शनिवार, 6 जुलाई 2013

व्यंग्य 19 : एक कहावत : भैस के आगे बीन बजाना......

एक कहावत : भैस के आगे बीन बजाना......

हिन्दी में एक कहावत है -"भैस के आगे बीन बजा--भैस खड़ी पगुराय

बहुत प्रचलित कहावत है..सभी परिचित होंगे। इस मुहावरे के कई वर्ज़न मिलते है..लोकोत्तियों और मुहावरों की किताबों में मगर भाव बोध एक ही होता है ।कुछ वर्ज़न यहाँ लगा रहा हूँ [और तरह से भी क्षेत्रानुसार प्रयोग होता होगा- अमेरिका में मालूम नहीं]


1) "भैंस के आगे बीन बजाये, भैंस लगी पगुराय"

2) "भैंस के आगे बीन बजाये, भैंस खड़ी पगुराय"

3) "भैंस के आगे बीन बजाये, भैंस बैठ पगुराय"

4) "भैंस के आगे बीन बजाये, भैंस रही पगुराय"

अब इसमें मानक ’वर्ज़न’ कौन है? अगर चारो सही है तो ज़्यादा ’सही’ कौन सा है?

जिस महापुरूष में इसकी रचना की होगी -उन्होंने "भैंस’ हो क्यों चुना..’पगुराती’ तो गाय भी है ,,’पगुराता’ तो ऊँट भी है ’बैल भी है..साँड़ भी है । कुछ ’विद्वान’ भी पगुराते हैं जो एक ही बात को फेंटते रहते है और ’मुख-सुख’ करते रहते हैं और मैं ’विद्वान’ नहीं हूं

ऊपर के चारो विकल्प में से सही स्थिति कौन सी हो सकती है? अगर आप की दृष्टि में चारो सही है तो आप ’कौन बनेगा करोड़पति’- ईकविता के प्रथम विजेता होंगे

’पगुराना’-एक आत्मसन्तोष आत्ममुग्ध ,आस-पास के वातावरण से निस्पॄह अवस्था में स्वयं में तल्लीन मुद्रा मे मुख सुख की क्रिया है जिसमे वो इतना तल्लीन रहता है कि फिर उसे ’बीन’ बजे या या बिस्मिल्ला खान की शहनाई ..कोई आनंद नहीं ।और यह आनन्द क्रिया का भोग ज़्यादे देर तक ’खड़े’ होकर नहीं किया जा सकता.कुछ देर बात थकन की स्थिति बन सकती है

अगर ’लगी पगुराय’ पकड़ते हैं तो भी बात बनती नज़र नहीं आ रही है। मतलब कि ’बीन बज़ने के बाद’ भैस’ ने कुछ समझने की कोशिश की .समझ में नहीं आया तो फिर ’पगुराने लगी"

अगर ’बैठ पगुराय’ पकड़ते है तो बात कुछ कुछ बनती नज़र आ रही है ..आराम से अपने आप में खोये-खोये /अपने आप में लीन

रहने की स्थिति बन रही है गोया ऐसे में ’बीन बजाने या सुनने का क्या फ़ायदा? जिस बीन पर साँप जैसा प्राणी भी नाचने लगता है..’भैस को कोई फ़र्क नहीं पड़ता? पढ़ने में भी [काला अक्षर भैस बराबर] और सुनने में भी [भैस के आगे बीन बजाय..] फिर भी लोग ऐसे जानवर के लिए लठ्ठम-लठ्ठा क्यों किए रहते हैं [जिसकी लाठी ,उसकी भैंस]

ख़ैर..

रही पगुराय -की स्थिति भी देख लेते हैं? वो तो पहले से ही ’पगुराय ’ रही थी .बीन बज़ाने पर भी उस पर कोई असर /क्रिया/प्रतिक्रिया नहीं हुई उसने तो गर्दन घुमा कर भी या कान उठा कर भी नहीं देखा न ध्यान दिया कि बीन कौन बजा रहा है और किधर बजा रहा है। अपने काम से काम ..भाड़ में जाय बीन और बीन बजाने वाला।

अब पाठको से एक सवाल

1] कहावत कहने वाले [आदि पुरुष] ने इस कहावत के लिए ’भैस’ ही क्यों चुना? गाय .बैल ऊँट क्यों नहीं [गधा पगुराई नहीं करता है .सिर्फ़ काम करता है]

2] इस कहावत में ’बीन’ ही वाद्य-यन्त्र क्यों चुना ? शहनाई ढोल मजीरा ताशा क्यों नहीं?

3] आगे से ही बीन बजाने की बात क्यों की गई है? अगर पीछे से बजाते तो क्या होता?

उत्तरापेक्षी
-आनन्द.पाठक
09413395592

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