शनिवार, 5 सितंबर 2015

एक व्यंग्य 39 : बास कथा चरितम


                                            बॉस कथा चरित्रम्


दैवो न जानाति ;’बॉस चरित्रम’- संस्कृत में आप ने पढ़ा होगा ?। ’त्रिया चरित्रम’ और ’बॉस चरित्रम्’ में कोई ख़ास अन्तर भी नहीं होता । दोनों ही तुनुक मिज़ाज,दोनों ही सेवा से असन्तुष्ट ,दोनो ही कज़रवी [ऐंठ के चलना] दोनों ही सीधे मुँह बात नहीं करते कि उनका मुँह सीधा करते करते करते अपुन  का सीधा हो जाता हैं बाप ,मगर दोनो ही..

हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता
बॉस कथा ज्यूँ  सन्ता-बन्ता

-"हे श्रोतागण ! जिस प्रकार हरि अनन्त है और हरि कथा अनन्त है उसी प्रकार बॉस की कथाएं भी ’सन्ता-बन्ता’ की कथाओं  की तरह रस पूर्ण है और कभी खत्म न होने वाली अनन्त है ...आप रिटायर हो जायेंगे ..आप की सर्विस खत्म हो जायेगी परन्तु ’बॉस’ की कथा कभी खत्म न होने वाली है } एक बार प्रेम से बोलिए ’बॉस’ महराज की जै....

लगता है कि गोस्वामी तुलसी दास जी भी अपने समय में किसी ’बॉस’ से पीडित रहे होंगे तभी उन्होने आगे लिखा

करू भलु 'बॉस' नरक कर ताता 
दुष्ट संग जन देहु बिधाता 

अर्थात..हे भगवन ! मुझे भले ’नरक’ में पोस्टिंग दे दो मगर किसी ;रावण’ जैसे बॉस के साथ अटैच न करें .अब इस के आगे अर्थ बताने की ज़रूरत नहीं है --जो पीडित हैं वो इसका अर्थ अच्छी तरह जानते है और जो ऐसे ’बॉस’ की चपेट में नहीं आये है बाद में जान जायेंगे

