रविवार, 26 दिसंबर 2021

एक व्यंग्य 83 : चुनाव और यक्ष प्रश्न

  एक व्यंग्य : चुनाव और यक्ष प्रश्न

रेडियो पर गाना बज रहा है -

कलियों ने घूँघट खोले

हर फ़ूल पे भौरें डोले

लो आया प्यार का मौसम, गुलो गुलजार का मौसम ।

भारतीय़ लोकतन्त्र में गुलो गुलजार का मौसम तो नहीं आता , चुनाव का मौसम ज़रूर आता है। 

कलियाँ कौन ? 

18 साल की उम्र को कली कह रहे होंगे । स्वीट 18-’एट्टीन’। शायद नई पीढ़ी । 

वोट देने की उम्र हो गई यानी घूँघट खोलने की उम्र हो गई । सुना है शादी के बाद घूँघट खोलने की उम्र 21 साल होने वाली है।

कहते हैं 21-साल की उम्र में अपना भला बुरा सोचने की क्षमता आ जाती है । मगर वोट देने के लिए कौन सी क्षमता ? कौन सा सोच समझ कर वोट देना है। जब धर्म के नाम पर, मज़हब के नाम पर, मन्दिर - मसजिद के नाम पर ही वोट देना है  ,जात-पात के नाम पर ही वोट देना है तो इसमे सोचना क्या है।

18-साल की उम्र काफी है ।

अभी 5- राज्यों में चुनाव होने वाला है । उत्तरप्रदेश में भी होने  वाला है। हर बार ’उत्तम ’ प्रदेश  बनाने की बात होती है।हर बार प्रदेश "उत्तरापेक्षी" हो जाता है। 

फूलों पर भौरें ? 

भौरें तो वह जो हर 5-साल बाद  चुनाव के मौसम में आ जाते हैं  -टोपी लगाए। कोई लाल टोपी ,कोई नीली टोपी , कोई भगवा  कोई हरी टोपी लगाए।

यदा कदा ’गाँधी टोपी’ वाले भी आ जाते हैं । ज़रूरी है ।  चुनाव में कलियों को,  ’ फूलों’ को टोपी पहनाना है ।

फूल कौन ? जनता।

 जनता, हमेशा फूल बनी रहती है । भौरे मडराते रहते हैं । जनता का क्या । जनता, चुनाव के पहले  भी ’फूल’।  चुनाव के बाद  भी- ’फूल’ [ Fool ]

 और यही ’फूल’ बाद में  भौरों के इर्द-गिर्द मडराते  हैं।

 ओवैसी साहब तो ख़ैर अपने को "भौरा" नहीं ,’लैला’ कहते है -मगर काम ’भौरें’ वाला ही करते हैं ।

चुनाव में जनता नहीं आती -नेतागण आते हैं ।

कोई "लालटेन’ लेकर आता है-कहता है --मूढ़ ! लालटेन की रोशनी में आ । देख कैसे इसी लालटेन से मैने अपना  और अपने परिवार का अँधेरा दूर किया। ग़रीबी दूर किया । तू लालटेन लेकर भी ढूँढेगा तो भी ऐसा चमत्कार न मिलेगा।

कोई ’साइकिल’ पर आ रहा है ,कोई ’हाथी’ पर । कोई ’हाथ’ दिखाते आ रहा है कोई ’झाडू" लिए ।-देख इसी झाडू से तेरी गरीबी दूर करेंगे।कोई "कमल" का फूल लिए दौड़ रहा है -जनता को ’प्र्पोज’ करना है -कोई और न प्रपोज कर दें हम से पहले। 

सभी जल्दी में है । जनता को टोपी पहनाना है, सपने दिखाना है। जनता मगन ह्वै सपने देख रही है । ’बुधना’ -समाज के अन्तिम छोर पर खड़ा आदमी-भी सपने देख रहा है । सुहाने सपने ,रंगीन सपने, हर रंग के सपने । पेट भूखा है तो क्या! सपने देखने में कौन सी मनाही और देखने में कौन सा पैसा लगता है ।"ढपोर शंख" ही तो बनना है ।

बुधना देख रहा है -कोई मुफ़्त में ’स्कूटी’ दे रहा है --कोई ’लैपटाप। कोई खाते में हज़ार हज़ार रुपया डाल रहा है । बुधना उछल रहा है। कर्जा माफ़ हो जायेगा।

भइया बोल गए हैं ।पप्पू भैया ! कितना खयाल रखते हैं हमारी गरीबी का।

एक भाई साहब तो --चुनाव कहीं हो-कभी  हो -बस पानी-बिजली मुफ़्त में  हैं । बिल माफ़ करते फिरते रहते है। "राजकोष’ खाली कर देते है तो रोने लगते है--केन्द्र सरकार हमारी मदद नहीं कर रही है

गरीबों के हक का पैसा खा रही है।

--बुधना को सपने में खोया देख, मैं भी सपने देखने लग गया।

देखा सपने में ’यक्ष’  प्रगट हो गया। वही यक्ष जो युधिष्ठिर के चारों भाइयों को "मुआ" दिया था। युधिष्ठिर को थका दिया था ।

मैने कहा--’महराज ! अब कौन सा प्रश्न बाकी रह गया जो आप मुझसे पूछने आ गए?

