रविवार, 22 मार्च 2015

व्यंग्य 38 : शान्ति भंग

" उस मकान वाले को इस मुहल्ले से निकालो। एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर रही है ।  मकान में अवैध धन्धा चलवा रहा है’----बूढ़े व्यक्ति ने चिल्ला चिल्ला कर कहा
किसी ने अपनी खिड़कियाँ नहीं खोली
 थाने में रिपोर्ट लिखाने गया-रिपोर्ट नहीं लिखी गई
कुछ दिनो बाद.....
उसे गिरफ़्तार कर लिया गया -शान्ति-भंग के जुर्म में
कि वह बूढ़ा आदमी मुहल्ले का शान्ति भंग कर रहा था
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-आनन्द.पाठक

बुधवार, 18 मार्च 2015

व्यंग्य 37 : लघु कथा : मान-सम्मान


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"....कुछ तर्बियत बची है कि नहीं कि सब घोल कर पी गये  तुम लोग..." -पड़ोसी अब्दुल चाचा ने नन्हें को लानत भेजते हुए फोन पर साधिकार कहा- " तुम लोगो को मालूम है कि नहीं कि भाई जान यानी तुम्हारे पिता जी एक हफ़्ते से खाट पकड़े है ...पंडित जी को कोई देखने वाला नही...और तुम लोग हो कि.."
पिछले हफ़्ते बाथरूम में फिसल गये  पिता जी ---चोट गहरी लगी थी --खाट पकड़ लिया था  । कोई देखने वाला नहीं--कोई सेवा करने वाला नही। शून्य में कुछ निहारते रहते थे। मन ही मन कुछ बुदबुदाते रहते थे एकान्त में  ।लड़के सब बाहर अपने अपने काम में व्यस्त। देखने कोई नहीं आया  । अब्दुल चाचा ने नन्हें को ख़बर कर दिया  ।
नन्हें भागा -भागा पिता जी को देखने आया ।देख कर घबरा गया।मरणासन्न स्थिति में आ गये हैं अब तो। हालत देख कर आभास हो गया कि पिता जी अब ज़्यादा दिन नहीं चलेंगे।
" भईया ! पिता जी को आप दो महीने अपने यहाँ रख लेते तो मैं अपनी बेटी की शादी निपटा लेता फिर मैं उन्हें अपने यहाँ ले जाता"- नन्हें ने बड़े भाई को टेलीफोन पर अपनी व्यथा बताई
" नन्हें ! तू तो जानता ही है कि मैं हार्ट का मरीज़ हूँ डाइबिटीज है ..सुगर लेवेल बढ़ गया है आजकल....मैं तो ख़ुद ही मर रहा हूँ"- बड़े भाई ने अपनी असमर्थता जताई और पत्नी पार्श्व में खड़ी निश्चिन्त हो गईं
नन्हें ने  छॊटे भाई से बात की--" छोटू ! पिता जी को अगर दो महीने के लिए अपने पास रख..लेता तो......"
बात पूरी होने से पहले ही छोटू बोल उठा-" भईया ! बम्बई की खोली में एक कमरे का मकान भी कोई मकान होता है ---पाँव फैलाओ तो दीवार से सर लगता है...स्साला रोज घुट घुट कर जीना-पड़ता है अरे !--इस जीने से तो मर जाना बेहतर---भईया ! आप मेरी मज़बूरी तो जानते ही हो..." छोटे ने अपनी असमर्थता जताई और पत्नी पार्श्व में खड़ी मुस्कराई
 थक हार कर नन्हे एम्बुलेन्स’  खोजने निकल गया कि कोई उधारी में एम्बुलेन्स मिल जाता तो.....
 पिता जी अकेले खाट पर पड़े शून्य में बड़ी देर तक छत की ओर निहारते रहे....कुछ सोचते रहे...शायद अतीत चलचित्र की भाँति एक बार उनके नज़रों के सामने से घूम रहा था......बेटों के जवाब सुनने से पहले..भगवान ने सुन ली...टिमटिमाटी लौ थी...बुझ गई...कमरे में धुँआ फैल गया ...एक इबारत उभर गई

तमाम उम्र  इसी  एहतियात  में  गुज़री
                  कि आशियाँ किसी शाख-ए-चमन पे बार न हो

[बार =भार]

 नन्हें ने सबको खबर कर दिया ....
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"नन्हें ! तू वहीं रुक ,मैं आ रहा हूँ ! पिता जी का क्रिया-कर्म गाजे-बाजे के साथ बड़ी धूम-धाम से होना चाहिए ..पूरे गाँव को बुलाना है...पूरे शहर को खिलाना है
पूरे शहर में कितना "मान सम्मान"था पिता जी का। शहरवालों को भी तो पता चले कि वकील साहब के लड़को ने मान-सम्मान में कोई कसर नहीं छोड़ी...."-बड़े भाई ने फोन किया

जो ’मर ’ रहे थे वो ’ज़िन्दा’ हो गए .... जल्दी जल्दी तैयार होकर अपनी गाड़ी निकाली और रवाना हो गए---पिता जी की ’विरासत’ सम्भालने और ’नगदी’-गहने भी !

