मंगलवार, 27 जनवरी 2015

व्यंग्य 29 : एक लघुकथा : सप्रेम भेंट


   ----- नवोदित लेखक ने बड़ी मेहनत से अपना "काव्य-संग्रह’ प्रकाशित करवा कर प्रथम प्रति  एक तथाकथित स्वनामधन्य "साहित्यकार" को बड़े आदर और श्रद्धा से विनम्र होते हुए भेंट किया और लिखा-" मेरे प्रेरणास्रोत ! मान्यवर श्रद्धेय साहित्यशिरोमणि वरिष्ठ आदरास्पद "....अमुक जी" को  पारस स्पर्श हेतु एक तुच्छ सप्रेम भेंट....." ---एक अकिंचन

 फिर वह नवोदित लेखक बड़े गर्व से अपने साहित्यिक मित्रो ,यहाँ वहाँ मंच पर, फेसबुक पर ,-कि "अमुक जी" ने मुझे अपने आशीर्वचन दिये ,आशीर्वाद दिया ,मुझे अपना बेटा कहा--धन्य हो गया ..."बताते हुए फिर रहा है

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.....कुछ दिनों बाद ,"अमुक जी; ने 125/- का एक मनीआर्डर उस नवोदित लेखक के नाम भेंज दिया।
अपना मूल्य और किताब का मूल्य मिला कर।

आनन्द.पाठक


गुरुवार, 22 जनवरी 2015

व्यंग्य 28 : एक लघु कथा : खरगोश और कछुआ



.... एक बार फिर
"खरगोश" और ’कछुए’ के बीच दौड़ का आयोजन हुआ
पिछली बार भी दौड़ का आयोजन हुआ था मगर ’गफ़लत’ के कारण ’खरगोश’ हार गया ।मगर ’खरगोश’ इस बार सतर्क था। यह बात ’कछुआ: जानता था
इस बार ....
दौड़ के पहले कछुए ने खरगोश से कहा -’मित्र ! तुम्हारी दौड़ के आगे मेरी क्या बिसात । निश्चय ही तुम जीतोगे और मैं हार जाऊँगा। तुम्हारी जीत के लिए अग्रिम बधाई। मेरी तरफ़ से उपहार स्वरूप कुछ ’बिस्कुट’ स्वीकार करो। खरगोश इस अभिवादन से खुश होकर बिस्कुट खा लिया।
दौड़ शुरू हुई....खरगोश को फिर नीद आ गई ...कछुआ फिर जीत गया
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पुलिस को आजतक न पता चल सका कि उस बिस्कुट में क्या था। जहरखुरानी तो नहीं थी ?
इस बार कछुआ एक ’ राजनीतिक पार्टी ’ का कर्मठ व सक्रिय कार्यकर्ता था
 इस नीति से आलाकमान बहुत खुश हुआ और कछुए को पार्टी के ’मार्ग दर्शन मंडल’ का सचिव बना दिया

-आनन्द.पाठक
09413395592

रविवार, 18 जनवरी 2015

व्यंग्य 27 : एक लघु कथा : साधु और बिच्छू



.... नदी में स्नान करते हुए साधु ने पानी में बहते हुए ’बिच्छू’ को एक बार फिर उठा लिया
’बिच्छू’ नें फिर डंक मारा। साधु तड़प उठा। बिच्छू पानी में गिर गया
साधु ने  पानी में बहते हुए ’बिच्छू’ को फिर उठाया ।
बिच्छू ने फिर डंक मारा । साधु तड़प उठा । बिच्छू पानी में गिर गया।
साधु ने फिर......।यह घटना पास ही स्नान कर रहे एक व्यक्ति बड़े मनोयोग से देख रहा था।
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........कुछ वर्षों पश्चात
वह ’व्यक्ति’ उसी नदी में स्नान कर रहा था कि पानी में बहता हुआ ’बिच्छू’ उधर से निकला।
उस व्यक्ति ने बहते हुए बिच्छू को उठा लिया।  इस से पहले कि बिच्छू डंक मारता ,उस व्यक्ति ने पट से मार कर "डंक’ मरोड़ दिया और पानी में फ़ेंक दिया
इस बार ’बिच्छू’ तड़प उठा ....
बेचारे बिच्छू को मालूम नहीं था कि ’दिल्ली’ में सत्ता बदल गई है।

-आनन्द.पाठक
09413395592

रविवार, 11 जनवरी 2015

व्यंग्य 26 : एक लघु कथा : राम --रहीम--इन्सान


" तुम ’राम’ को मानते हो ?-एक सिरफिरे ने पूछा
-"नहीं"- मैने कहा
उसने मुझे गोली मार दी क्योकि मै उसकी सोच का हमसफ़ीर नहीं था और उसे स्वर्ग चाहिए था
"तुम ’रहीम’  को मानते हो ?"-दूसरे सिरफिरे ने पूछा
-"नही"- मैने कहा
उसने मुझे गोली मार दी क्योंकि मैं काफ़िर था और उसे जन्नत चाहिए थी।
" तुम ’इन्सान’ को मानते हो"- दोनो सिरफिरों ने पूछा
-हाँ- मैने कहा
फिर दोनों ने बारी बारी से मुझे गोली मार दी क्योंकि उन्हें ख़तरा था कि यह इन्सानियत का बन्दा कहीं  जन्नत या स्वर्ग न हासिल कर ले
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बाहर गोलियाँ चल रही हैं। मैं घर में दुबका बैठा हूँ ।
 अब मेरी ’अन्तरात्मा’ ने मुझे गोली मार दी कि मैं घर से बाहर क्यों नहीं निकलता
मैं घर में ही मर गया ।

-आनन्द.पाठक-
09413395592