यक्ष -ठहर ! तू चुनाव का टिकट चाहता है तो फ्हले मेरे प्रश्नों का उत्तर दे ।

मैं -    पूछिए

यक्ष- सत्य क्या है ?

मैं- कुरसी ।

यक्ष-परम सत्य क्या है ?

मैं - CM /PM की कुरसी ।

यक्ष- सबसे पड़ा झूठ क्या है ?

मैं- खाते में 72000/- 72000/- रुपए  का आना ।

यक्ष- मूर्ख कौन?

मैं --जनता

यक्ष -- ईमानदार कौन ?

मैं-- मफ़लर वाला ।

यक्ष- सबसे  बड़ा आश्चर्य क्या ?

मैं - --कि हर ’तथाकथित नेता’ हर दूसरे रोज़ अन्दर के परिधान की तरह अपने रंग के साथ साथ अपनी टोपी का भी रंग बदल लेता है।वह गिरगिट नहीं है । एक पार्टी के बिल से निकलता है। दूसरी पार्टी के बिल मे घुस जाता है, बिक जाता है । फिर भी कहता है कि वह ’उसूलों ’ से समझौता नहीं करता। वह कुर्सी के लिए नहीं हम ग़रीबों के लिए जीता है। वह हम ग़रीबों की ग़रीबी दूर करने आता है और अपनी ग़रीबी दूर कर जाता है।जनता को "कुर्ते का ’फटा जेब’ दिखाता है और करोड़ो का मालिक बन जाता है ।इससे बड़ा आश्चर्य और क्या  कि जब उसकी ’आत्मा’  मर जाती है और ’शरीर’ दूसरी पार्टी में घुस जाता है जिधर मलाई उधर भलाई।

यक्ष ---बस बस , रहेण दे पगले ! रहेण दे। अब रुला ही देगा क्या ? तेरे उत्तर से मैं अति प्रसन्न हुआ । बोल किस चुनाव क्षेत्र का टिकट दे दूँ ?

मैं - हे महोदय  ! आप यक्ष तो नहीं हो सकते। यक्ष को टिकट बाँटने का अधिकार नहीं होता । टिकट बाँटने ,  बेचने  का अधिकार तो ’हाइ-कमान का होता है । कृपया अपना परिचय दें कि आप कौन हैं ? "

यक्ष - हा हा हा । मैं हाइकमान ही हूँ । बोल कहाँ का टिकट दे दूँ ?

मैं - मगहर से ।

यक्ष - मगर क्यों ? काशी क्यों नहीं ?

मैं -  काशी से जमानत जब्त करानी है क्या !

---     ---  --  ==

"क्या नींद मे ’मगहर- काशी, मगहर-काशी  बड़बडा रहे हो। सुबह हो गई ,उठना नहीं है क्या ? आज बरतन धोना नहीं है  क्या ?"  --देखा श्रीमती जी -आप - पार्टी का  निशान "झाडू" हाथ में लिए खड़ी है।

सपना टूट गया । टूटे सपने का फलाफल  क्या ।

अस्तु


-आनन्द.पाठक-

[ मुखौटे ही मुखौटे-से]

