tag:blogger.com,1999:blog-64439627331402803662024-03-13T15:36:08.399+05:30अल्लम् गल्लम् --- हास्य-व्यंग्य
आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.comBlogger116125tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-25404377573044691582024-03-01T10:05:00.005+05:302024-03-01T10:07:20.907+05:30एक व्यंग्य व्यथा 109/06 : वलेन्टाइन डे 2024: चौथी क़सम<p> </p><p><br /></p><p>[ नोट " वैलेन्टाइन डे [2024] के पहले-- जल्दी जल्दी अपनी -आँखे- बनवाई कि उस दिन नई नज़र से एक नज़र भरपूर ’उसे’ देख सकूँ।</p><p>वैलेन्टाइन डे [2024] के बाद------------लगता है कि अब - ’दो दाँत"-भी बनवाने पड़ेंगे।</p><p><br /></p><p> <span style="white-space: pre;"> </span><b>एक व्यंग्य व्यथा : वलेन्टाइन डे 2024: चौथी क़सम</b></p><p><br /></p><p><span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> </span>ग्रह नक्षत्र इधर से उधर हो जाएं, मगर वलेन्टाइन डे-उर्फ़ प्रेम प्रदर्शन दिवस- कभी इधर उधर नही होता । आएगा तो 14-फ़रवरी को ही। वह प्रेम क्या जो हिल जाए बदल जाए । </span></p><p>हमारे यहाँ तो ऐसा कोई प्रेमी पैदा ही हुआ नही तो प्रेम- दिवस क्या मनाते । हमारे यहाँ जो प्रेम प्रसंग रहा वो आध्यात्मिक रहा संस्कारी रहा सात सात -जनम के साथ का रहा। सात दिन, सात महीने का होता तो मनाते भी । ले देकर लैला मजनू, शीरी फ़रहाद, सोहनी महिवाल का प्रेम रहा तो उनका कोई प्रेम दिवस न कोई मनाता है न बताता है ।चूँकि ’वेलेन्टाइन डे " अंगरेजो का बताया हुआ दिन है सो हम बड़ी श्रद्दा पूर्वक प्रेम पूर्वक मनाते हैं । जो सुख " वाशरूम" कहने में है वह गुसलखाना कहने में कहाँ !</p><p><span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> </span>अच्छा, वैलेन्ताइन डे यानी प्रेम प्रदर्शन दिवस भी अजीब डे है । कभी तो वह सरस्वती पूजा [ ज्ञान की देवी] से पहले आ जाता है तो कभी सरस्वती पूजा के बाद। कभी "ज्ञान मार्ग" पहले तो </span>कभी प्रेम मार्ग पहले। ज्ञानीजन लक्ष्य प्राप्ति के लिए दोनो मार्ग को एक ही बताते हैं,मनाते हैं मगर "संस्कृति सेना" " संस्कार वाहिनी"वाले, पुलिस वाले कहाँ समझ पाते है और हर बार प्रेम में रोड़े अटकाने चले आते है।मगर इस बार [2024] का वैलेन्टाइन डे --ऐन सरस्वती पूजा , ज्ञान मार्ग वाले दिन पड़ गया और मेरे लिए एक धर्म संकट उत्पन्न हो गया । मैं जाऊँ तो जाऊं किधर जाऊँ, ज्ञानमार्ग कि प्रेम मार्ग। एक बार ,उद्धव जी यही ज्ञान मार्ग गोपियों को समझाने गए थे । क्या हुआ ? ख़ुद ही प्रेम मार्ग पर चलने लगे। </p><p><span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> </span>मैं एक सप्ताह पहले से ही तैयारी में लग गया। सरस्वती मैया ने जितना ज्ञान मुझे देना था दे दिया था विद्यार्थी जीवन में ।अब तो प्रेम मार्ग ही खोजना बाक़ी रह गया है ।आजकल हर प्रेम मार्ग किसी न किसी पार्क में जाकर खत्म हो जाता है। हर साल अपनी वेलेन्टाइन खोजना पड़ता है । हर साल इसी खोजने में लग जाता हूँ-~एक सप्ताह पहले से </span>--फ़ेसबुक छानने खगाँलने लग गया ।सौभाग्य से या दुर्भाग्य से -एक मिल भी गई। बड़ी शिद्दत से चैट करने लग गया। सुबह -शाम-रात-दिन। वक़्त बहुत कम था।</p><p>चैट तो बहुत हुई ।लेकिन निजता पालिसी को ध्यान रखते हुए कुछ अंश ही लगा रहा हूँ कि पाठकगण भी यह समझ लें कि मेरा प्यार एक सप्ताह में ही प्रथम हिमालय से कितना उँचा ,समन्दर से कितना गहरा हो गया।</p><p>पहला दिन प्रथम स्तर की चैट--</p><p>==</p><p>- " हेलो पिंकी जी -आप कैसी है ? </p><p>- मै ठीक। आप?</p><p>-मैं भी ठीक । पर मन नही लगता।</p><p>-क्यों ? </p><p>-आप बिना ज़िंदगी सूनी। शून्य आकाश में तारे गिन रहा हूँ } आप क्या कर रही हैं?</p><p>-मैं उन्हीं तारों को अपने दुपट्टे में टाँक रही हूँ</p><p>--- --- </p><p>एक अन्य दिन की चैट-</p><p> </p><p>--पिंकी ! तुम कैसी हो?</p><p>--मैं ठीक। तुम क्या कर रहे हो अभी ?</p><p>--कुछ नहीं बस तुम्हारी याद बहुत आ रही है--बस तुम्हें ही दिन रात याद करता हूँ।</p><p>--चल झूठ्ठे !</p><p>-चल झूठ्ठी ! बड़ी नखरे मार री आज तो</p><p>------</p><p> उच्चतम स्तर का चैट----</p><p>-पिंकी ! तू क्या कर रही है ?</p><p>--कुछ नहीं ।</p><p>-अच्छा सुन ! एक काम करते है। कल वैलेन्टाइन डे है । मिलते है पार्क में।</p><p>-कौन से पार्क में ?</p><p> -भूतहिया पार्क </p><p>--हट ! जब तुम हो तो भूतहिया पार्क क्यों ?</p><p>-- अरे पगली ! कल वैलेनटाइन डे है न -तो उधर संस्कार वाहिनी वाले जाते है --न पुलिसवाले।</p><p>पिंकी--ना बाबा ना -मैं उधर नहीं जाऊँगी। सेन्ट्रल पार्क में मिल न।क्या गिफ़्ट देगा । पहले बता दे । बाद में लफ़ड़ा ठीक नहीं</p><p>मैं -- सोच रहा हूँ आसमाँ से चाँद तोड़ कर तेरे आंचल में डाल दूँ </p><p>पिंकी-- हट ! मैं साड़ी थोड़े ही पहनती हूँ कि आँचल में--</p><p>मैं --कोई बात नहीं । तो तेरे दुपट्टे में टाँक दूँगा----- ओके अच्छा सुन ! कल न तू वो पीली वाली सूट पहन कर आना । जो डी0पी0</p><p>में लगाई है। पूरी एन्जिल लगती है एन्जिल ! प्रोमिस?</p><p>--तू भी न, नीला वाला सूट पहन कर आना --शाहरुख खान लगता है शाहरुख । प्रोमिस?</p><p>--हट ! तू बड़ी वो है</p><p>--तू बड़ा वो है ।</p><p>---- ---</p><p>अगर कोई सज्जन इस ’तू बड़ी वो है;-की अंगरेजी बता दे तो अगले साल इंगलिश में बोल कर ही इम्प्रेस करूँगा।</p><p>जब वार्ता "आप" से शुरू होते हुए --"तुम" से गुज़र कर --"तू" पर आ जाए तो समझिए प्यार परवान चढ़ रहा है । गूगल बाबा बता गए है।</p><p>--- --- ---</p><p>मैं सेन्ट्रल पार्क में नियत समय से एक घंटा पहले ही पहुँच गया और वह एक घंटा बाद आई। यह ब्र्ह्मा जी का श्राप है कि कोई लड़की</p><p> तय समय पर मिलने नहीं पहुँचती । देर से आती है और गाते हुए आती है -खफ़ा न होना--देर से आई -दूर से आई मजबूरी थी-वादा तो निभाया----।