-आनन्द.पाठक
09413395592

मंगलवार, 10 मार्च 2015

व्यंग्य 36: लघु कथा .: हाथ का मैल

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---’तीये’ की बैठक चल रही है । पंडित जी प्रवचन कर रहे हैं -"अस्मिन असार संसारे !..इस असार संसार में ..जगत मिथ्या है .ईश्वर अंश ...जीव अविनाशी
ज्ञानी ध्यानी लोगो ने कहा है ---पानी केरा बुलबुला अस मानुस की जात... तो जीवन क्या है... पानी का बुलबुला है ...नश्वर है..क्षण भंगुर है..मैं नीर भरी दुख की बदली...उमड़ी थी कल मिट आज चली...जो उमड़ा ..वो मिटा..जो आया है वो जायेगा ,,’जायते म्रियते वो कदाचित...तो फिर किसका शोक ....जो भरा है वो खाली होगा..यही जीवन है यही नश्वरता है गीता में लिखा है -"वासांसि जीर्णानि यथा विहाय ....अर्थात यह शरीर क्या है माया है ..फटा पुराना कपड़ा है ...आदमी इसे जान ले कि व्यर्थ ही इस कटे-फटे कपड़े को सँवार रहा था तो शरीर छूटने का कोई कष्ट नहीं....शरीर तो दीवार है .मिट्टी की दीवार ..एक घड़े की दीवार की तरह...जल में कुम्भ...कुम्भ में जल है ..बाहर भीतर पानी....फुटा कुम्भ जल जल ही समाना ...यह तथ कहें गियानी---... .."-
--"तुलसी दास जी ने कहा है क्षिति जल पावक गगन समीरा ...जब यह शरीर क्षिति का बना है मिट्टी का बना है तो इसके मिटने का क्या शोक करना.....मिट्टी का तन मिट्टी का मन क्षण भर जीवन मेरा परिचय...तो सज्जनों ! आप सब जानते है ..एक फ़िल्म का गाना है---चल उड़ जा रे पंक्षी कि अब यह देश हुआ बेगाना...शरीर पिंजरा है ..आत्मा पंक्षी है..आत्मा ने पिंजरा छोड़ दिया अब वह और पिंजरे में जायेगी...
पंडित जी ने अपना प्रवचन जारी रखा,, उन्हें आत्मा-परमात्मा जीव के बारे में जितनी जानकारी थी सब उड़ेल रहे थे

और धन ...धन तो हाथ का मैल है ...सारा जीवन प्राणी इसी मैल के चक्कर में पड़ा रहता है...इसी मैल को बटोरता है ..और अन्त में सब कुछ यहीं छोड़ जाता है ..धन तो माया है
धन मिट्टी है शास्त्रों में इसे "लोष्ठ्वत’ कहा गया है ...मगर सारी जिन्दगी आदमी इसी "लोष्ठ’ को एकत्र करता रहता है ..और अन्त में? अन्त में ’धन ’ की कौन कहे वो तो यह मिट्टी भी साथ नहीं ले जा सकता ... आदमी इस मिट्टी को समझ ले तो कोई दुख न हो....जब आवै सन्तोष धन ..सब धन धूरि समान’ अन्त में मालूम होता है कि आजीवन हम ने जो दौड़-धूप करता रहा वो सब तो धूल था ..तब तक बहुत विलम्ब हो चुका होता है---सब ठाठ पड़ा रह जायेगा...जब लाद चलेगा बंजारा...बंजारा चला गया..किस बात का शोक....
पंडित जी घंटे भर आत्मा-परमात्मा--जीव..जगत .माया...धन..मिट्टी आदि समझाते रहे और श्रोता भी कितना समझ रहे थे भगवान जाने

अन्त में ...अब हम सब मिल कर प्रार्थना करें कि भगवान मॄतक की आत्मा को शान्ति प्रदान करें और और परिवार को दुख सहने की शक्ति....."-पंडित जी का प्रवचन समाप्त हुआ

...लोग मृतक की तस्वीर पर ’श्रद्धा-सुमन’ अर्पित करने लगे ...पंडित जी ने जल्दी जल्दी पोथी-पतरा सम्भाला --चेले ने ’लिफ़ाफ़े’ में आई दान-दक्षिणा संभाली..इस जल्दी जल्दी के क्रम में चेले से 2-दक्षिणा का लिफ़ाफ़ा रह गया...पंडित जी की ’तीक्ष्ण दॄष्टि’ ने पकड़ लिया और चेले को एक हल्की सी चपत लगाते हुए कहा-" मूढ़ ! पैसा हाथ का मैल है..लिफ़ाफ़ा’ तो नहीं -यह लिफ़ाफ़ा क्या तेरा बाप उठायेगा..
पंडित जी ने दोनो लिफ़ाफ़े उठा कर जल्दी जल्दी अपने झोले में रख लिए...उन्हे अभी दूसरे ’तीये’ की बैठक में जाना है और वहाँ भी यही प्रवचन करना है---" अस्मिन असार संसारे !....पैसा हाथ का मैल है ....