रविवार, 19 सितंबर 2021

एक व्यंग्य 82 : शायरी का सर्टिफिकेट

  एक व्यंग्य : शायरी का सर्टिफ़िकेट 

चाय का एक घूँट जैसे ही मिश्रा जी के हलक के अन्दर गया कि एक शे’र बाहर निकला।
चाय की प्याली नहीं है , ज़िन्दगी का स्वाद है, 
मेरे जैसे शायरों को आब-ओ-गिल है, खाद है ।
[आब-ओ-गिल है खाद है = यानी खाद-पानी है ]
मिश्रा जी ने अपनी समझ से शे’र ही पढ़ा था कि पास खड़े एक आदमी ने कहा--
-जी ! आप कौन ?
-जी ! बन्दे को शायर कहते है। शायर  फ़लाना मिश्रा ’-मिश्रा जी ने झुकते हुए कहा।
-मगर आप का नाम-वाम तो कहीं सुना नहीं ?
-भाई जान ! हम फ़कत ’ नाम ’ के शायर नहीं ’सचमुच’ के शायर हैं।
-अच्छा !  आप ’शायरी’ भी करते हैं ? -उसने आश्चर्य से देखा-"हम तो समझे कि आप ’जुमलाबाजी’ करते हैं। आप ’जुमला’ अच्छा कह लेते हैं।
- हाँ जनाब ! जिन्हे शायरी समझने की तमीज नहीं है --वो ’जुमला’ ही समझते हैं ।
फिर दोनो हा--हा--ही -ही- हो- हो करते हुए अपनी अपनी राह लग लिए। एक संभावित दुर्घटना होते होते टल गई । बात आई-गई हो गई
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मगर मिश्रा जी को बात लग गई। और सीधे ’नीर भरी दुख की  बदली’ लिए हुए  ’-मेरे यहाँ पधारे और पधारते ही ,झरझरा कर बरस पड़े।बदली फट गई। 
’ भई पाठक! अब शायरी करने का ज़माना नहीं रहा, सोचता हूँ  शायरी करना छॊड़ दूँ’-अपनी अन्तर्वेदना उड़ेलते हुए फ़फ़क पड़े - लोगों में अब शायरी समझने की तमीज
नहीं रही। ख़सूसन मेरी शायरी। आज चचा ग़ालिब होते तो थोड़ा बहुत समझते , मीर साहब ज़रा ज़रा समझते ,अल्लामा साह्ब कोशिश करते तो शायद---तो वह सड़क छाप आदमी मेरा शे’र क्या समझता---
’अगर सौ लाख सर मारे तो शायद ही खुदा समझे:- मैने बीच ही में बात काट दी और  बतौर-ए- सलाह कहा -
-"अरे ! तो तुम  शायरी का सर्टिफ़िकेट रख कर क्यों नहीं चलते पाकेट में -ड्राइविंग लाइसेन्स की तरह ?
कितनी बार कहा  तुम से कि अपने नाम के आगे शायर लिखा करो  वरिष्ठ शायर लिखा करो । ।आजकल  बहुत से लोग लिखते हैं अपने नाम के आगे फ़ेसबुक पर ,ह्वाट्स अप पर--
शायर अलाना सिंह, शायर फ़लाना सिंह। कुछ तो ’भूतपूर्व’ शायर भी लिखते हैं अपने नाम के आगे। नहीं लिखोगे तो यही होगा साथ में दो-चार चेला चापड़ भी ले कर चला करते  तो तुम्हारा परिचय भी वही सब कराते चलते- और  वाह वाह करते सो मुफ़्त में। जब अपना ’कीमती’ शे’र चाय की थड़ी पर, ’गुमटी’ पर सुनाओगे तो यही होगा।
भई ! फ़ेसबुक पर कई मंच वाले सर्टिफ़िकेट दे रहे है -शायरी का। अब तो बहुत से मंच वाले ; मोटर ड्राइविंग सीखें 7-दिन में  -की तर्ज़ पर ग़ज़ल कहना सीखें 7-दिन में ।
 ’आन-लाइन’क्लास भी चला रहे हैं । एक सज्जन तो कविता की पाठशाला, शायरी का मकतब, ग़ज़ल का कोचिंग इन्स्तीच्यूट भी खोले हुए हैं । नियमित क्लास चलती है वहाँ ।डिस्टैन्स  लर्निंग कोर्स सेर्टिफ़िकेशन। कुछ कुछ तो अमेरिका से चलाते है दुबई से चलाते हैं ,सिंगापुर से चलाते हैं ।अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चलाते है। कुछ लोकल हैं कुछ ’वोकल’ हैं -वर्क फ़्राम होम- से शायरी करना सीखें ग़ज़ल कहना सीखें । एडमिशन क्यों नहीं ले लेते  एकाध मंच पर  ? जेब में सर्टिफ़िकेट रहता तो वह आदमी  क्या ’चालान’  कर पाता  तुम्हारा ? मार न देते एक सर्टिफ़िकेट उसके मुंह पर दुबारा ज़ुर्रत न करता। इस सर्टिफ़िकेट के आधार  पर ही  दुनिया तुम्हें शायर मान लेती।---मै हतोत्साहित मिश्रा  जी के हृदय में "का चुप साधि रहेहु बलवाना" शैली में हवा भर रहा था ।
और मिश्रा जी अविलम्ब -’जामवन्त के वचन सुहाए’  शैली में- उठते भए और पता नहीं कहाँ चलते भए।
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एक महीने बाद-मिश्रा जी  पधारते भए। 
आँखों में चमक थी - मन में आत्मविश्वास । सीना चौड़ा  । गरदन में अकड़  । आते ही  आते 15-20 शायरी के प्रमाण-पत्र ,सर्टिफ़िकेट सम्मान-पत्र ,सनद, कुछ पत्रिकाओं के कतरन पटक दिए मेज पर और एक हसरत भरी नज़र देखते हुए  बोले -"लो -देखो !-अब कोई माई का लाल आकर कोई पूछे  कि मै कौन?"
मैं वह तमाम सर्टिफ़िकेट देखने लगा --किसी ने ’ग़ज़ल श्री’ का सम्मान दिया.-.किसी ने ग़ज़ल गौरव कहा--किसी ने-" शे’र बहादुर" कहा -किसी ने ग़ज़ल विभूति कहा -किसी ने इन्हें ’अन्तरराष्ट्रीय शायर, बताया, किसी ने ’ अन्तर्राष्ट्रीय़ शायर
एक मंच वाले ने हद कर दी जब इन्हे ’21 वीं सदी का आख़िरी महान शायर ’ का ख़िताब दे दिया था -। दूसरे मंच वाले ने तो कमाल ही कर दिया था। बहुत ही चित्ताकर्षक  रंग-बिरंगी ’सर्टिफ़िकेट" बनाया था
उस पर ग़ालिब--मीर--दाग़--मोमिन ---ज़ौक़--फ़िराक़ के चित्र भी चिपकाए थे और अन्त में मिश्रा जी का ’फोटू’।-फ़लाना शायर मिश्रा जी का नाम तो लिखा था, परन्तु ---सम्मान वाली लाइन
ब्लैंक ------ छोड़ रखी थी । बिलकुल बियरर चेक की तरह । एक कागज का टुकड़ा भी नत्थी किया था। लिखा था --सयाणॆ ! तेरा अख्खा ग़ज़ल पढ़ेला है, भेजे में  घुसेला तो नी मगर दोहा राप्चिक लिखेला है। जो चाहे सम्मान
भर ले बीड़ू ! अपुन का पास टैम नहीं। 
-शायर से ज़्यादा मंच। जितने भेड़ नहीं, उतने गड़ेर। इन्हीं मंचों की कृपा से अब हर दूसरा व्यक्ति शायर हो गया।
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-मिश्रा जी ! एक बात कहूँ ? - 
- हाँ हाँ कहों मित्रवर नि:संकोच कहो ?क्या?
-कि वह आदमी ग़लत नहीं कह रहा था।
इस से पहले की मिश्रा जी अपनी कोई ’ सुभाषित वाक्य’ मेरे सम्मान में उचारते --मैंने भाग जाना ही उचित समझा।
अस्तु
-आनन्द.पाठक-
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गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