</p><p>फिर भी लड़के को कोई शिकायत नहीं होती । लड़के धैर्यवान होते हैं।</p><p> <span style="white-space: pre;"> </span>दूर से देखा । वह आ रही है । यू-ट्यूब वालो ने मुझे समझाया था कि जब लड़की मिलने आए तो -’मुँह घुमा कर, मुँह फ़ुला कर "- बैठ जाना । उसे यह न पता चले कि तुम बहुत उत्सुक और आतुर हो ।अत: मैं बेन्च पर मुंह घुमा कर बैठ गया ।</p><p>वो पास आ गई और उसने जैसे ही मेरे कंधे पर हाथ रखा और जैसे ही मैने मुँह उसकी तरफ़ घुमाया कि-- मुझसे पहले वह चौंक गई ।</p><p>गुस्से में पैर पटकते हुए बोली--अरे! तू ! स्साले कंजड़ ! खूसट ! इस साल फ़िर तू ! यू चीटर ----</p><p>-- तू चिटरनी! फिर आ गई । टकली ---बड़ी भाव खा री है</p><p>उसने कहा ---लास्ट इयर कहा था यह हार तुम्हारे लिए है ,सोने का है } यू फ़्राडिये ! पीतल का निकला । नॊट दिया था कि शापिंग कर लेना--साला जाली नोट थमा कर निकल लिया।</p><p> वो तो अच्छा हुआ कि मेरे दूसरे लल्लू ब्वाय फ़्रेन्ड ने पेमेन्ट कर दिया -- मैं पकड़ाते पकड़ाते बची--स्साले !कजूस इतना कि 100/- रुपए का कैंडी खिला कर मेरी 430./-</p><p> की लिपस्टिक खराब कर दी --</p><p>-- अरे तो तू कौन सी --चार चार ब्वाय फ़्रेंड लेकर घूमती है --</p><p>-यू शट- अप !</p><p>--क्यूँ शट-अप ? यू शट अप--</p><p> फिर उसने अपनी "सैंडिल -प्रहार" से मुझे शट अप करा दिया । बाक़ी बचा-खुचा शट-अप पुलिस ने करा दिया । और मैं सीधे घर वापस आ गया ।</p><p>----</p><p>श्रीमती जी ने दरवाज़ा खोला --अरे! मुँह पर रुमाल ! मुँह पर रुमाल क्यों?</p><p>-अरे कुछ नहीं } वो सामने वाले दो दाँत उखड़वाने थे न डेन्टिस्ट से ..</p><p>श्रीमती जी ने सेंक वग़ैरह लगाई पेन किलर दिया तो कुछ आराम आया । फिर मुस्करा कर बोली --मना आए वैलेन्टाइन डे !</p><p>--- ---- - </p><p>भगवान कसम दर्द की एक ऐसी टीस उठी कि हृदय में ज्ञान ज्योति जग गई । आत्मा ने कहा--हे मूढ़ प्राणी ! कस्तूरी कुंडल बसे --मॄग ढूँढे बन माहि।</p><p> घर में ही वैलेन्टाईन डे मना लेता जी भर-व्यर्थ ही इधर उधर मुंह मारता फ़िरता है-क्या हुआ अगर यह वेलेन्टाइन मँहगी है--हीरे का ही तो हार मांगती है--दाँत तो नही तोड़ती ।</p><p>-- -- </p><p>राजकपूर साहब ने "तीसरी कसम" में तीसरी कसम खाई थी --अब अपनी बैलगाड़ी में किसी बाई जी को लेकर --कभी -</p><p>और आज मैने चौथे वेलेन्टाइन डे पर चौथी कसम खाई ---अब किसी ’फ़ेसबुकिया लड़की ’ का डी0पी) देख कर --कभी --अपना वैलेन्टाइन नहीं बनाऊँगा ।</p><p><br /></p><p>[ कथा सार --जब प्यार की बात ’आप "आप" से शुरु होकर---"तू तड़ाक" पर खत्म हो जाए तो समझ लीजिए कि ’प्यार की सर्किट’ फ़ुँक गई]</p><p><br /></p><p>-अस्तु </p><p>-आनन्द.पाठक-</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p> </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p> </p><div><br /></div>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-43858336680628905702023-07-17T11:42:00.009+05:302023-07-17T11:42:58.372+05:30 हिंदी साहित्य लेखन --शरद जोशी जी की नज़र में---<p> <span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> <b style="background-color: #fcff01;"> </b></span><b style="background-color: #fcff01;">हिंदी साहित्य लेखन --शरद जोशी जी की नज़र में---</b></span></p><p><br /></p><p> <span style="white-space: pre;"> </span>मेरे हास्य-व्यंग्य लेखन यात्रा में हिंदी और उर्दू के अनेक व्यंग्यकारों का प्रभाव ज़ रहा जिसमें हिंदी में आ0 [स्व0] हरिशंकर परसाई जीऔर आ0[स्व0] शरद जोशी का विशेष और उर्दू में शौक़त थानवी और फ़िक्र तौंसवीं का ज़्यादा प्रभाव रहा है। [यहाँ उन सभी माननीय व्यंगकारों के नाम लिखने से सूची लम्बी हो जायेगी और इस लेख का यह विषय भी नहीं है।] परिणाम स्वरूप मेरी पहली पुस्तक -शरणम श्रीमती जी -[ व्यंग्य संग्रह] ही छपी। बाद में अन्य व्यंग्य संग्रह भी छपे जैसे --सुदामा की खाट--अल्लम गलाम बैठ निठ्ठलम --रोज़ तमाशा मेरे आगे।</p><p><span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> </span>शरद जोशी जी ,के0पी सक्सेना जी और अन्य व्यंग्यकारों ने मिल कर , कवि सम्मेलन और मुशायरों की तर्ज़ पर -मंच से व्यंग्य पढ़ने </span>की एक वाचिक परम्परा शुरु की थी। परन्तु यह कार्यक्रम बहुत दिन तक न चल सका । आजकल इस परम्परा के ध्वजा वाहक आ0 सम्पत सरल जी[ जयपुर]हैं जो बस नाम से ही ’सरल’ हैं वरना अपने नुकीले पैने और तीक्ष्ण व्यंग्य से लोगों की टांग ही नही, कान भी खीचते है। यहाँ पर उन तमाम व्यंग्यकारों के लेखन शैली का तुलनात्मक अध्ययन की बात नहीं करूँगा.। बस शरदजोशी जी के - पचास साल बाद -शायद -आलेख की चर्चा करूंगा जिसे उन्होने अपनी एक पुस्तक की भूमिका के रूप में लिखा था जिसमे उन्होने उस समय पचास साल की कैसी कल्पना की थी। जोशी जी कोई भविष्य वक्ता नही थे और न ही कोई ज्योतिषी ही थे। मगर एक समर्थलेखक के रूप में भविष्य द्र्ष्टा अवश्य थे जो आज सिद्ध होती नज़र आ रही है।जोशी जी यह आलेख शायद 1975 में लिखा गया था और उस समय मैं रूडकी विश्वविद्यालय [ अब आई0आई0टी0] से इंजीनियरींग कर रहा था। आज 2023 चल रहा है50 साल पूर होने वाले है । उन्होने पचास पहले क्या लिखा था आप भी इसे 50-साल पहले के संदर्भ में देखे--</p><p>"--<span style="color: #2b00fe;"><i>-किताबों की उम्र केवल पचास साल बाक़ी है। उसके बाद किताबों का चलन बन्द हो जाएगा, क्योंकि लोगो के पास ज्ञानवर्धन के वैकल्पिक साधन होंगे।