बुधवार, 1 मई 2019

एक व्यंग्य 57 : बड़ा शोर सुनते थे--

एक व्यंग्य : बड़ा शोर सुनते थे---

--’बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का ’ ।ख़बर गर्म थी ।उनकी नाक उनकी दादी जैसी है। दादी की झलक है ।वह आँधी हैं ’आँधी"। अगर बनारस से उठ गईं तो ’कमल’ की तमाम पँखुड़ियां उड़ जाएँगी ।हाथी साथी सब हवा हो जायेंगे। उनके कार्यकर्ताओं मे गजब का उत्साह  भर जाता था जब वो  पूछती थीं --’ बनारस से उठ जाऊं क्या’ --? खड़ी हो  जाऊँ क्या ?।कार्यकर्ता भी सब अभिभूत हो जाते थे   ,झूमने लगते थे , नाचने लगते थे  ।उन्हे लगता था आयेगा मज़ा जब आयेगा ऊँट पहाड़ के नीचे---
"अबे ! किसको ऊँट बता रहा है बे !"--एक कार्यकर्ता ने आपत्ति जताई
’कमल आयेगा पहाड़ के नीचे, भाई साहब !’ -पहले ने सफ़ाई दी ।
’अच्छा ! मैं समझा कि---। दूसरे ने सन्तोष की साँस ली --" अरे वो हम कार्यकर्ताऒं का कितना सम्मान करती हैं ।  ,उन्हे क्या ज़रूरत आन पड़ी  हम जैसे कार्यकर्ताओं से पूछ्ने की । वह  तो "स्वयं प्रभा समुज्ज्वला" हैं--उन्होने पार्टी से नहीं ,पहले हम से पूछा, हम समर्पित कार्यकर्ताओं से पूछा-- हम सब से पूछा -- हम सब ही तो पार्टी हैं- हम सबकी ’अनुमति’ के बग़ैर वो कैसे उठ सकती हैं भला । हमारी पार्टी अन्य पार्टियों की तरह नहीं  कि बाहर से उम्मीदवार लाया और  ’थोप’ दिया हम कार्यकर्ताओं पर ।. उतार दिया ’पैराशूट’ से  किसी बाहरी उम्मीदवार को ।-30 साल से झंडा उठा रहे है हम निर्विकार भाव से बिना किसी पद की इच्छा के, बिना टिकट की  लिप्सा से ---। वो तो स्वयं ही पार्टी है
पहले भाई साहब ने बात काटी--’नहीं भाई साहब ! ऐसा नहीं । वो खुद पार्टी नहीं है। वो पार्टी की एक विनम्र कार्यकर्ता है, एक सिपाही हैं --बिल्कुल हमारे-आप जैसे । हमारी पार्टी में लोकतन्त्र है अनुशासन है-जब तक पार्टी नहीं कहेगी तब तक  वो  अपने आप कैसे चुनाव में खड़ी हो जायेंगी ?पार्टी प्रेसिडेन्ट नाम की  कोई चीज होती है कि नहीं । पार्टी में ऐसे ही कोई प्रेसिडेन्ट बन जाता है क्या ? ---कार्यकर्ता भाई साहब ने अपना "पार्टी-ज्ञान’ बघारा।

--चीरा तो क़तरा-ए-खूं न निकला ।हाय अफ़सोस कि पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया ।

यह होता है पार्टी का संविधान ।कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो ,अपनी बहन ही क्यों न हो, अपना जीजा ही क्यों न हो , पार्टी के संविधान से बड़ा कोई नहीं ,बहन भी नहीं ।विरोधी पार्टी झूठे आरोप लगाती है  कियह  एक परिवार की पार्टी है । भईया आप ही बताओ उन्होने  बहन को  टिकट दिया क्या ?नहीं दिया न । यह होता है ’न्याय’। वो और भी ’न्याय’ करेंगे  -चुनाव के बाद।