एक व्यंग्य 81 : फ़ेसबुक पर छींक

 एक व्यंग्य व्यथा : फ़ेसबुक पर छींक


"कल गुरू जी ने मुझे दीक्षित करते हुए कहा-बेटा जा तेरी शिक्षा पूर्ण हुई अब ’फ़ेसबु’क’ पर अपना कमाल दिखा। एक बात बात ध्यान रखना हर 7-दिन पर अपना "डी0पी0" ज़रूर बदलते रहना और हर 15- दिन पर कोई न कोई ”पोस्ट’ ज़रूर डालते रहना।अगर 1-महीना तुम फ़ेसबुक पर फ़ेस नहीं दिखाओगे तो दुनिया तुम्हें "इहलोक" से "उह लोक" समझ लेगी--मिश्रा जी ने सुबह ही सुबह आते हुए उचारा।
मिश्रा ! यह मेरा फ़ेस है ,फ़ेसबुक नहीं "- मैने कहा।

;नहीं फ़ेसबुक मेरी मोबाइल में हैं। कल एक पोस्ट डाली थी। 70-लाइक और 72- कमेन्ट मिल चुके हैं अबतक। तुम भी एक लाइक कर दो। ताई जी से
और बरतन वाली बाई जी से भी ’लाइक’ करवा दो तो अच्छा रहेगा ।--उन्होने अपना मोबाइल मेरी तरफ़ बढ़ाते हुए कहा-" लाइक यहाँ’।
"अच्छा तो तुम्हें भी 70 शूल 72 बाई का रोग हो गया"- मैने हँसते हुए कहा
’-क्या मतलब?
-मतलब तुम्हे समझ में नहीं आयेगा। भई बिना पढ़े कैसे ’लाइक’ कर दूँ ?
- रह गए तुम निरा घोंचू के घोंचू । पढ़ कर कौन लाइक करता है ? लाइक पहले करता है ,पढ़्ता बाद में है। पढ़ लेगा तो फिर लाइक नहीं करेगा "--मिश्रा जी ने अपना ज्ञान बताया।
- भाई मिश्रा ! मैं तो फ़ेसबुक पर इतनी कविता ग़ज़ल कहानी लिखता हूँ मगर 10-12 से ज़्यादा लाइक और 5-10 से ज़्यादा कमेन्ट कभी नही मिलता ।

"तुम ज़िन्दगी भर क्लर्की किए हो न । फ़ेसबुक पर नोट शीट पर नोट शीट, ड्राफ़्ट पर ड्राफ़्ट जैसा कुछ कचरा लिखते होगे। मैने तो ज़िन्दगी भर अफ़सरी की, ’वन-लाइनर-पोस्ट’ [ एक लाइन का पोस्ट] लिखता हूँ 100-50 कमेन्ट तो चुटकी बजाते मिल जाते हैं । मेरे बड़े साहब तो फ़ाइल में उतना भी नहीं लिखते थे । बस- ???-लिख देते थे । और मैं समझ जाता था । फ़ाइल पर जब मैं ’Done "
लिख देता था तब वह फ़ाइल पर "स्वीकृत" देते थे । दुनिया समझती थी ’कम्प्लाएन्स डन"-।- साहब समझता था ’लिफ़ाफ़ा-डन" । सरकारी भाषा में इसे "सरल भाव सम्प्रेषण पद्धति"कहते है।बाद में कोई बदमाशी करता था तो साहब "स्वीकृत" के आगे "अ-" बढ़ा देते थे।
तुम भी ’वन लाइनर पोस्ट किया करो।

-"भई मिश्रा ! कौन सा वन लाइनर पोस्ट कर दिया था कल तुमने कि -- ।"
-यही कि -आज मैने छींक मारी--
-इस पर 70-लाइक 72- कमेन्ट ???
भगवान भला करे तुम्हारे चाहने वालों का -मैने कहा
-भगवान भला तो कर ही रहा है ’फ़ेस बुक ’ वालों पर।तुम्हें मालूम है एक से बढ़ कर एक कमेन्ट आए -मिश्रा जी उत्साह में आकर बताने लगे।
10-20 तो ’स्माइली" वाले "आइकान " थे 10-20 थोबड़ा लटकाए वाले आइकान थे जैसे तुम्हारा है।
एक ने लिखा --छींक किधर से मारी ,नाक से मारी या ---? छी-- छी-- छी --कैसे कैसे कमेन्ट करते हैं ये लोग। एक ने लिखा -छींक मारते समय आँख बन्द थी कि खुली थी?
एक व्याकरणाचार्य जी तो सवाल ही कर बैठे- श्रीमान ! क्या आप को मालूम है कि "छींकना" एक अकर्मक क्रिया है ?आप ’छींक" से ज़्यादा हिंदी पर ध्यान दें।
एक ने लिखा किस दिशा में छींक मारी --ईशान कोण से से अग्नि कोण से ? जब आप ने छींक मारी तो सम्मुख कोई था ? क्योंकि शास्त्रों में लिखा है -