आजकल जो लेखक लिख रहे हैं वो ये सुन कर सन्तुष्ट होंगे कि चलो उनके जीते जी ऐसा नहीं हो रहा। सारा दोष अगली पीढ़ी पर लगेगा, जिनके लिखते लोगों ने पढ़ना बन्द किया ----"</i></span></p><p>यह बात उन्होने तब कही जब उस समय वैकल्पिक साधन ---इन्टरनेट--फ़ेसबुक--ह्वाट्स अप--त्वीटर --अदबी मंच -फ़ेसबुक-- इन्स्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया जैसे प्लेटफ़ार्म नहीं थे --फिर भी उन्होने यह देख लिया। कहते हैं लेखक के जिह्वा पर कभी कभी सरस्वती आ विराजती हैं। हम आप पाठकों के लिए लिखते हैं। वह आगे लिखते है--</p><p>"--<span style="color: #2b00fe;"><i>-साहित्यकारों ने पिछले वर्षों में बड़े बड़े ’एन्टी’ आन्दोलन चलाए --अकहानी--अकविता -अनाटक। मगर आगे पाठक ’अपुस्तक’ का अन्दोलन चलाएगा।किताबों के इनकार का आन्दोलन और वह साहित्यकारों को बड़ा भारी पड़ेगा।-----पाठक की उपेक्षा कर लिखना अलग बात है, मगर पाठक की अनुपस्थितिमें लिखना, खाली हाल में नाटक खेलने के समान भयावह्है। यदि ऐसा हुआ तो हिंदी के लेखक कवियॊ का क्या होगा।-----</i></span></p><p>क्या आप को नहीं लगता कि इस बात में कितनी सच्चाई है।आज कितने मंच खुल गए सोशल मीडिया पर। हर कोई लिख रहा हर कोई छप रहा है हर कोई विभिन्न मंचों से सम्मानित हो रहा है पुरस्कार स्वरूप सर्टीफ़ाई भी हो रहा है मगर उसे हर बार यह स्वयं बताना पड़ता है कि मैं यहाँ --मैं वहां--ये फोटो मेरी देखो--ये सर्टिफ़िकेट मेरा देखॊ--। जोशी जी आगे अपनी व्यथा का विस्तार देते हुए लिखते हैं--</p><p>"-<span style="color: #2b00fe;"><i>-किताबें छपती नहीं, छपती हैं तो बिकती नहीं., बिकती हैं तो पढ़ी नहीं जातीं पढ़ी जाती हैं तो वे पसन्द नहीं की जाती, पसन्द की जाती हैं तो सस्ती और सतही होती है जिन्हें न छापा जाए उसकी बड़ी संख्या है जो उसे पुस्तक ही नहीं मानते हैं।यहाँ लेखक और प्रकाशक पुस्तक नहीं, पुस्तक का भ्रम जीते हैं।पाँच सौ का संस्करण छपने पर पाँच-छह वर्ष में बिकता है, तब लगता है व्यर्थ ही छपा। कोरा कागज होता तो कहीं जल्दी बिक जाता। लेखक लिखने को अभिशप्त है,प्रकाशक छापने को,। केवल पाठक की स्वतन्त्र सत्ता है। वह खरीदने को अभिशप्त नही----।</i></span></p><p>क्या आप को नहीं लगता कि आज से पचास साल पहले कही गई ये सब बातें आज कितनी प्रासंगिक है? क्या आप को नहीं लगता कि अब आत्मावलोकन,विचार विमर्श का समय आ गया है। कुछ भी लिख देना साहित्य नहीं होता। साहित्य के नाम पर मंच पर तमाशा दिखाना ,साहित्य साधना नहीं होती।क्या जाने अनजाने हम इस भीड़ का हिस्सा नहीं बन रहे हैं। जोशी जी ने और भी बहुत से बातें कहीं--सभी का यहाँ उल्लेख करना उचित नहीं ज़रूरत भी नहीं।क्या हिंदी में साहित्य लेखन हाशिया गतिविधि है, फ़ुरसत का धन्धा है?यदि आप साहित्य साधक है , साहित्य प्रेमी साहित्यानुरागी हैं तो इन सब विषयों पर आप भी सोचिए अन्यथा जैसे चल रहा है चलने दीजिए।</p><p>अस्तु</p><p><br /></p><p>-आनन्द पाठक-</p><div><br /></div>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-3147775970165655192023-06-27T11:11:00.002+05:302023-06-27T11:11:13.030+05:30एक व्यंग्य 108/05 : चिड़िया और दाना <p> </p><p><br /></p><p><span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> </span><b>चिड़िया और दाना </b></span></p><p><br /></p><p><span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> </span> माँ बचपन में यह किस्सा सुना सुना कर मुझे सुलाती थी , आज वही किस्सा आप लोगों को </span></p><p>सुना सुना कर जगा रहा हूँ। किस्सा कोताह यूँ कि----]</p><p><br /></p><p>---इन्द्रप्रस्थ प्रदेश में एक चिड़िया रहती थी । उसे कहीं से चने का एक दाना मिला। उस दाने से वह चने का दाल बनाना</p><p>चाहती थी। उससे उसे चक्की [ चाकी ] में डाल कर पीसा मगर न चना ही बाहर आया न दाल ही बाहर आई ।</p><p>उसे लगा कि वह दाना चक्की के ’खूटें" में फँस गया है। अत: उसे निकलवाने के लिए बढ़ई के पास गई ।</p><p>उसने बढ़ई से कहा-</p><p><br /></p><p>" बढ़ई ! बढ़ई ! तू खूँटा चीरा. खूँटवे में दाल बा</p><p>का खाइब ? का पीयब? का ले परदेश जाइब ?</p><p><br /></p><p>[ अर्थात हे बढ़ई ! तू चल कर मेरा खूँटा चीर दे। उस खूंटे में मेरी दाल फँसी है --नहीं तो में क्या "खाऊँगी" क्या "पीउँगी"</p><p>और क्या ले कर परदेश जाउँगी ?</p><p>बढ़ई ने टका सा जवाब दिया--तू अभी जा। मैं अभी 2024 के एजेन्डे में बिजी हूँ--वह मेरा एजेन्डा नहीं है -- तेरा एजेन्डा है</p><p>चिड़िया दुखी मन से बाहर आ गई. और उस बढ़ई की शिकायत करने राजा के पास पहुँच गई।</p><p>उसने राजा से कहा-</p><p><br /></p><p><span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> </span>राजा राजा तू बढ़ई डाँटा ,</span></p><p><span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> </span> बढ़ई नू खूँटा चीरे. खूँटवे में दाल बा</span></p><p><span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> </span>का खाइब ? का पीयब? का ले परदेश जाइब ?</span></p><p>[अर्थात------]</p><p>राजा ने कहा-- तू अभी जा। हम अभी किसी और एजेन्डे में बिजी हैं। वह मेरा एजेन्डा नहीं-- तेरा एजेन्डा है। जब तेरा एजेन्डा</p><p>’राज दरबार ’ ’राजसभा’ में आएगा तब देखेंगे----</p><p><br /></p><p>चिड़िया दुखी मन से सड़क पर आ गई और चिल्लाने लगी--</p><p>" सब मिले हुए हैं जी , सब मिले हुए है । अन्दर से सब मिले हुए हैं ।सब मेरी दाल चुराना चाहते है-- मेरी दाल निकलेगी नहीं तो बनेगी कैसे? दाल गलेगी कैसे?</p><p>--- --- -- </p><p><br /></p><p>किस्सा खतम -पैसा हजम।</p><p>सन्दर्भ ? जो समझ लें</p><p><br /></p><p>-आनन्द.