तो कथा आरम्भ करते है

एकदा नैमिष्यारणे.. एक बार नैमिष्यारण में भ्रमण करते हुए एक रिटायर ऋषि माधवानन्द  जी पधारते भए। Rule-14 &16 kका  बनवास झेल रहे उस जंगल में कुछ राजकीय कर्मचारी/अधिकारी  एकत्र हो कर प्रार्थना करने लगे और कहा-" हे ॠषि प्रवर माधवानन्द जी ।इस जंगल में पधार कर आप ने महती कृपा की वरना तो लोग रिटायर के होने के तुरन्त बाद ही कहीं न कहीं अन्य कार्य का अपना जुगाड़ बैठा लेते हैं ..कुछ तो रिटायर होने के बाद उसी विभाग के सेवा सलाहकार बन जाते है जिसका उन्होने अपने सेवाकाल में भट्टा बैठा दिया था ..मगर आप उनसे अलग है..निस्पॄह हैं..निर्विकार है ..निष्कंलक है ...निष्कपट है...और इसी कारण आप को इस विभाग ने या किसी विभाग ने ’सलाहकार’ पद के योग्य नहीं समझा ...और आप भ्रमण करते करते यहाँ पहुँच गये. ..यह हम लोग का अहो भाग्य है कि आप के दर्शन हो गये।साधु । साधु । सुना है कि आप ने अपने सेवा काल में बहुत से ’बॉस’ निपटाये हैं---सो हे प्रभु ! कुछ बॉस चरित्रम पर  प्रकाश डाले -- तो हम लोगों की तपती दग्ध आत्मा को शीतलता प्राप्त हो । बॉस कितने किस्म के होते है ...कैसे होते हैं ..वो क्या क्या करते है ..उनका चरित्र कैसा होता है  --चरित्रवान होते है या चरित्रहीन ...जानने की हम कर्मचारियों/अधिकारियों की  बड़ी उत्कंठा है ...आप सविस्तार बतायें सर ! कि आने वाली पीढियाँ आप के  ग्यान से लाभान्वित हो सके......
 माधवानन्द जी ने अपना ’ब्रीफ़ केस" एक तरफ़ सरकाते हुए और ’लैप टाप’ सम्भालते हुए कहा’-" मित्रों ! ’नो लुक वियाण्ड फ़र्दर’ अर्थात अब तुम्हे और कहीं देखने की ज़रूरत नहीं ..तुम सही जगह आए हो...अब तुम्हारी समस्या समझो कि मेरी समस्या हो गई। आप की ’बॉस कथा चरित्रम ’ सुनने की उत्कंठा से मुझे बड़ी खुशी हुई कि बॉस की चुगली करने और सुनने में आप सब की आदत आज भी वैसे ही है जैसे पहले थी। आप लोगों ने जो विश्वास मुझ में प्रगट किया है और जो यहाँ मंच प्रदान किया है और  गौरव दिया है मैं इस हेतु आप सब का आभारी हूं। मैं अपने पूरे सेवा काल में काम से ज़्यादा बॉस के चरित्र का जिस गहराई से अध्ययन किया है वो आप को अन्यत्र नहीं मिलेगा..आप को रिटायरी तो बहुत मिल जायेंगी परन्तु ऐसा सूक्ष्म अन्वेषक नहीं मिलेगा....
’महर्षि अब आप ज़्यादा समय न लें अब हम लोगों की प्यास बुझायें’----भक्तों ने समवेत स्वर में कहा
"तो सुनो...."
भक्तो !तुमने वो कहावत तो सुनी होगी ’-बॉस के अगाड़ी और घोड़े के पिछाड़ी ’ नहीं रहना चाहिए। यह सेवा का मूल मन्त्र है।
पता नहीं किस भक्त ने पहली बार यह मुहावरा कहा होगा...मगर जब भी कहा होगा ..बड़े अनुभव और अध्ययन के आधार पर कहा होगा ...या तो वो घोड़े के पीछे की 2-4 दुल्लत्ती खाई होगी या बॉस ने उस के पीछे पर 2-4 दुलत्ती जमाई होगी ..तभी वो बिलबिला कर यह मुहावरा कहा होगा। मुझे आज तक यह  पता न चला कि वह पीड़ित कर्मचारी ने बॉस के लिए घोड़ा ही क्यों चुना ...गधा भी तो चुन सकता था..गधा भी तो दुलत्ती मारता है...गधा और बॉस में सामंजस्य भी ठीक बैठता ..गधा के पास जब काम नहीं रहता तो ढेंचू ढेंचू करता रहता है -खाली समय में।
घोड़े के बारे में तो नहीं कह सकता मगर ’गधा’ के बारे में कहीं पढ़ा था कि गधा ही एक ऐसा प्राणी है कि वो अपनी आंख से सामने भी देख सकता है और  पीछे  भी देख सकता है और यही कारण कि उस की दुलत्ती खाली नहीं जाती। बॉस तो पीछे देख नहीं सकता क्योंकि वो गधा नहीं है अत: अपने से आगे वाले के "पॄष्ट-भाग’[पीठ भी हो सकता है और पीठ से ज़रा नीचे भी हो सकता है -यह बॉस के विवेक पर निर्भर करता है ] पर "एक-लत्ती" मारता है[ दुलत्ती मारने की सुविधा सिर्फ़ गधे को प्राप्त है और बॉस गधा नहीं है]