-आनन्द.पाठक
09413395592

गुरुवार, 5 मार्च 2015

व्यंग्य 35 : लघु कथा : इवेन्ट मैनेजमेन्ट

मंच के सभी मित्रों को होली की शुभकामनायें........




"...आप ही ’आनन’ जी है? फ़ेसबुक पर आप ही "अल्लम-गल्लम’ लिखते रहते है तुकबन्दिया शायरी करते रहते है?"-आगन्तुक ने सीधा तीर मारा
" जी आप कौन ?"-मैने प्रश्नवाचक मुद्रा में पूछा
"अरे ! आप ने मुझे नहीं पहचाना? मैं कवि ’फ़लाना’ सिंह ..बहुत दिनों से आप फ़ेसबुक पर दिखाई नहीं दिए तो सोचा आप के दर्शन कर अपना जीवन सँवार लूँ।"
अकारण  स्तुति वाचन से ,मैं सचेत हो गया -: " अच्छा किया कि आप ने अपने नाम के आगे कवि जोड़ दिया है वरना श्रोताओं का कोई भरोसा नहीं कि क्या समझ लें आप को --भ्रम की स्थिति स्वयं दूर कर दी आप ने --हिन्दी साहित्य में फेसबुक के रास्ते बहुत घुसपैठिये आ गये है आजकल.....""मैने कहा

" हें ! हें ! हें !! अच्छा मज़ाक कर लेते है आप भी। आप ने मेरी कविता नहीं पढ़ी ? कल ही छपी है ’फ़लाना’ पत्रिका में ..कतरन तो इन्टरनेट के सभी साईटों पर चढ़ा दी ..सभी मंच पर लगा दी है ...सैकड़ों लोगों ने "लाईक’ किया है दर्ज़नो नें ’वाह , वाह किया...पच्चीसियों ने अपनी ’टिप्पणियाँ लिखी कि ऐसे कविता हिन्दी साहित्य में पिछले 3 दशक से नहीं लिखी गई ..अगर उस समय लिखी जाती तो ’तार-सप्तक’ में अवश्य स्थान पाती....सोचा कि आप का आशीर्वाद भी लेता चलूं"

और उन्होने पत्रिका की कतरन मेरे सामने रख दिया। पढ़ा। सम्पादक ने अपनी तरफ़ से , उनके परिचय में उन्हे वरिष्ठ कवि ..कविता जगत में नया हस्ताक्षर..हिन्दी साहित्य को उनमें छिपी अनेक संभावनाओं का लाभ......एक नये तारे का अभ्युदय....और भी बहुत कुछ लिखा था। मैं तय नहीं कर पा रहा था कि कवि और सम्पादक में कौन महान है ।आप इसे मेरी तंग नज़र भी कह सकते है
" तार सप्तक’ में नहीं छपी तो कोई बात नहीं..."कविता अनवरत" में छप जायेगी ’सूद’ जी छाप रहें है आजकल। 3-खण्ड निकाल चुके हैं अबतक । आप की कविता जो है सो है मगर मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूँ"
" आनन जी ! बस आप तो आशीर्वाद दीजिये इस ग़रीब-उल-फ़क़ीर को"

  मैने आशीर्वाद स्वरूप, मेज की दराज से एक ’रेट कार्ड’ निकाल कर उन के सामने बढ़ा दिया.उन्होने पढ़ा..हल्का सा मूर्छित हुए फिर चेतनावस्था में आते हुए कहा
" अयं ,ये क्या ? इसमें तो सब आईट्म का रेट लिखा है ....सम्मान कराने का .अलग...ताम्र-पत्र का अलग..स्तुति गीत का अलग...नारियल-साल भेंट करने का अलग...श्रोता इकठ्ठा करने का अलग...फोटो खिचवाने का अलग ..समीक्षा करवाने का अलग...आरती करने कराने का अलग....टिप्पणियां ’फ़्री ’ में है .पुस्तक विमोचन करवाने का अलग वरिष्ठ कवियों को आमन्त्रित करने का मय यात्रा-खर्च और ठहराने का रेट अलग....ये सब तो ’इवेन्ट मैनेजमेन्ट का रेट है ."तो क्या आप ने शे’र-ओ-शायरी करना छोड दिया है?"----उन्होने जिज्ञासा प्रगट की