पाठक-</p><div><br /></div>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-67631361789484932622023-02-27T04:54:00.008+05:302023-03-19T19:43:29.709+05:30एक व्यंग्य 107/04 : सर्टिफिकेट की रेवड़ी<p> <span style="background-color: white; color: #050505; font-family: inherit; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">एक व्यंग्य व्यथा : सर्टिफ़िकेट की रेवड़ी</span></p><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">’फेसबुक’ और ’ह्वाट्सअप’ के प्रादुर्भाव से एक फ़ायदा जरूर हुआ। लोगों की शिकायते दूर हो गईं कि हिंदी में उच्च लेखन कार्य नही हो रहा है। पाठक नही मिल रहे हैं। अब तो न लेखको की कमी है न पाठको की, न वाह वाह करने वालों की। न कवियों की न श्रोताओं की, न शायरों की न शायरा की । अब हर शख़्स यहाँ शायर हो गया कवि हो गया।--एक ढूंढों हज़ार मिलते हैं। जिनको नहीं दिखते उनको ये लोग आंख में उँगली डाल डाल कर दिखा देते हैं अरें भाई देखो मैं इधर हूँ ,इस <span style="font-family: inherit;"><a style="color: #385898; cursor: pointer; font-family: inherit;" tabindex="-1"></a></span>पत्रिका में छपा हूँ, इस मंच पर काव्यपाठ कर रहा हूँ--उस मंच पर काव्यपाठ करने जा रहा हूँ। आइएगा ज़रूर। इस मंच से सम्मानित हुआ ,उस मंच से ’सर्टिफ़िकेट मिला। सूरज उग रहा है. आप को दिख नहीं रहा है तो मैं क्या करूँ ? मैं यहाँ हूँ।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;"> आ0 गोपाल प्रसाद व्यास जी [एक कवि] ने एक बार कहा था--</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><b>कविता करना है खेल सखे!</b></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><b>जो चाहे इसमे चढ़ जाए , यह बे टी0टी0 की रेल सखे</b></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><b>कविता करना है खेल सखे !</b></div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;"> -हाय कितने दूरदर्शी थे-दद्दा।</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"> अब तो कविता क्या --फेसबुक और ह्वाट्सअप -पर ग्रुप बनाना समूह बनाना -- मंच बनाना --कितना आसान हो गया है खेल हो गया है। जो चाहे सो बना ले।जब चाहें तब बना लें। -अदब-ग़ज़ल--सुखन--कविता--गीत -के आगे पीछे कुछ एक दो शब्द ही तो लगाना है- राष्ट्रीय -अन्तरराष्ट्रीय-वैश्विक--कुछ भी -लगा देंगे।मंच तैयार। सदस्यों का क्या । जहाँ खोमचा लगा लेंगे--दो-चार-दस-बीस ग्राहक तो मिल ही जाएंगे।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">-" कुछ करते क्यों नहीं ?--मिश्रा जी ने आते ही आते उचारा। </div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">जो पाठकगण, मिश्रा जी के बारे में नहीं जानते हैं उन्हे संक्षेप में बता दूँ। वह मेरे साहित्यिक मित्र हैं जो मेरे हर व्यंग्य कथा में आ जाते हैं जैसे के0पी0 सक्सेना जी की कथा में एक "मिर्जा" साहब आ जाया करते थे। मिश्रा जी मेरे लिए ’संकट सूचक’ भी होते है और "संकट मोचक" भी। कभी वह मेरे लिए संकट ले कर आते हैं कभी संकट मोच के आते है । इस बार ख़ुदा जाने क्या ले कर आए हैं।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">-कुछ करते क्यों नहीं ?--पुन: दुहराया</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">’क्या करूँ जी ? मैने भी केजरीवाल जी की शैली में बड़े भोलेपन से पूछा।</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">अरे मुफ़्त की रेवड़ी -सर्टिफ़िकेट की रेवड़ी- बँट रही है -कुछ बटोरते क्यों नहीं। तुम तो पैदाइशी ’मुफ़्तखोर’ हो।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;"> सोचा, बात तो सही कह रहा है बन्दा । ’बाथरूम’ में ही अपनी ग़ज़लें गाता रहूंगा तो ’ग़ालिब’कब बनूंगा? सर्टिफ़िकेट कब बटोरूँगा? दुनिया मुझे शायर कब मानेगी? बिना सर्टिफ़िकेट के कौड़ी के तीन ही रह जाएंगे। जल बिन मीन हो जाएँगे लोग आगे निकल जाएँगे मैं क़लम ही घिसता रह जाऊँगा । हे मूढ़मते आनन्द! --जल्द कुछ अपने लिए सर्टिफ़िकेट-काव्य शिरोमणि-ग़ज़ल श्री-कविता गौरव-दोहा-पहलवान की व्यवस्था कर। शुभस्य शीघ्रम।अन्यथा इस असार संसार से बिना एक अदद 'सर्टिफिकेट' लिए ही 'टें' बोल जाएगा।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;"> आत्मा की पुकार पर एक साहित्यिक मंच के कार्यालय में घुस गया ।रजिस्टर्ड मंच था --देखा 4-आदमी कुर्सी लगा कर बैठे थे ।अध्यक्ष -सचिव-संयोजक- एडमिन रहे होंगे। समवेत स्वर में स्वागत हुआ--आइए आइए पाठक जी स्वागत है । कुछ नया लिखा है तो सुनाइए कान तरस गए आप से कुछ नया सुनने को। सदियाँ बीत गईं।</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">मैने श्रद्धा से सर झुका लिया --हाँ हाँ ज़रूर ज़रूर । यहाँ आते आते रिक्शे पर ही एक नया शे’र हुआ -इंशा अल्ला यहाँ बैठे बैठे पूरी ग़जल भी हो जाएगी-सुनें ।</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">-इरशाद--इरशाद-- --</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">ज़रूरत थी, ज़रूरत है, ज़रूरत होगी--</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">वाह वाह ! वाह वाह -ऎडमिन साहब कुर्सी से उछल पड़े --क्या मिसरा है --सामयिक है। नए रंग का मिसरा है हर शख़्स को ज़रूरत है --रोटी कपड़ा मकान की</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">पाठक जी अब रुला ही देंगे क्या !</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">सचिव जी ने एक लम्बी आह भरी --सही कह रहे हैं पाठक जी , </div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">ज़रूरत है ज़रूरत है-जरूऽरत है--श्रीमती की , कलावती की --सेवा करे जो--किशोर कुमार ने भी गाया है-</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">-'इसीलिए कहता हूँ कि आप तो कम से कम शादी कर लीजिए--मेरा क्या-' अध्यक्ष महोदय ने उससे भी एक लम्बी और ठंडी आह भरी ।