गधे और बॉस में एक बात और दॄष्ट्व्य है -बॉस गधा हो सकता है मगर गधा बॉस नहीं हो सकता -यह एक सार्वभौम सत्य है....
"हे मुनिवर! यह बॉस कौन होता है ...यह किस किस्म का प्राणी होता है? आप सविस्तार वर्णन करें ..हमें जानने की महती उत्कंठा है
"भक्तो ! बड़ा ही अच्छा प्रश्न किया है ..बॉस की परिभाषा अंग्रेजी के शब्दकोश में कई प्रकार से दी गई है जिससे आप दिग्भ्रमित भी हो सकते है ।बस आप तो सर्व साधारण और सर्व सुलभ परिभाषा समझे । Boss is always right| मैने इसी परिभाषा के सहारे सारी सर्विस गुज़ार दी ..भविष्य में आप भी इसी मन्त्र से गुज़ार देना
बॉस स्वतन्त्र इकाई नहीं है एक सापेक्ष प्राणी है बॉस का भी बॉस होता है । बॉस निरपेक्ष नहीं होता..अगर वह स्वतन्त्र रूप से बॉस है और उसके under  कोई स्टाफ़ नहीं हो तो वो Boss नहीं होता ..श्री हीन होता है .कौड़ी का तीन होता ...जल बिनु मीन होता है .और .फिर वो निराशा भाव से मर जाता है। अत: Boss होने के लिए ज़रूरी है कि उसके अधीनस्थ 10-20 स्टाफ़ हो जिस से वो अपने को Boss और अधीनस्थ को ’घास’ समझे। जितनी बड़ी संख्या अधीनस्थ स्टाफ़ की उतना ही बड़ा बॉस।
इस परिभाषा से एक चपरासी भी बॉस हो सकता है बस शर्त यह कि वो किसी लतिया सके ।
"एक चपरासी भी बॉस हो सकता है? आश्चर्य ! मुनि श्रेष्ठ आश्चर्य !  कैसे मुनिवर ? समझाने का कष्ट करेंगे?---एक भक्त ने जिग्यासा प्रगट की
" सत्य वचन वत्स !  सत्य वचन! मैं इस बात की पुष्टि एक घटना से करता हूँ --आप सभी लोग मनोयोग से सुने।
एक बार इन्द्रप्रस्थ प्रदेश [जो आजकल दिल्ली नगरी है] में एक सरकारी कार्यालय में किसी बड़े साहब ने कोई ’फ़ाईल’ तलब किया । बहुत खोजबीन के बाद मालूम हुआ कि उक्त फ़ाइल गायब है , मिल नहीं रही है तो बड़े बाबू ने यह बात बड़े साहब को बताई ---फिर क्या था बड़े साहब चीख उठे---तुम सब निकम्मे...कामचोर..हरामखोर.. एक फ़ाइल सम्भाल कर नहीं रख सकते है और शर्म नहीं आती कह रहे हो कि फ़ाईल मीसिंग है....जाओ ’नोट शीट’ पर लिख कर लाओ कि फ़ाइल मीसिंग है फिर देखता हूँ तुम सब को..बताता हूँ कि सर्विस करना क्या होता है .....
बड़े साहब यहाँ ;बॉस’ हैं अभी सही चल रहे है,,,
बड़े बाबू ने "नोट शीट ’ तैयार किया और लिखा -as desired ,file is missing'--फिर क्या हुआ आदेश हुआ कि फ़ाइल खोजी जाय...बड़े बाबू का जो तिया-पाँचा हुआ सो अलग
बड़े बाबू ने अपने सेक्शन के अधीनस्थ बाबू को बुलाया और उसी शैली मे  डाँटा जिस शैली में उसके  बॉस ने डांटा था -अब यहाँ बड़े बाबू  बॉस हो गये...
यह क्रम चलते चलते एक मरियल से कनिष्ठ लिपिक तक पहुँचा और उस ने ’चपरासी’ को बुलाकर डाँटना शुरु किया....निकम्मे ..कामचोर सब के सब हरामखोर ..एक फ़ाईल भी सम्भाल कर नहीं रख सकता ...अब यहा कनिष्ठ लिपिक चपरासी का बॉस हो गया ...
अन्तत: चपरासी ने स्टोर रूम में जा कर फ़ाईल खोजना शुरु किया ...कनिष्ठ लिपिक महोदय  ने पहले से ही  मूड आफ़ कर दिया था..ऊपर से फ़ाईल नहीं मिल रही थी कि देखा कि 2-आलमीरा के बीच एक कुत्ता बड़े आराम से सोया हुआ था कि चपरासी महोदय ने एक लात जमाया उस कुत्ते को...स्साला ! मेरी फटी जा रही है हमें मरने की फ़ुरसत नही और ये हराम खोर निकम्मा ...कामचोर...कुत्ते का बच्चा .यहाँ आराम से....। और कुत्ता कें ..कें..कें..करता हुआ भाग गया...
यहाँ अब चपरासी बॉस हो गया कुत्ते का ...जो लात मार दे वो बॉस
तो भक्तो ! अब स्पष्ट हो गया होगा कि बॉस एक शॄंखला है ...बॉस वो जो लतिया सके अधीनस्थ वो जो लात खा सके..

तो भक्तों ! इस कथा का अभी यहीं विराम देता हूं.......बाक़ी कथा अगले प्रवचन में सुनाऊँगा....
सभी लोग एक बार प्रेम से बोलें - बड़े बॉस की जय हो...

बॉस जन तो तेणे कहिए पीड़ पे पीड़ बढ़ाई रे--

anand pathak

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