सम्मुख छींक लड़ाई भाखै
छींक दाहिनी द्रव्य विनाशै
ऊँची छींक कहे जयकारी
नीची छींक होय भयकारी

कोई ज्योतिषी भाई थे।
एक सज्जन ने लिखा -

-" रऊआ छींक मारीं तऽ खेल हो जाई
सगरॊ अँगना "करौउना" फ़ईल जाई

बाद में मालूम हुआ कि कोई पूर्वांचली भाई थे ।बम्बई फ़िल्मों में भोजपुरी गीत लिखने गए थे कि प्रोड्यूसर ने वापसी का टिकट थमाते हुए कहा था--सर !आप अपने "अँगना" मे बैठ के गीत लिखें ।अच्छा लिखते हैं । तब से वह फ़ेसबुक के अँगना में गीत लिखते है।
एक महाशय ने तो अपना -वन लाइनर- जोड़ दिया "

आज मैने छींक मारी
हरहूँ नाथ मम संकट भारी

मालूम हुआ कि वह महाशय किसी मंच पर किसी दिए हुए मिसरे पर "गिरह" लगाते है।

एक ने पूछा कि जब आप ने छींक मारी तो संसद में ’विश्वास मत" तो पेश नहीं होने जा रहा था ? । एक छींक से मैने सरकार गिरते देखा है।
एक ने लिखा -आप ने मुँह पर मास्क लगा कर छींक मारी कि मास्क हटा कर ? अगर मास्क हटा कर छींक मारी तो करोना काल में आप समाज के लिए
घातक और अवांछित व्यक्ति हैं ।भारतीय दंड संहिता धारा अमुक--अमुक-- के तहत आप -बाक़ी आप स्वयं समझदार है।
शायद कोई वकील साहब थे।

एक फ़ेसबुकिया डाक्टर ने सलाह दी कि आप अपने नाक का सी0टी0 स्कैन करा लें -इसे आप साधारण नज़ला जुकाम न समझें -शायद आप के नाक में कोई गंभीर रोग न पल रहा हो। नास्ट्रिल कैन्सर भी हो सकता है । मिलिए गली नं 5 खोली नं 4 मोबाइल नं ---- । पहला कन्सल्टेशन फ़्री।

भाई साहब !जानते हैं इस ’वन-लाइनर’ के लिए एक मंच वाले ने " वन-लाइनर आफ़ द मन्थ " -का प्रथम पुरस्कार भी दिया है । 10-20 बधाइय़ाँ तो उस पुरस्कार पर ही मिल गईं।
एक ने लिखा---दूसरे ने लिखा "-तीसरे ने लिखा --- इससे पहले कि मिश्रा जी अपना कमेन्ट गाथा और विस्तार से सुनाते मैने बात बीच में ही काट दी--" बस बस ,बहुत हो गया । आप से ज़्यादा तो आप की ’छींक’ वायरल हो गई।
-गुरुदेव ! मुझे भी 1-2 ’वन लाइनर वाला पोस्ट बता दो। कम से कम मेरे गीत ग़ज़ल माहिया व्यंग्य पर मिलने वाले कमेन्ट से ज़्यादा ही कमेन्ट मिलेंगे।
मिश्रा जी ने 2 मिनट के लिए अपनी आँखें बन्द की और फिर प्रस्फुटित हुए। बोले आप पोस्ट डाल दो -

’आज के कुछ साहित्यकार घमंडी होते हैं--

--"कुछ"-शब्द ज़रूर लिखना वरना तुम भी लपेटे में आ जाओगे।
धन्य हो प्रभु ! आप महान हो-मैने दोनो हाथ जोड़ लिए।

अस्तु

-आनन्द.पाठक-

रविवार, 14 फ़रवरी 2021

एक व्यंग्य 80 :वैलेन्टाइन डे-3

 एक व्यंग्य व्यथा :  वैलेन्टाइन डे -3

 इस 3- से आप ’पानीपत का "तीसरा" युद्ध न समझ लें । हालाँकि नव संस्कृति के नए दौर में  ’वैलेन्टाइन डे" मनाना किसी पानीपत के युद्ध से कम भी नहीं  ,

जहाँ एक तरफ़ नए नए प्रेमी जोड़े लड़के-लड़कियाँ -दूसरी तरफ़ संस्कृति के ठेकेदार. प्रशासन, पुलिस और बीच में पानीपत का मैदान ।

 2-वैलेन्टाइन डे मना चुका हूँ -मगर शहीद न हो सका ]