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">परम्परानुसार मैने मिसरा दुहराया--"ज़रूरत थी ज़रूरत है ज़रूरत होगी-"-</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">वाह !क्या मिसरा कहा है। तीनो काल भूत--वर्तमान--भविष्य को एक ही मिसरा में समेट दिया--गागर में सागर भर दिया ।वैसे ये कौन सी बह्र है बाई द वे? -अध्यक्ष महोदय ने जानना चाहा। </div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">अरे सर बह्र को मारिए गोली। तेल देखिए तेल की धार देखिए। आम खाने से मतलब है कि पेड़ गिनने से। बहर- वहर फ़ालतू लोगों के चोंचले हैं। अपुन तो भाव देखते हैं भाव की गूढ़ता देखते हैं-वाह वाह। मिसरा सानी पढ़िए पाठक जी! मिसरा सानी</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">मैने दूसरा मिसरा सुनाया--"एक अदद ’सर्टिफिकेट; की चाहत होगी" </div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">वाह वाह वाह वाह क्या मिसरा सानी लगाया - वाह क्या क़ाफ़िया मिलाया --ज़रूरत का क़ाफ़िया --चाहत !नया क़ाफिया है वाह ।क्या साफ़गोई है --अब ऐसे साफ़ साफ़ बोलने वाले शायर मिलते कहाँ है -संयोजक महोदय ने मिसरा का भाव बताया-यानी</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><b>ज़रूरत थी ज़रूरत है ज़रूरत होगी--</b></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><b>एक अदद ’सर्टिफिकेट; की चाहत होगी</b></div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">----सचिव जी! ज़रा ड्राअर के कोने कतरे देखना कोई सर्टीफिकेट-वर्टिफिकेट बचा है क्या ? अध्यक्ष जी ने पूछा</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">सचिव जी ने देखा। - सर एक सर्टिफिकेट बचा है--इस माह के श्रेष्ठ ग़ज़लकार -वाला।</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">-ठीक है। वही दे दो।</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"> उन्होने जल्दी जल्दी नाम भरा हुआ सर्टिफिकेट मुझे सौंप दिया ? मैं गदगद हो हृदय तल से आभार प्रगट किया।</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">- सर मेरा नाम इस पर पहले से?-मैने आश्चर्य से पूछा।</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">हाँ हाँ मुझे मालूम था -एडवान्स में लिख कर रखा होगा-अध्यक्ष महोदय ने हंसते हुए कहा-</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;"> <b>इक दिन तुम ज़रूर इधर आओगे</b></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><b>मयख़ाने से बच कर कहाँ जाओगे</b></div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">---- मैं ’रेवड़ी’ ले कर बाहर निकल ही रहा था कि अध्यक्ष महोदय ने पीछे से आवाज लगाई</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">-- अरे पाठक जी ! सूखे सूखे !- हें हें हें -- देखिए "दान-पेटी' कुछ उदास दिख रही है । पेटी के भी " पेट" होते हैं--</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><b>दान पेटिका उदास है</b></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><b>आप से कुछ आस है</b></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><b>कुछ विमोचन कर दें</b></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><b>आप के जो पास है</b></div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">आप तो जानते ही हैं कि ग्लासी पेपर , उस पर डिजाइन बनवाने का खरचा, फिर उसका कलर ”जीराक्स’ आजकल सब कुछ कितना मँहगा हो गया --चलिए आप से नाम लिखने का कुछ नही लेते--मगर--</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">मैने जल्दी जल्दी दान पात्र में 'गुप्त दान' किया और चला आया -गुप्तदान महादान ।. न दुनिया को पता न पाठकगण को कि मैने कितना डाला।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><b>ले कर 'रेवड़ी' घर को धाए।</b></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><b>दुनिया को हम नज़र तो आए--</b></div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">जब तक आप लोग कुछ हिंदी साहित्य की दशा-दिशा सोचें - इस सर्टिफिकेट को ज़रा "टैग’ कर के आता हूँ --कि ले अब तू देख। </div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">अस्तु</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">-आनन्द.पाठक-</div></div><div><br /></div>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-16578818525543380952023-02-07T19:27:00.004+05:302023-02-27T23:04:03.832+05:30एक व्यंग्य 106/03: वैलन्टाइन डे-लगा लेना जरा हेलमेट<p> एक व्यंग्य : वैलेन्टाइन डे (2023)-लगा लेना ज़रा हेलमेट</p><p><br /></p><p><span style="white-space: pre;"> </span>वैलेन्टाइन डे फिर आ गया । आता है , हर साल आता है । जब आना चाहिए था तब नही आया - जब मैं जवान हुआ करता था। प्रेम क्या है जब समझता था, अब समझने की जरूरत खत्म हो गई।शादी हो गई।</p><p>उन दिनों वेलेन्टाइन डे नही आया करता था बल्कि किताबों में फूल और कापियों में चिठ्ठियाँ आया जाया करती थी। सात जनम की कसमें खायी जाती थी। फ़ेसबुक ह्वाट्स अप इमेल के ज़माने में वह अब सब कहाँ । अब तो ’जीवन प्रमाण-पत्र" की तरह अपने प्रेम प्रमाण पत्र का भी नवीनीकरण कराना पड़ता है साल दर साल। साल में एक दिन --भाई देख मेरा प्रेम ज़िंदा है । 7- जनम क्यों? हर साल ही- प्रमाण पत्र ले ले -वेलन्टाइन के दिन।</p><p>ऐसे ही एक बार श्रीमती जी [अपनी ] को प्रमाण पत्र जमा कर रहा था --भाग्यवान देख सात जनम तक मेरा तेरा--।अभी वाक्य पूरा भी नही हुआ था कि बोल उठी--रहने दे रहने दे-- सातवाँ जनम यही है -- खोज ले अगले जनम की कोई दूसरी 'गाय' ।