पार्टी प्रवक्ताओं ने बताया उन्हे देश देखना है ।ग़रीबों को देखना है, बेरोज़गारों को देखना है नौजवानों को देखना है हिन्दू को देखना है मुसलमान को देखना है।समय कम है,इसी चुनाव काल में देखना है  ।समस्यायें असीमित है  ,एक ही लोकसभा क्षेत्र में ’सीमित’ नहीं करना है उन्हें ।
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कुछ दिन पहले मैं भी बनारस गया था । नामांकन करने नहीं ।घूमने। बनारस के दशाश्वमेध घाट की सीढ़ियों पर बैठे बैठे सोच रहा था -गंगा मईया की बेटी थी आने को कह रही थी ,इसी गंगा मईया के जल से आचमन किया था मगर अफ़सोस।
ख़ुदा क़सम , अल्लामा साहब याद आ गए

न आते ,हमें इसमें तक़रार क्या थी
मगर वादा करते हुए  आर क्या थी?

[आर=लाज ,लज्जा]
प्रवक्ता ने बताया कि उन्होने ख़ुद ही मना कर दिया ।

 मैने पूछा। इक़बाल साहब ने पूछा

तअम्मुल तो था उनके आने में क़ासिद
मगर ये बता तर्ज़-ए-इनकार क्या थी ?
[ तअम्मुल=संकोच}

न उन्होने बताया,न  प्रवक्ता ने बताया  कि -तर्ज़-ए-इनकार क्या थी।
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कुछ दिनों बाद
किसी चुनाव रैली में ,उसी कार्यकर्ता ने दादी की नाक से  पूछ लिया--बहन जी !---
"ऎं ! मैं बहन जी जैसी दिखती हूँ क्या ? भईए ! ’बहन जी" तो ’बबुआ’ के साथ घूम रहीं है----
-’ नहीं मैडम ! मेरा मतलब यह था कि आप बनारस से क्यों नहीं उठी---हम लोग कितनी उत्सुकता से आप की प्रतीक्षा कर रहे थे कि आप आतीं तो पार्टी को एक संजीवनी मिल जाती।जान फूँक देती । अन्य  पार्टियाँ "फुँक" जाती, विरोधी पस्त हो जाते ,हाथी बैठ जाता, साइकिल पंचर हो जाती --आप उठती  तो नोट बन्दी का ,जी0एस0टी0  का बेरोजगारी का , सब एक साथ बदला ले लेते --आप समझिए कि इस एरिया का 15-20 सीट तो कहींयों नहीं गया था---

’नहीं रे ! दिल छोटा न कर । पार्टी ने टिकट ही नहीं दिया वरना तो हम--"
-’मैडम ! आप लोग कितने महान है । औरों को पिलाते रहते है और खुद प्यासे रह जाते है। कितना बड़ा त्याग करते रहते  है आप लोग देश के लिए।खुद को कुर्बान कर देते हैं पार्टी के लिए----
-सही पकड़ा । बनारस से बड़ा चुनाव और चुनाव से बड़ा देश --हमें पूरा देश देखना है ।बनारस में क्या रखा है ? यहाँ तो मेरा पुराना वाला उम्मीदवार ही काफी है  हिसाब किताब करने के लिए  । तू चिन्ता न कर।चुनाव के बाद तू बस हमी को देखेगा---बम्पर मेजारिटी से वापस आ रहे हैं --मैं देख रही हूँ --मुझे दिख रहा है --तू भी देख---।

इसी बीच किसी ने शे’र पढ़ा--
थी ख़बर गर्म कि ’ग़ालिब’ के उड़ेंगे पुर्ज़े
देखने हम भी गए थे तमाशा न हुआ

"ऎं यह शे’र किस ने पढ़ा  ?"---मैडम ने त्योरी चढ़ाते हुए पूछा
कार्यकर्ता ने हकलाते , घबराते और  मिमियाते हुए बोला--- मैं नहीं मैडम ! ग़ालिब ने--
-’अच्छा ग़ालिब मियां  का ? उन्हे सलाम भेजना। उनकी भी बिरादरी का ’वोट’ लेना है।
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-आनन्द-पाठक-