14-फ़रवरी ।

आज वैलेन्टाइन डे है ।प्रेम का प्रतीक -प्रेम दिवस। दो दिन बाद सरस्वती पूजा है । ज्ञान का प्रतीक, ज्ञान दिवस ।

वैलेन्टाइन डे हमेशा 14-फ़रवरी को ही पड़ता है । लगता है यह दिन उतना ही अटल है, सत्य है, शाश्वत है, जितना "प्रेम’।

परन्तु ज्ञान दिवस [सरस्वती पूजा] ’14-फ़रवरी से कभी पहले आ जाता है,कभी बाद में । इस साल प्रेम  पहले आ गया.ज्ञान बाद में आएगा।

ज्ञान और प्रेम में कोई न कोई संबंध अवश्य है । ज्ञान होता है  तो प्रेम उपजता है  प्रेम हुआ तो ज्ञान । गोपियों को जब  ज्ञान उपजा,

तो उद्धव जी  फ़ेल हो गए} मगर जब ’प्रेम’ असफल’ होता है तो ज्ञान -चक्षु खुलता है ।मेरा तो कई बार खुल चुका है। मत पूछना कैसे ?

हम" वैलेन्टाईन डे" मनाते है इसलिए कि अंग्रेज  मनाते हैं ।हम उनसे कम है क्या ?  हमारे यहाँ उस स्तर का कोई "वैलेन्टाइन"  पैदा ही नहीं हुआ। लैला- मज़नूँ ,सीरी-फ़रहाद,सोहनी-महीवाल

यह सब तो किस्से है, पढ़ने के लिए  सोनपुर के मएला में  ददरी के मेला में ,नाटक खेलने के लिए , मेला में नौटंकी करने के लिए ।इसीलिए बहुत से लड़कियाँ आज भी  इस स्तर के  प्रेम को ’नौटंकी’ ही मानती  है । 

इन देसी किस्सों में वह उत्सर्ग कहाँ जो वैलेन्टाइन वाले किस्से में है-निस्वार्थ और निश्छल-माडर्न,एडवान्स ,हाइ क्लास का प्रेम। ,

वह तो भला हो पश्चिमी देश वालों का .अंग्रेजों का, जो बता दिया कि वैलेन्टाइन का प्रेम सबसे बढ़ कर-शुद्ध- सात्विक ।तुम लोग भी मनाया करो, सो मनाते है प्रेम भाव से।

इस दिन,  नई फ़स्लों पर ,नई पौध पर बहार आ जाती है। या कहिए छा जाती है ।झूमने लगते है ।आपस में गले मिलने लगते है लड़के-लड़कियाँ।

पहले मैं भी  झूमता था। बाग़ों में ,तितलियाँ पकड़ता था ।एक महीना पहले से ही जुगाड़ में लग जाता था । आने वाले परीक्षा की चिन्ता नहीं करता था। वैलेन्टाईन डे की चिन्ता ज़रूर करता था। अगर इसमे पास हो गए तो

समझो लाइफ़ बन गई ,अगर वह ’वाइफ़’ न बनी तो । नकल कर करा के इक्ज़ाम पास कर के भी  क्या करेंगे--ज़्यादा से ज़्यादा क्लर्की करेंगे। फिर वही जीवन घसीटना।

बाग में  बैठा कर "उसको"  समझा रहा था --- तुम कहॊ तो आसमान से चाँद-तारे तोड़ कर ला सकता हूँ --- तुम कहॊ तो तुम्हारे लिए जान भी दे सकता हूँ ,-तुम कहो हवा का रुख मोड़ सकता हूँ

तुम कहो तो----तुम कहो तो----हम दोनो का -- एक छोटा सा बँगला बनेगा, न्यारा,कोठी बँगला गाड़ी  होगा --,कुत्ता- होगा --

"कुत्ता" ? -बीच ही में बोल उठी वह।--नहीं जानूऽऽऽऽ  ! तुम्हारे रहते कुत्ते की क्या ज़रूरत ?

"हें हें हें --तू भी अच्छा मज़ाक कर लेती है" --मैने अपनी बत्तीसी निपोरी।

"जानती हो ! हम लोग स्विटजरलैंड चलेंगे शादी के बाद हनीमून पर " -मैने उसे समझाया-- स्विटजरलैंड देखा है ? मैने सीना चौड़ा कर के पूछा ।

"हाँ जानती हूँ।हर साल कोई न कोई  तेरे जैसा निठल्ला  ’स्विटजर लैंड ले जाता है मुझे ।"

 अभी सपने बुन ही रहा था कि किसी ने  पीठ पर अचानक एक डंडा जमा दिया --बिलबिला कर मुड़ कर देखा  पीछे मूछें ताने पुलिसवाला खड़ा है।

मैं हड़बड़ा कर बोल उठा --"सर कजिन है, मेरी कज़िन सिस्टर  "

स्साले !मुझको चराता है । मैं भी अपनी जवानी में ऐसे ही कज़िन सिस्टर घुमाया करता था ।चल थाने !

एक डंडे से ’रिश्ते’ कैसे बदल जाते हैं ।

ख़ैर ,ले देकर मामला रफ़ा दफ़ा हो गया। मगर वो भाग गई ।

 अब मैं उसे ढूँढने निकला । किधर गई होगी ? किसके साथ भागी होगी? कहीं ’स्विटजरलैंड’ तो नहीं चली गई?