</p><p> आगे की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए हा हा--ही ही--हो हो - करते हुए धीरे से निकल लिया ।</p><p>पिछले महीने माँ सरस्वती की पूजा करने के बाद अब फ़ुरसत मिली । ज्ञान की अधिष्ठात्री देवि --की पूजन तिथि अंगरेजी महीने के हिसाब से आगे पीछे आती रहती है । मगर वेलेन्टाइन डे -प्रेम दिवस- का -डे फिक्स-14 फ़रवरी। यही कारण है कि कुछ लोगो को ज्ञान देर-सबेर आगे पीछे आता है जब की प्रेम सही समय पर आता है , यदि आप के पास कोई वेलेन्टाइन हो तो । यह परम पवित्र त्योहार आता भी ऐसे समय है --जब मौसम बसंती होता है , रंग बसंती होता है । खेतों में हरियाली होती है धरती धानी रंग की चूनर ओढ़े रहती है--बहार का मौसम आने को होता है ,होली की तैयारी होती है। हवाओं में खुशबू घुलने लगती है ।बदन कसमसाने लगता है। अब वैलेन्टाइन डे -ऐसे मौसम में नहीं आयेगा तो क्या जेठ की तपती दुपहरिया में आयेगा।</p><p>प्रेम अब ”दर्शन’ की चीज़ नहीं --प्रदर्शन की चीज़ हो गई। तेरे कितने ब्वाय फ्रेंड ?--मेरी इतनी गर्ल फ़्रेंड।तू कहाँ कहाँ घूमी ? मैं यहाँ यहाँ घूमा। अब सात जनम की बात कहाँ। अब तो 7- महीने -7 दिन की बात रह गई। बात -आप आप से शुरु होती है फिर तुम-तुम तक आती है और "तू-तड़ाक’ पर आकर खत्म हो जाती है।</p><p> इधर नवजवान लड़के लड़कियाँ ,महीनों पहले तैयारी में लग जाते हैं ,उधर पुलिसवाले और धर्म के ठेकेदार अपनी तैयारी में। इधर 'प्रेम' को बचाना है उधर ’ हिन्दू संस्कृति" को बचाना है -’अपसंस्कृति नही चलेगी। " न हारा है इश्क़, न दुनिया थकी है" ख़ुमार बाराबंकी साहब वाली स्थिति हो जाती है।</p><p>नौजवान तो नौजवान ,सुना है कि आजकल अब ’अंकल लोग" भी इस रोग से पीड़ित हो रहे हैं ।मैं भी।प्रेम एक रोग जो ठहरा। </p><p><span style="white-space: pre;"> </span>और शायर ? शायर कॊ कभी वेलनटाइन डे मनाते नहीं देखा । मनाएगा क्या। असल और सच्चा शायर होगा तो जेब से खाली होगा। नंगा नहाए क्या, निचोड़ेगा क्या। खाली जेब वाले शायर कॊ कौन वेलेन्टाइन पूछती है ।डरती होंगी मुआ--गिफ़्ट तो देगा नहीं --आसमान से चाँद तारे तोड़ के लाने की बात और करेगा। जान खाएगा ऊपर से। </p><p>मगर शायर ? वह तो अपने वलेन्टाइन को अदाऒं से नज़ाकत से लताफ़त से शायरी सुना सुना कर वैलेन्टाइन डे मनाता होगा ।सोचा इस साल हम ही मनाते है - अगरचे--</p><p>मैं शायर तो नहीं ..मगर ऐ हसीं जब से देखा तुझको ,मुझको शायरी ----। </p><p> मेरे अन्दर शायरी वाला कीड़ा कुलबुलाता ज़रूर है। कभी कभी तो ऐसा कुलबुलाने लगता है कि बिन पिये ही मैं अपने आप को ग़ालिब समझने लगता हूँ । समझते तो सभी है मगर कहते नही है।</p><p>एक पुरानी वेलन्टाइन को धो-पोंछ कर ढूँढ निकाली, एक वार्मअप (warm up) शे'र सुनाया--</p><p>न रखने हाथ देती हो, झिड़क देती हो तुम हँस कर </p><p>जवानी और चढ़ जाती, मेरी गुल्लो, मेरी शबनम !</p><p>मैने कहा -चलो दिलदार चलें-चाँद के पार चलें --यह जालिम ज़माना इस पार्क में वेलेन्टाइन डे मनाने देगा नहीं।</p><p>अब मतला सुनाया</p><p>इधर दिखती नहीं अब तुम, किधर रहती हो तुम जानम !</p><p>चलो मिल कर मनाते हैं ’ वेलनटाइन’ मेरी छम्मम</p><p><span style="white-space: pre;"></span>- हाय ! मुझे क्या मालूम कि वह भी एक शायरा निकली। नहले शे’र पर दहला शे’र लगाया कि मेरा दिल दहला जो उसने सुनाया</p><p>दिया जो हार पिछली बार पीतल का बना निकला</p><p>दिला दो 'हार' हीरे का नहीं दस लाख से हो कम</p><p>खड़े हैं प्यार के दुश्मन लगा लेना ज़रा ’हेलमेट’</p><p>मरम्मत कर न दें सर का "पुलिसवाले" मेरे रुस्तम ! </p><p><span style="white-space: pre;"> </span>अब एक शायर की इज्जत का सवाल था। जमात का सवाल था -शे'र पर शे'र उठाना था।</p><p>-फिर एक शे’र पढ़ा।</p><p>ज़माने का नहीं है डर, करेगा क्या पुलिसवाला</p><p>अगर तुम पास मेरे हो नहीं दुनिया का है फिर ग़म</p><p><span style="white-space: pre;"></span> वह कहाँ मानने वाली थी । किसी जमाने में कौवाली मुक़ाबला होता था अब तो यहा शेर (शेरनी) से मुक़ाबला हो रहा है। इससे अच्छा तो मुकाबला चाय की थड़ी पर हो जाता है जब दो तथाकथित शायर मिलते हैं</p><p>बता देती हूँ मैं पहले , नहीं जाना तुम्हारे संग</p><p>कि बस ’फ़ुचका’ खिला कर ही मना लेते हो तुम मौसम</p><p>बात अब ’आप” से ’तु’म’ पर आ गई । तू तड़ाक तक इतनी जल्दी आ जायेगी सोचा नही था। सुबह होने से पहले शाम आ गई</p><p>उसने अगला शे’र पढ़ा-</p><p>इधर क्या सोच कर आया कि है यह खेल बच्चों का</p><p>अरे ! चल हट निकल टकले , नहीं ’पाकिट’ में तेरे दम</p><p>-देख दम की बात न कर कहे देता हूँ। मेरा दम अभी देखा नहीं है तूने -हाँ- मैने जोर से बोला</p><p><span style="white-space: pre;"> </span>बात ’सैंडिल’ और सैंडिल के दम तक न पहुँच जाए जल्दी जल्दी मकता पढ़ा और सरक लिया</p><p>घुमाऊँगा , खिलाऊँगा, सलीमा भी दिखाऊँगा, </p><p>सनम ’आनन’ का है वादा , चली आ ओ मेरी हमदम !</p><p>जान बची तो लाखों पाए--</p><p> उड़ा वहाँ से तो सीधे -"गौशाला"- मे गिरा।</p><p>सुना कि कुछ लोग valentine day की जगह इस वर्ष Cow hug Day यानी "गाय गले मिलन दिवस" मना रहे है</p><p>सोचा, श्रीमती जी को ही गले लगा कर वेलन्टाइन डे मना लूँ -बहुत दिन हो गए उन्हें Hug [हिंदी में लिखना ज़रा ठीक नहीं लगा] किए हुए ।शादी के समय श्वसुर जी ने कहा भी था-- मेरी बेटी बिलकुल गऊ है गऊ- गाय है गाय।</p><p>( मगर वह यह बताना भूल गए कि वह सींग भी मारती है)</p><p>[ नोट - कथा-सार यह कि</p><p>किसी "तथाकथित शायर" को किसी "तथाकथित शायरा" के साथ यूँ सरेआम वेलेन्टाइन डे नहीं मनाना चाहिए )</p><p>अस्तु</p><p>-आनन्द पाठक-</p><p><br /></p><p><br /></p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-58630159131330610802022-09-10T10:51:00.003+05:302023-02-28T02:50:12.582+05:30एक व्यंग्य 105/02 : टैग करने वालों से<p><b> एक व्यंग्य : ---’टैग वालों से’</b></p><p><br></p><p><span style="white-space: pre;"> </span>रेडियो पर गाना बज रहा है। झूठ। आइपैड, आइपोड के ज़माने में रेडियॊ।