" जी ,बहुत पहले छोड़ दिया फ़ायदे का सौदा नहीं था सो "इवेन्ट मैनेजमेन्ट" कम्पनी खोल ली और आप जैसे "छपास पीड़ित’ लेखकों कवियों की सेवा करता हूँ। कहिए कौन सा ’डेट बुक’ कर दूं । मैं तो कहता हूं कि आप भी यह कविता वविता लिखना छोड़ मेरी कम्पनी ज्वाइन कर लें, सुखी रहेंगे"
" बस बस पाठक जी ! मिल गया आशीर्वाद:"-- कवि ’फ़लाना सिंह -जो गये तो फिर लौट के इधर न आये।
सुना है उन्होने भी कोई कम्पनी खोल रखी है

[नोट : सुरक्षा कारणों से कॄपया ’कवि’ और ’पत्रिका" का नाम न पूछियेगा]
-आनन्द.पाठक.
09413395592


सोमवार, 2 मार्च 2015

व्यंग्य 34 : लघु कथा : यू-टर्न



".....राम राम !राम !! घोर कलियुग आ गया ....अब यह  देश नहीं चलेगा ...चार दिन इन्टर्नेट पर ’चैटिंग क्या कर ली कि सीधे "शादी" कर ली । इन ’फेसबुक" वालों ने तो धर्म ही भ्रष्ट कर के रख दिया ....." पंडित जी ने नाक-भौं सिकोड़ते हुए कथन जारी रखा - "--- अब आप ही  बताइए माथुर साहब !-देखा न सुना ,न घर का पता न खानदान का ...अरे यह भी कोई शादी हुई ....शादी विवाह में जाति देखी जाती है.... बिरादरी देखी जाती है ...अरे हमारे यहाँ तो गोत्र की कौन कहे ..हम तो ’नाड़ी" तक चले जाते हैं.....धर्म-कर्म भी कोई चीज  है कि नहीं ...शास्त्रों में क्या झूट लिखा है ...मनु-स्मृति में ग़लत लिखा है...विजातीय विवाह कोई विवाह होता है ...और वो भी कोर्ट में ...न पंडित न फ़ेरा ..न वर न बरात ..न अग्नि का फेरा .....ऐसे में तो संताने ’वर्ण-संकर’ ही पैदा होगी....धर्म का क्षय होगा "
माथुर साहब धर्म की यह  व्याख्या वह बड़े ’चाव’ से सुन रहे थे कारण कि उनके पड़ोसी अस्थाना साहब की बेटी भाग कर कोई विजातीय " कोर्ट मैरिज" कर ली थी
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कुछ वर्षों पश्चात.....एक दिन

रास्ते में पंडित जी और माथुर साहब टकरा गये.एक "ट्रैफ़िक-पोस्ट" पर.। ....प्रणाम पाती हुआ ...
माथुर साहब---" ...सुना है आजकल आप का ’छुट्टन’ आया है विलायत से छुट्टी पर ..छोटा था तो देखा था अब तो बड़ा हो गया होगा ...साथ में कोई "अंग्रेजन बहू’ भी साथ लाया है... ?
"- बड़ी संस्कारी बेटी है मेरी बहू ....उतरते ही "हाय-डैडू’- कहा ..इसाई "ब्राह्मण" की बेटी है..सुना है उसके पिता भी पूजा-पाठ कराते  है वहाँ । भाई ! शादी विवाह तो ऊपर वाला ही बनाता है..... हम कौन होते हैं ..... क्या देश क्या विलायत ...जोड़ियाँ तो स्वर्ग से ही बनती है...भगवान बनाते है ..सब में एक ही प्राण ,सब में एक ही खून ..सबके खून का एक ही रंग ..ये तो हम हैं कि हिन्दू मुसलिम सिख ईसाई छूत-अछूत कर बैठे हैं...’सर्व धर्म सदभाव देश आगे बढ़ेगा... बहू भी वहाँ नौकरी करती है ..अच्छा पैसा कमाती है..बेटा भी कभी कभी कुछ भेंज देता है .......दोनो राजी-खुशी रहें हमें और क्या चाहिए......

माथुर साहब को इस बहू-कथा में ज़्यादा ’आनन्द’ नही आ रहा था क्योंकि यह उनके पड़ोसी ’अस्थाना" साहब की बेटी की कथा न थी ....
फिर कुछ औपचारिक बात-चीत के बाद दोनों ने अपनी अपनी राह ली
पीछे "ट्रैफ़िक-पोस्ट’ पर लिखा था--" यू-टर्न"

-आनन्द.पाठक-
09413395592