मैं दिन भर उसे ढूँढता रहा । मगर वह न मिली ।

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मिश्रा जी ने आते ही आते पूछा --"अब पीठ का दर्द कैसा है ?"

पीठ? किसकी पीठ ? कैसी पीठ ?-कैसा दर्द ? -मैने आश्चर्य भाव से पूछा। 

"बड़े मियाँ दीवाने ऐसे न बनो !-मिश्रा ने जिगर मुरादाबादी का एक तरमीम शुदा शे’र पढ़ा 

"जिगर" तू ने छुपाया लाख अपना दर्द-ओ-ग़म लेकिन

बयाँ कर दी तेरी सूरत ने सब कैफ़ियतें  दिल की 

"भाग गई न ? साल भर का दिन बर्बाद हो गया न । मियाँ ! बिना ’स्टेपनी’ के गाड़ी चलाओगे तो ऐसा ही होगा। मेरा देखो -मैं दो-दो ’स्टेपनी’  साथ लेकर चलता हूँ । एक भागी ,दूसरी हाजिर।

प्रभु ! आप के चरण किधर है ?-मैने कहा।

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अब तो एक ज़माना हो गया वैलेन्टाइन डे मनाए हुए।


जब से  श्रीमती जी को वैलेन्टाईन डे के पीछे का "खेल" और ’रहस्य’ मालूम हो गया  तब से  आज के वह मुझे कैद-ए-बा मशक़्क़त की सज़ा दे देती हैं। 

आज 14-फ़रवरी है । आज कहीं आने -जाने को नी । नो बाग़-बगीचा ,नो गार्डेन ।सर में जास्ती तेल-फ़ुलेल लगाने को नी ।आज नो रोमान्टिक शे’र-ओ-शायरी ।  घर बैठो --गीता पढ़ो --रामायण पढ़ो ।’राम-धुन ’ गाओ --

आँखें नीची ,आवाज़ ऊँची --

मित्रो ! आज 14-फ़रवरी है और मैं रामायण की चौपाइयाँ पढ़ रहा हूँ ।जोर जोर से पढ़ रहा हूँ ।

बरु भल बास नरक कर ताता। 

दुष्ट संग जनि देइ बिधाता॥

---    --    --  -- 

नाम "लंकिनी’ एक निसचरी । सो कह चलसि मोहिं निंदरी ॥

 स्वामी आनन्दानन्द जी महराज कहते भए- घर में --

’त्रिजटा नाम राक्षसी एका ।--------

 प्रेम से  बोलो ’त्रिजटा’ मइया की जै ! वैलेन्टाइन महराज की जै ।

-आनन्द.पाठक-


शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

एक व्यंग्य 79 : दीदी ! नज़र रखना

 

एक हास्य-व्यथा  : दीदी ! नज़र रखना

 

"ट्रिन! ट्रिन !ट्रिन !-फोन की घंटी बजी और श्रीमती ने आदतन फ़ोन उठाया।

कहते हैं श्रीमती जी फ़ोन सुनती नहीं, ’सूँघती’ है और समझ लेती हैं कि किसका  होगा।

"हाँ  बिल्लो बोल  !"

"क्या दीदीऽऽ! तुम भी न! अरे ;बिल्लो नहीं --बिट्टो बोल रही हूँ।बिट्टो।

;अरे हाँ रे  । तेरे "टुल्ले" जीजा को "लुल्ले " बोलते बोलते ’ट’ को ’ल’ बोल जाती हूँ न।हाँ बोल ।

" दीदी, मेरी बातें ध्यान से सुनना। आजकल जीजा के चाल चलन ठीक नहीं लग रहा है। तुम  तो ’फ़ेस बुक’ पर हो

नहीं। मगर मैं उनका हर पोस्ट पढ़ती हूँ । जाने किसे कैसे कैसे  गीत ग़ज़ल पोस्ट कर रहे हैं आजकल।मुझे तो  दाल में

कुछ काला लग रहा है ।  हाव भाव ठीक नहीं लग रहा हैउअनका। पिछले महीने एक रोमान्टिक गीत पोस्ट किया था ।

लिखा था-

खोल कर यूँ न ज़ुल्फ़ें चलो बाग़ में

प्यार से है भरा दिल,छलक जाएगा

 

 ये लचकती महकती हुई डालियाँ

 झुक के करती हैं तुमको नमन, राह में

 हाथ बाँधे हुए सब खड़े फ़ूल  हैं

 बस तुम्हारे ही दीदार  की  चाह में

 

यूँ न लिपटा करों शाख़  से पेड़  से

मूक हैं भी तो क्या ? दिल धड़क जायेगा

 

पता नहीं किसको घुमा रहे हैं  गार्डेन में,आजकल ?

 

’अरे ! ऊ का घुमायेंगे किसी को, कंजड़ आदमी । मुझे तो कभी घुमाया नहीं "--श्रीमती जी ने प्रतिवाद किया

और मैंने चैन की साँस ली ।

 

बिट्टो ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा-"कल एक गीत पोस्ट किया है जीजा ने" । लिखा है

 

कैसे कह दूँ कि अब तुम बदल सी गई

वरना क्या  मैं समझता नहीं  बात क्या !