</p><p>अच्छा, तो मोबाइल पर गाना बज रहा है--</p><p><b><i>"अल्लाह बचाए नौज़वानो से ,</i></b></p><p><b><i>-- --- ---</i></b></p><p><b><i> तौबा है ऐसे इन्सानों से ,</i></b></p><p><b><i> अल्लाह बचाए----"</i></b></p><p><b><i><br></i></b></p><p><b><i>और इधर मैं गा रहा था--</i></b></p><p><b><i><br></i></b></p><p><b><i>बाते हैं मीठी मीठी , रचना है फीकी फीकी।</i></b></p><p><b><i>कहता हूँ मै सीधे सीधे, कविताएँ उल्टी-पुल्टी </i></b></p><p><b><i>अल्लाह बचाए ’टैग वालों ’ से । अल्लाह !</i></b></p><p><b><i>अल्लाह बचाए---</i></b></p><p><br></p><p>गाना जो भी हो, दर्द एक -सा है। फ़र्क इतना है कि वो गा रही हैं मैं गा रहा हूँ। वह मनचले नौज़वानो से परेशान है ।मैं ज्ञानी टैग वालों से ।</p><p><span style="white-space: pre;"> </span>"टैग करना" क्या होता है? "शो-रूम" पीढ़ी वाले फ़ेसबुकिया नौज़वान अच्छी तरह जानते होंगे ,</p><p>और जो "म्यूजियम मैटिरल" वाले लोग है,[जैसे मैं ], तो उन्हे स्पष्ट कर दूँ कि यह एक मानसिक बीमारी हैजिसमे आप अपनी रचना को श्रेष्ठ मानते है और- मान न मान मैं तेरा मेहमान- वाली शैली में।-अपने फ़ेसबुकिया मित्रों के ’वाल ’ पर चेंप देते हैं।। यह एक घातक बीमारी तो नहीं, पातक बीमारी ज़रूर है ।इस बीमारी मेंआदमी ’विक्षिप्त’ भी हो सकता है। तब उसे होश नहीं रहता कि वो किसी के गाल पर "टैग’कर रहा है कि किसी के सर पर ’टैप’ कर रहा है। </p><p> इस बीमारी में हर वक़्त फ़ेसबुक चेक करते रहना अच्छा लगता है। कितने लाइक आए--कितने कमेन्ट मिले --कितने वाह वाह हुए। कितनो ने मुझे ख़िताब दिया। रात में सोते हुए भी अपनी रचना का ’लाइक’ गिनता है और कमेन्ट पढ़ता है, आह्लादित होता है।</p><p>चिकित्सा शास्त्र में इसे ’ फ़ेसबुखेरिया" कहते हैं--मलेरिया --फ़ाइलेरिया --लभेरिया-- की तर्ज़ पर। </p><p>। यह अपने अनुभव से कह रहा हूँ-फ़ेस बुखेरिया-का अनुभव। इस रोग में ’भूख’ नही लगती ।</p><p>-कल एक सज्जन फ़ेसबुक पर विलाप करते हुए मिल गए। उनके कई मित्र है जो उनके ’वाल’ पर। हर रोज़ 2-4-10 रचनाएँ टैग कर देते हैं। कचरा फ़ैला देते है। और भाई साहब हैं कि रोज़ सुबह सुबह झाड़ू लेकर अपना ’वाल साफ़’ करते हैंऔर मनोच्चरित गाली भी देते हैं, उन टैग वालो को जो यहाँ उल्लेख करने योग्य भी नहीं। मैने सलाह दिया कि भाई साहब! उन सबको "ब्लाक’ क्यों नहीं कर देते। { पाठको को मैं ज़रा स्पष्ट कर दूँ कि कुछ महिला-कवयित्रियों ने मुझे ब्लाक कर रखा है ,मगर वह "टैग" के कारण नहीं।]<br></p><p>भाई साहब कहने लगे- पाठक जी! शरीफ़ आदमी हूँ ,शराफ़त में मारा जाता हूँ। अगर उनकी तो नहीं है अपनी तो है । </p><p>फ़ेसबुक पर हर दूसरा आदमी -कवि है .लेखक है, ग़ज़लकार है,साहित्यकार है, साहित्य का एक्सपर्ट है।वह बस लिखता रहता है निरन्तर, परन्तु पढ़ता नहीं । न अपना न दूसरों का ।<br></p><p> मैं भी ऐसे 2-4 ’टैग वालों ’से पीड़ित हूँ। कई बार मना किया, हाथ जोड़ा, माफ़ी माँगी ,करबद्ध प्रार्थना की। आप के चरण किधर हैं, प्रभु-भी कई बार पूछा। मगर वह कहाँ माने।</p><p> <b>वो कब बाज़ है मुझे ’टैग’ कर के</b></p><p><b> हमी थक गए है हटाते-मिटाते</b></p><p> कई बार कहा-भाई साहब माना कि आप , वरिष्ठ कवि है, गरिष्ठ कवि है, शिष्ट कवि हैं. राष्ट्रीय कवि हैअन्तर्राष्ट्रीय कवि है, अन्तरराष्ट्रीय कवि है, इस सदी के महान कवि हैं ,प्रथम कवि है, अन्तिम कवि हैं,हिंदी साहित्य के चाँद हैं सूरज हैं, मगर मेरी आँख में उँगली डाल डाल कर यह सब क्यूँ बता रहे हैं?जब सूरज आसमान पर चढ़ेगा तो देख लेंगे।</p><p>वो कहते हैं --भाई साहब! हम लोगों का मकसद इतना होता है कि आप देखे--मैं बड़ा हुआ तो कितना -- और आप रह गए ठिगना तो कितना।<br></p><p>मैं कहाँ से कहाँ चला आया और तुम ? मैं कितना सनद प्रमाण पत्र बटॊर लाया, और तुम? मैं कितना नारियल फ़ोड़ आया और तू[ अब वह तुम से तू पर आ गए-इब बड़े कवि हो गए ] मैं कितना साल ओढ़ आया और तू ?मैं कितना मुशायरा लूट आया और तू।</p><p> यह देख मेरी फोटो-"दद्दू" के साथ और तू । यह देख मेरी प्रोफ़ाइल --यह ’बुक’ मेरा देखो-- ये सूट मेरा देखो--ये बूट मेरा देखो --मैं हूँ शायर लंदन का।</p><p>खैर वह इन्ही सब में मगन है। हिंदी की सेवा कर रहे हैं । हिंदी कृतार्थ हो रही है । हम आप कौन होते है उन्हें टोकने वाले।<br></p><p><b>कविता कर के वह खुद न लसे</b></p><p><b>कविता लसी पा यह ’टैग ’ कला</b></p><p>टैग करने वालों की हालत तो यह है कि --<br></p><p><b>कल जिसे अपनी कविता सुना कर आया था</b><br></p><p><b>उसी के टैग का पत्थर मेरी तलाश में है ।</b></p><p>[ नूर जी से क्षमा याचना सहित]<br></p><p>लोग टैग इसलिए करते हैं कि हमे पता चलता रहे कि ’फ़ेसबुक ’पर आजकल हिंदी का दशा-दिशा क्या चल रही है।<br></p><p>[ नोट ; चलते चलते अपने "टैग करने वाले नौज़वान भाइयॊ से-क्षमा याचना सहित -मजरूह सुल्तानपुरी साहब का शे’र है <br></p><p><br></p><p><span style="white-space: pre;"> </span><b>जफ़ा के ज़िक्र पर तुम क्यों सँभल कर बैठ गए</b></p><p><b><span style="white-space: pre;"> </span>तुम्हारी बात नहीं, बात है ज़माने की ।</b></p><p>वैसे -जफ़ा करने और टैग करने में कोई फ़र्क नहीं --भाव बरोबर है ]<br></p><p><span style="white-space: pre;"> </span></p><p>अच्छा । आज इतना ही। चलते हैं । अभी यह लेख "टैग’ करने जाना है ।<br></p><p>सादर</p><p>-आनन्द.