समाचार भी पढ़ते तो पत्र का नाम -पता-अंक-वर्ष- प्रकाशन संस्करण से लेकर प्रकाशक-मुद्रक तक पढ़ डालते थे एक अधिकारी थे शर्मा जी . किसी राज्य स्तरीय घोटाले में लिप्त थे .सोचते थे मेरे घोटाले से वर्मा का घोटाला ज्यादा सफ़ेद क्यों.? मेरे बाथरूम से वर्मा का बाथरूम बड़ा क्यों? क्यों वर्मा ने बाथरूम में केबुल टी०वी० फ्रिज टेलीफोन लगा रखा है ? स्साले का बाथरूम न हुआ ड्राइंग रूम हो गया अत: शर्मा जी ने 'बाथरूम ' को बड़ा करने के बजाय बाथरूम को ही अपने ड्राइंग रूम में लेते आये.अब उनका दीवान भी समंजित हो गया .आत्म-तुष्टि हो गई .उनको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह पहले से ज्यादा स्पष्ट नंगा नज़र आने लगे.पूछने पर कहते हैं '...हमने तो छुप-छुपा कर ही घोटाला किया था परन्तु यह सी०बी०आइ० वालों ने नंगा कर दिया .अब बचा ही क्या है छुपाने के लिए ? और बाथरूम में तो यूँ ही सब नंगे होते है .मेरा ड्राइंग रूम ही मेरा बाथरूम है.कितना बड़ा है मेरा बाथरूम ...." और उन्हें मन ही मन अपने बड़े होने का एहसास होने लगा शायद इसी कारण उनकी सोच ,उनके विचारों में दूषित गंध है उन्हें पता नहीं है.वह स्वस्थ समाज की सुगन्धित हवाओं से परिचित क्यों नहीं हैं.वह अपनी दुर्गन्ध को ही सुगंध मानते हैं.सूअरों को गन्दगी का एहसास नहीं होता .शायद ऐसे ही जगहों पर लोट-पोट कर आनंद प्राप्त होता है.ऐसे लोगो का आतंरिक सौन्दर्य बोध व चेतना मर जाती है.फिर वह बाथरूम के भीतर नंगे हों या बाहर नंगे हो ,अंतर नहीं पड़तासाहब लोग बाथरूम में करते क्या है? बाथरूम में सभी 'दैनिक-क्रिया' का निपटान ही करते हैं /किसी को यह 'निपटान 'जल्दी हो जाता है किसी को विलंब से बड़ा साहब है तो बडा समय लगेगा. गरीबो को तो खाने के ही लाले पड़े रहते है क्या खाए ?,क्या निकाले ?आफिस के बाबू किरानी को तो साग-सब्जी पर ही संतोष करना पड़ता है .पेट में कुछ है ही नहीं तो खायेगा क्या निकालेगा क्या. अत: 5 मिनट में ही निवृत हो कर बाहर आ जाता है और बड़ा साहब ! बड़ा साहब-बड़ा पेट वह खाता है मांस-मछली,मुर्ग-मुस्सलम ,चिली-चिकेन,चिकेन-बिरयानी,.... वह पीता है बीयर,व्हिस्की अगर इस से भी तुष्टि नहीं मिलती तो खाता है चारा ,अलकतरा ,शेयर तोप,पनडुब्बी ,टेलीफोन यूंरिया ,.. इस से भी आगे खाता है गरीबो के मुंह का निवाला ,सड़क,मकान,पुल के ठेके .दूकान के ठेके ,अगर मौका मिला तो आदमी को भी कच्चा खा सकता है ....जब पेट में इतने गरिष्ठ भोजन हो तो कब्जियत की शिकायत होगी ही.विचारों में गरिष्टता छायेगी ही. फिर फिर 'बाथरूम में कौन सी पची-अनपची चीज़ पहले बाहर निकले स्पष्ट नहीं हो पाता फिर हो जाता है बवासीर...निकलता है खून जो गरीबो का पीया होता है.'ट्रिन ! ट्रिन !! ट्रिन !!! '- बड़े बाबू ने फोन किया ---'साहब है ?' नहीं, साहब बाथरूम में है
'अस्तु
---आनंद