 

  एक पल का मिलन ,उम्र भर का सपन

  रंग भरने का  करने  लगा  था जतन

  कोई धूनी रमा , छोड़ कर चल गया

  लकड़ियाँ कुछ हैं गीली बची कुछ अगन

 

कोई चाहत  बची  ही नहीं दिल में  अब

अब बिछड़ना भी  क्या ,फिर मुलाक़ात क्या !

वरना क्या मैं समझता----

 

लगता है जिसको घुमा रहे थे ,वो छॊड़ कर भाग गई । कभी कभी फ़ेसबुक भी चेक कर लिया करो इनका।

मुझे तो कुछ लफ़ड़ा लग रहा है । ज़रा कड़ी नज़र रखना जीजा पर ।

 

" हाँ बिट्टो ! मुझे भी कुछ कुछ ऐसा लग रहा है ।पिछले हफ़्ते बाथरूम में एक फ़िल्मी गाना गा रहे थे।

 

किसी राह में ,किसी मोड़ पर

 --कहीं चल न देना तू छोड़ कर । मेरे हम सफ़र ! मेरे हम सफ़र

 

किसी हाल में ,किसी बात पर

कहीं चल न देना तुम छोड़ कर---मेरे हम सफ़र ! मेरे हम सफ़र !

 

पता नही किस को छोड़ने की बात कर रहे थे।

मैने टोका भी आजकल बड़े गाने बज़ाने हो रहे हैं जनाब के तो ।

बोले कितना सुन्दर गाना है।।मैने पूछा कौन ? , गाना ? कि गानेवाली ?

तो कहने लगे कि तुम्हारे दिमाग़ में  तो कचड़ा भरा है ।मोदी जी को एक सफ़ाई अभियान इधर भी शुरु

कर देना चाहिए ।

अभी कल ही एक गाना  सुना उनका ।आँख बन्द कर बड़े धुन में गा रहे थे।

 

-ऎ मेरे दिल-ए-नादाँ--तू ग़म से न घबराना

इक दिन तो समझ लेगी --दुनिया तेरा अफ़सान

 

मुझे भी कुछ ठीक नहीं लग रहा है,आजकल । पता नहीं कौन सा अफ़साना दुनिया को समझा रहे थे।

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बिट्टो ने अपनी लगाई बुझाई जारी रखते हुए कहा--" !कल ही जीजा का एक पोस्ट देखा था,लिखे थे।

 

जब से छोड़ गई तुम मुझको

सूना सूना  दिल का कोना ।

साथ भला तुम कब तक चलती

आज नहीं तो कल था होना ।

 

दीदी !’इनके’ दोस्त कह रहे थे कि सरकारी सेवा से रिटायर हुआ आदमी खुल्ला सांड  हो जाता है ।गले से ’Conduct Rules ’ का  पगहा Rules 14,16 का फ़न्दा  छूट जाता है|
सारे बुड्ढे कहते हैं कि मस्ती की जिन्दगी तो 60 के बाद शुरु होती है।हमे तो डर लग रहा है कि जीजा कहीं नई ज़िन्दगी न शुरु कर दें 

 

"अरे ! तू चिन्ता न कर बिट्टो ! ये लिखना पढ़ना गाना बजाना  जितना कर लें। मगर जा कहीं नही  सकते ।कुछ तो ’करोना’ ने क़ैद कर दिया,

कुछ मैने ’क़ैद-ए-बा मशक़्कत ’ कर दी है॥ मटर छिलवाती हूँ ,प्याज कटवाती हूँ ।कभी कभी तो ’झाड़ू पोछा’ भी करवा लेती हूँ इन से।

 "पर कटा पंक्षी" बना दिया है इनको । " पर कटा पक्षी " फ़ुद्क तो सकता है उड़ नहीं सकता ।

 

अरे! तो कहीं फ़ुदकते फ़ुदकते ही न निकल जाए _-- कह कर बिट्टो ने फ़ोन रख दिया ।छ

 

-आनन्द.पाठक-

एक व्यंग्य 78 : गुड मार्निंग

 

एक लघु व्यथा :गुड मार्निंग

 

’मम्मी ! मम्मी ! अब वो ’अंकल’ ह्वाटस-अप ’ पर नहीं आते ?-छोटी बेटी ने एक मासूम-सा सवाल किया

"कौन बिट्टो ?"

"वही अंकल,जो हर रोज़ सुबह सुबह ’गुड मार्निंग’ करते थे। फ़ूल भेजते थे ।गुड नाइट करते थे ।शे’रो,शायरी भेजते थे ,ह्वाटस पर।"

 नहीं बिट्टो ! अब वह कभी नहीं आयेंगे। मैने मार दिया उन्हें । आइ हैव किल्ड हिम ।

 बिट्टो आश्चर्य से मम्मी का मुँह देखने लगी। फिर वही मासूम-सा  सवाल -कैसे मम्मी ?

 "अगर किसी अपने सच्चे चाहने वाले को ”ब्लाक’ कर दो तो कुछ दिन बात वह तड़प तड़प कर मर जाता है"

कह कर मम्मी नम आँखों से किचेन में चली गईं ।

 बिट्टो को यह बात समझ में नहीं आई । अभी वह इतनी बड़ी नहीं हुई थी ।

-आनन्द.पाठक--