पाठक-</p><p><br></p><p><br></p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-33872283082590094992022-07-10T10:37:00.007+05:302023-06-02T18:31:56.222+05:30एक व्यंग्य 104/01: तमाशा जारी है<iframe src="https://drive.google.com/file/d/1dB6uxOhlc74_sGwXUsKjO-q4cNkFwKtH/preview?usp=drive_link" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-16598700550251621792022-07-05T09:51:00.004+05:302022-07-05T09:55:41.321+05:30 एक व्यंग्य 106: एक भाषण मेरा भी<iframe src="https://drive.google.com/file/d/1reTTy7obhWEOO-1GoGeNsCkmxbCcRZAo/preview" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-83906966957636619932022-07-05T09:50:00.005+05:302022-07-05T09:54:00.889+05:30एक व्यंग्य 105: वह और उसका जुलूस<iframe src="https://drive.google.com/file/d/1Vj3HdyTxUEDVUl7hY6spa3qi2L3PjvKs/preview" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-72962805490680717822022-07-04T12:22:00.008+05:302022-07-05T09:24:09.376+05:30एक व्यंग्य 103 : रघ्घू हटाओ देश बचाओ<iframe src="https://drive.google.com/file/d/1d84PFSRKyfcyDXqjBDMlmzIw4wwbdhBX/preview" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-71873131499516413672022-07-04T12:21:00.007+05:302022-07-05T09:22:28.981+05:30एक व्यंग्य 102: एम0जी0 रोड [ महात्मा गाँधी रोड]<iframe src="https://drive.google.com/file/d/1P66fSWTf8cd93mEtVXn_PfNHQaW52WrO/preview" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-87479472868589407992022-07-03T19:35:00.003+05:302022-07-04T12:00:12.402+05:30एक व्यंग्य 101 : पद यात्रा की राजनीति<iframe src="https://drive.google.com/file/d/18BbIxH9u0srzSJ0jl-QKWS0MMlbE5wTN/preview" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-10895008875656920022022-07-03T19:34:00.008+05:302022-07-04T11:58:12.829+05:30एक व्यंग्य 100: गुबार देखते रहे<iframe src="https://drive.google.com/file/d/15fei4yTWCloQ_z_n7PxyLQ9hccxDGgOp/preview" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-36724761637394975642022-07-03T19:34:00.007+05:302022-07-04T11:56:07.362+05:30एक व्यंग्य 99: दिव्य ग्यान<iframe src="https://drive.google.com/file/d/1bFf37TxtSJe4RXZsyCFQjyd_vzRYc9n8/preview" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-86101772102703395192022-07-03T19:33:00.003+05:302022-07-04T11:53:50.818+05:30एक व्यंग्य 98: वितरण चुनाव टिकट का<iframe src="https://drive.google.com/file/d/1uqdELr8PhFS-FWbvre0AC6ss-f_2U5pX/preview" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-71084911349797875212022-07-03T19:32:00.007+05:302022-07-05T10:58:02.365+05:30एक व्यंग्य 97 : गुरु दक्षिणा<iframe src="https://drive.google.com/file/d/1pHZ85S-xUSlRmWNxEuEVaKAnLbLgHJeI/preview" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-38221976134705491772022-07-03T18:51:00.001+05:302022-07-03T18:59:57.597+05:30एक व्यंग्य 96: विग्यापनी शादी<iframe src="https://drive.google.com/file/d/1vSyfpehD8CCxk6HwAu53_AE3xSmHgX86/preview" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-62702414079073550222022-07-03T18:49:00.007+05:302022-07-03T18:58:42.007+05:30एक व्यंग्य 95 : प्रधानमंत्री और जन्मदिन<iframe src="https://drive.google.com/file/d/1W8jeU9QcQfZjW2snF0hM1SGZ1D56u52A/preview" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-40700035932842340142022-07-03T18:48:00.005+05:302022-07-03T18:57:16.260+05:30 एक व्यंग्य 94: श्रीमती जी की काव्य चेतना<iframe src="https://drive.google.com/file/d/13Ps7YHi-Hyo_MCwctmTzAy92xa5Nqugh/preview" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-89089930874427660702022-07-03T18:47:00.010+05:302022-07-03T18:55:33.600+05:30एक व्यंग्य 92: सावित्री लौट आई<iframe src="https://drive.google.com/file/d/1CN5zVQoshnm2UKCUQvEVC2ob8bR1Cb3j/preview" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-2837754841559205342022-07-03T18:47:00.008+05:302022-07-03T18:47:45.776+05:30एक व्यंग्य 93: अपना अपना शौक़आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-46341058552274301412022-07-03T18:46:00.004+05:302022-07-03T18:53:42.200+05:30एक व्यंग्य 91: कटोरा बुधना का<iframe src="https://drive.google.com/file/d/1XobA7XN04qy_m9bNpGWz6fFRo65bpc8H/preview" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-1858632721466429572022-07-03T10:32:00.004+05:302022-07-03T10:39:08.052+05:30एक व्यंग्य 90: सबको अपनी अपनी पड़ी है<iframe src="https://drive.google.com/file/d/1Th8iA59fgLcn3FYf9ALrOQE6rYDRtBAW/preview" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-61933708778302770712022-07-03T10:31:00.005+05:302022-07-03T10:36:55.792+05:30एक व्यंग्य 89 : जापान की चाहत<iframe src="https://drive.google.com/file/d/10d7szewEF2hlBQOTabSWpwFt4mWb3GcD/preview" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6443962733140280366.post-34172066110873551232022-07-03T10:30:00.007+05:302022-07-03T10:33:52.507+05:30एक व्यंग्य 88 : सुदामा की खाट<iframe src="https://drive.google.com/file/d/1tkvRXthP8n9r1Wd8ixv_s3FWuDsW3McT/preview" width="540" height="480" allow="autoplay"></iframe>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0